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साल दर साल घट रही उत्तराखंड की सिंचाई क्षमता, जानें वजह

उत्तराखंड का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 53,483 वर्ग किलोमीटर है. जो देश के कुल क्षेत्रफल का 1.6% है. लेकिन, प्रदेश में सिंचाई क्षमता के सापेक्ष सिंचाई के उपयोग की मात्रा साल दर साल कम होती जा रही है.

Irrigation system in Uttarakhand
उत्तराखंड की सिंचाई व्यवस्था बदहाल
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Published : May 6, 2021, 7:15 PM IST

देहरादून: किसी भी देश या राज्य के आर्थिक योगदान में कृषि अहम भूमिका निभाती है. यही वजह है कि केंद्र और राज्य सरकारें खेती-किसानी पर जोर दे रही हैं. लेकिन, खेतों में सिंचाई के लिए पानी पहुंचाने के मोर्चे पर तस्वीर बहुत अच्छी नहीं है. उत्तराखंड के 16,330 गांवों में लघु सिंचाई की 26,211 योजनाओं के जरिए सरकार पानी पहुंचा रही है. इनमें गूलों, नहरों के साथ ही ट्यूबवेल और पंपिंग स्कीम शामिल हैं. विभागीय आंकड़ों को देखें तो प्रदेश में 30,951 किलोमीटर लंबी गूलों का जाल बिछा हुआ है. लेकिन कृषि से किसानों का मोहभंग होने के चलते सिंचाई का उपयोग प्रदेश में बहुत कम हो रहा है.

सिंचाई योजनाओं को प्रोत्साहित करती सरकार.

70% आबादी कृषि पर निर्भर

उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था में कृषि मुख्य भूमिका निभाती है. प्रदेश में 70% आबादी कृषि पर ही निर्भर है. लेकिन, अब उत्तराखंड के किसान खेती से नाता तोड़ रहे हैं. राजस्व विभाग के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में कृषि का रकबा 68 हजार हेक्टेयर से अधिक कम हो गया है. नतीजतन प्रदेश में कृषि भूमि का रकबा तेजी से घट रहा है.

Irrigation system in Uttarakhand
साल दर साल घट रही उत्तराखंड की सिंचाई क्षमता.

सतत विकास लक्ष्य (SDG) के तहत कृषि को मुख्य रूप से SDG-2 में रखा गया है. क्योंकि सतत विकास लक्ष्यों में भी कृषि का प्रत्यक्ष रूप से योगदान है. आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट से मिली जानकारी के अनुसार, राज्य स्थापना के समय कृषि का क्षेत्रफल 7.70 लाख हेक्टेयर था. जो अब घटकर 6.72 हेक्टेयर रह गया है. वहीं, परती भूमि का क्षेत्रफल 1.07 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 1.60 लाख हेक्टेयर हो गया है. इसके साथ ही राज्य में पर्वतीय क्षेत्रों में केवल 13% और मैदानी क्षेत्रों में 94% सिंचित क्षेत्रफल है.

ये भी पढ़ें: नैनीताल में मौसम की बेरुखी, सूखने की कगार पर जल स्रोत

पर्वतीय क्षेत्रों में सीमित संसाधनों और विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते महज कुछ प्रतिशत ग्रामीण ही कृषि कर पाते हैं. इसके साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों में 13% क्षेत्र ही सिंचित क्षेत्रफल है. लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि से किसानों का मोह भंग होने के चलते अब पर्वतीय क्षेत्रों में सिंचाई क्षमता का बहुत कम मात्रा में ही प्रयोग किया जाता रहा है. इसके साथ ही, पर्वतीय क्षेत्रों में सिंचाई क्षमता का प्रयोग करना भी काफी मुश्किल है. क्योंकि, प्रदेश में वो संसाधन उपलब्ध ही नहीं हैं, जिनके माध्यम से पर्वतीय क्षेत्रों में सिंचाई क्षमता का उपयोग किया जा सके.

आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2021-22 के मुताबिक प्रदेश में 1016.30 हजार हेक्टेयर की सिंचन क्षमता उपलब्ध है. बावजूद इसके वित्तीय वर्ष 2020-21 में दिसंबर महीने तक 720.80 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में ही सिंचन क्षमता का उपयोग किया गया. यानी 70.92 फीसदी सिंचन क्षमता का ही उपयोग किया जा सका है. आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट से मिली जानकारी के अनुसार पिछले कुछ सालों से प्रदेश में सिंचन क्षमता का उपयोग घटता चला आ रहा है. जिसकी मुख्य वजह पर्याप्त संसाधन ना होने और किसानों का कृषि से लगातार मोह भंग होना है.

