देहरादून: समाज में कुरीतियों और अंधविश्वास पर लगाम कसने के लिए यू तो भरपूर कानून बनाए गए हैं, लेकिन इन कानूनों को इंप्लीमेंट करने वाली बॉडी का शिथिल रवैया अक्सर नियमों को कागजों तक ही सीमित कर देता है. भ्रूण हत्या पर रोक के मामले में हालात इतने भी खराब नहीं है, लेकिन इतना जरूर है कि नियम और कानूनों का पालन नहीं होने से जिन परिणामों को पाया जा सकता था, वह परिणाम आज भी धुंधले ही दिखाई देते हैं.
गर्भ में ही कन्या की हत्या का जघन्य अपराध आज भी इस समाज के लिए कलंक बना हुआ है. आधुनिक जमाने में आगे बढ़ते भारत का पिछड़ापन समाज की इस सोच से जाहिर हो रहा है. हालाकिं सरकार के स्तर पर कुछ कड़े नियम और कानून बनाए गए हैं. प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक "पीएनडीटी एक्ट" भी इन्ही में से एक है. इस एक्ट के तहत कन्या भ्रूण हत्या को लेकर प्रशासनिक जिम्मेदारियों से लेकर जिम्मेदारों पर कार्रवाई तक की पूरी नियमावली बनाई गई है, लेकिन पहला सवाल यह है कि आखिरकार इस एक्ट का कितना पालन हो रहा है और अब तक कन्या भ्रूण हत्या के जिम्मेदारों पर कितनी कार्रवाई हुई है? तो इसका जवाब बेहद निराशाजनक है. क्योंकि न तो एक्ट के तहत प्रशासनिक इकाई फुलप्रूफ काम कर रही है और न ही सरकारों की तरफ से इस विषय को बेहद गंभीरता से लिया गया है. यही नहीं इस कानून में भी ऐसी कई कमियां हैं, जिनको दूर किया जाना बेहद जरूरी है.
देहरादून की स्थिति
जिला | साल 2020 | साल 2019 | साल 2018 | साल 2017 |
देहरादून | 970/1000 | 969/1000 | 935/1000 | 936/1000 |
बताया जा रहा है कि उत्तराखंड में हरियाणा से मोबाइल वैन के जरिए भी अल्ट्रासाउंड मशीनों को लाकर भ्रूण की टेस्टिंग की जा रही है. राज्य स्तर पर पीएनडीटी के तहत समिति की सदस्य साधना शर्मा कहती है कि प्रदेश में पिछले 2 सालों से समिति की बैठक नहीं हुई है. इससे सरकार की इस एक्ट को लेकर गंभीरता को समझा जा सकता है. खास बात यह है कि भ्रूण हत्या में न केवल बालिकाएं बल्कि कई सेंटर में चिकित्सक पैसों की कमाई के लिए लड़कों के भ्रूण की भी हत्या कर देते हैं.