देहरादून: ट्रैफिक नियमों में लापरवाही बरतना न सिर्फ आपकी जिंदगी पर भारी पड़ रहा है, बल्कि आप पुलिस और परिवहन विभाग को भी मालामाल कर रहे हैं. राज्य के पुलिस और परिवहन विभाग ट्रैफिक नियम तोड़ने से रिकॉर्ड तोड़ कमाई कर रहे हैं.
उत्तराखंड में आम लोगों को ट्रैफिफ नियम तोड़ने में कितना मजा आ रहा है, इसका हिसाब पुलिस और परिवहन के चालान और उससे होने वाली कमाई से लगाया जा सकता है. दोनों विभाग पिछले कुछ सालों से ट्रैफिफ चालान काटकर करोड़ों रुपए की कमाई कर रहे हैं. अकेले देहरादून जिले की बात करें तो पिछले 5 सालों में परिवहन विभाग ने ही करीब 12 करोड़ 45 लाख 10 हजार रुपए की कमाई चालान काटकर ही की है. परिवहन विभाग ने पांच सालों में कुल 42,451 काटे हैं. इन पांच सालों में कोविड-19 का दौर भी शामिल है.
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परिवहन विभाग के आंकड़ों पर एक नजर:
- वित्तीय वर्ष साल 2018-19 में 10,541 चालान काटे गए, जिससे विभाग को चार करोड़ एक लाख 74 हजार रुपए मिले.
- वित्तीय वर्ष 2019-20 में कुल 11,716 चालान काटे गए. इन चालानों से विभाग को तीन करोड़ 72 लाख रुपए से ज्यादा की कमाई हुई.
- वित्तीय वर्ष 2021-22 में 7,496 चालान काटे गए, जिसमें एक करोड़ 70 लाख रुपए का राजस्व मिला.
- वित्तीय वर्ष 2021-22 में कुल 11,351 चालान काटे गए, जिससे दो करोड़ 70 लाख रुपए की कमाई हुई.
- वित्तीय वर्ष 2022-23 में अभीतक 1,347 चालान काटे गए हैं, जिससे विभाग को 27 लाख रुपए की कमाई हुई है.
- इसके अलावा परिवहन विभाग ने पिछले 5 सालों में 13.50 लाख रुपए लाइसेंस शुल्क से भी कमाए हैं.
उत्तराखंड पुलिस की कमाई: चालान कटाने में उत्तराखंड पुलिस भी परिवहन विभाग से पीछे नहीं है. उत्तराखंड पुलिस ने एक साल में ही 29 करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई की थी. उत्तराखंड पुलिस ने साल 2021-22 में पांच लाख से ज्यादा चालान काटे थे, जिससे 29 करोड़ 42 लाख 47 हजार रुपए की कमाई हुई थी.
उत्तराखंड पुलिस मुख्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक सिटी पेट्रोलिंग यूनिट (सीटीयू) की 6 यूनिट ने ही अकेले एक लाख से ज्यादा चालान किए हैं, जिससे विभाग की तीन करोड़ 87 लाख 87 हजार रुपए से ज्यादा की कमाई हुई है.
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वहीं पुलिस ने भी चार लाख से ज्यादा चालान काटे हैं. इन चार लाख चालानों से पुलिस को 25 करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई हुई है. इसके अंदाजा लगाया जा सकता है कि उत्तराखंड में लोग ट्रैफिक नियमों को लेकर कितने लापरवाह हैं. लोगों की ये लापरवाही न सिर्फ उनकी जान पर भारी पड़ रही है, बल्कि सरकार की कमाई का जरिया भी बन रही है.