कोरोना काल में बढ़ा उपयोग

साल 2020 में वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण से बचाव को लेकर लागू लॉकडाउन के दौरान प्रवासियों के आने से प्रदेश की सिंचाई क्षमता का खूब फायदा उठाया गया. सरकारी आंकड़ों के अनुसार करीब 5 लाख प्रवासी विभिन्न राज्यों से उत्तराखंड लौटे थे. इस दौरान कोई रोजगार नहीं होने के चलते प्रवासियों ने खेती-किसानी की तरफ रुख किया. जिसकी वजह से सिंचन क्षमता का भी पिछले साल की तुलना में अधिक उपयोग किया गया.

संसाधनों की कमी बड़ी वजह

सिंचन क्षमता का पूरी तरह से उपयोग ना हो पाने की मुख्य वजह पर्याप्त संसाधन ना होना है. प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में करीब 92% खेती वर्षा पर निर्भर है. सिंचाई क्षमता तो राज्य में है. लेकिन पानी लिफ्ट कर पर्वतीय क्षेत्रों में पहुंचाना ना सिर्फ काफी महंगा होगा, बल्कि उतने संसाधन भी राज्य के पास उपलब्ध नहीं हैं. यही वजह है कि राज्य सरकार 90% सब्सिडी के साथ पर्वतीय क्षेत्रों में ड्रिप इरिगेशन योजना को लागू कर रही है. जिससे पर्वतीय क्षेत्रों के किसानों की ना सिर्फ उत्पादकता बढ़ेगी, बल्कि इससे किसानों की आय भी बढ़ेगी.

सुबोध उनियाल, कृषि मंत्री

जब तक कृषि में हम आधुनिक तकनीकी का प्रयोग नहीं करेंगे, तब तक सिंचन क्षमता का पूरी तरह से उपयोग नहीं किया जा सकेगा.

सतपाल महाराज, सिंचाई मंत्री

सिंचन क्षमता के सापेक्ष उपयोग के आंकड़े

  1. साल 2017-18 के दौरान प्रदेश में 977.30 हजार हेक्टेयर सिंचन क्षमता थी. जिसके सापेक्ष 721.40 हजार हेक्टेयर सिंचन क्षमता का ही उपयोग किया गया. मतलब साफ है कि वित्तीय वर्ष में सिंचन क्षमता का 73.81% ही उपयोग हो पाया था.
  2. साल 2018-19 के दौरान प्रदेश में 991.40 हजार हेक्टेयर सिंचन क्षमता थी. जिसके सापेक्ष 715.60 हजार हेक्टेयर सिंचन क्षमता का ही उपयोग किया गया था. वित्तीय वर्ष में सिंचन क्षमता का 72.18% ही उपयोग हो पाया था.
  3. साल 2019-20 के दौरान प्रदेश में 996.70 हजार हेक्टेयर सिंचन क्षमता थी. जिसके सापेक्ष 648.10 हजार हेक्टेयर सिंचन क्षमता का ही उपयोग किया गया था. यानी इस वित्तीय वर्ष सिंचन क्षमता का 65.02% ही उपयोग हो पाया था.
  4. वित्तीय वर्ष 2020-21 में दिसंबर 2020 तक प्रदेश में 1016.30 हजार हेक्टेयर सिंचन क्षमता थी. जिसके सापेक्ष 720.80 हजार हेक्टेयर सिंचन क्षमता का ही उपयोग किया गया था. वित्तीय वर्ष सिंचन क्षमता का 70.92% ही उपयोग हो पाया था.

देहरादून: किसी भी देश या राज्य के आर्थिक योगदान में कृषि अहम भूमिका निभाती है. यही वजह है कि केंद्र और राज्य सरकारें खेती-किसानी पर जोर दे रही हैं. लेकिन, खेतों में सिंचाई के लिए पानी पहुंचाने के मोर्चे पर तस्वीर बहुत अच्छी नहीं है. उत्तराखंड के 16,330 गांवों में लघु सिंचाई की 26,211 योजनाओं के जरिए सरकार पानी पहुंचा रही है. इनमें गूलों, नहरों के साथ ही ट्यूबवेल और पंपिंग स्कीम शामिल हैं. विभागीय आंकड़ों को देखें तो प्रदेश में 30,951 किलोमीटर लंबी गूलों का जाल बिछा हुआ है. लेकिन कृषि से किसानों का मोहभंग होने के चलते सिंचाई का उपयोग प्रदेश में बहुत कम हो रहा है.

सिंचाई योजनाओं को प्रोत्साहित करती सरकार.

70% आबादी कृषि पर निर्भर

उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था में कृषि मुख्य भूमिका निभाती है. प्रदेश में 70% आबादी कृषि पर ही निर्भर है. लेकिन, अब उत्तराखंड के किसान खेती से नाता तोड़ रहे हैं. राजस्व विभाग के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में कृषि का रकबा 68 हजार हेक्टेयर से अधिक कम हो गया है. नतीजतन प्रदेश में कृषि भूमि का रकबा तेजी से घट रहा है.

Irrigation system in Uttarakhand
साल दर साल घट रही उत्तराखंड की सिंचाई क्षमता.

सतत विकास लक्ष्य (SDG) के तहत कृषि को मुख्य रूप से SDG-2 में रखा गया है. क्योंकि सतत विकास लक्ष्यों में भी कृषि का प्रत्यक्ष रूप से योगदान है. आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट से मिली जानकारी के अनुसार, राज्य स्थापना के समय कृषि का क्षेत्रफल 7.70 लाख हेक्टेयर था. जो अब घटकर 6.72 हेक्टेयर रह गया है. वहीं, परती भूमि का क्षेत्रफल 1.07 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 1.60 लाख हेक्टेयर हो गया है. इसके साथ ही राज्य में पर्वतीय क्षेत्रों में केवल 13% और मैदानी क्षेत्रों में 94% सिंचित क्षेत्रफल है.

ये भी पढ़ें: नैनीताल में मौसम की बेरुखी, सूखने की कगार पर जल स्रोत

पर्वतीय क्षेत्रों में सीमित संसाधनों और विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते महज कुछ प्रतिशत ग्रामीण ही कृषि कर पाते हैं. इसके साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों में 13% क्षेत्र ही सिंचित क्षेत्रफल है. लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि से किसानों का मोह भंग होने के चलते अब पर्वतीय क्षेत्रों में सिंचाई क्षमता का बहुत कम मात्रा में ही प्रयोग किया जाता रहा है. इसके साथ ही, पर्वतीय क्षेत्रों में सिंचाई क्षमता का प्रयोग करना भी काफी मुश्किल है. क्योंकि, प्रदेश में वो संसाधन उपलब्ध ही नहीं हैं, जिनके माध्यम से पर्वतीय क्षेत्रों में सिंचाई क्षमता का उपयोग किया जा सके.

आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2021-22 के मुताबिक प्रदेश में 1016.30 हजार हेक्टेयर की सिंचन क्षमता उपलब्ध है. बावजूद इसके वित्तीय वर्ष 2020-21 में दिसंबर महीने तक 720.80 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में ही सिंचन क्षमता का उपयोग किया गया. यानी 70.92 फीसदी सिंचन क्षमता का ही उपयोग किया जा सका है. आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट से मिली जानकारी के अनुसार पिछले कुछ सालों से प्रदेश में सिंचन क्षमता का उपयोग घटता चला आ रहा है. जिसकी मुख्य वजह पर्याप्त संसाधन ना होने और किसानों का कृषि से लगातार मोह भंग होना है.

कोरोना काल में बढ़ा उपयोग

साल 2020 में वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण से बचाव को लेकर लागू लॉकडाउन के दौरान प्रवासियों के आने से प्रदेश की सिंचाई क्षमता का खूब फायदा उठाया गया. सरकारी आंकड़ों के अनुसार करीब 5 लाख प्रवासी विभिन्न राज्यों से उत्तराखंड लौटे थे. इस दौरान कोई रोजगार नहीं होने के चलते प्रवासियों ने खेती-किसानी की तरफ रुख किया. जिसकी वजह से सिंचन क्षमता का भी पिछले साल की तुलना में अधिक उपयोग किया गया.

संसाधनों की कमी बड़ी वजह

सिंचन क्षमता का पूरी तरह से उपयोग ना हो पाने की मुख्य वजह पर्याप्त संसाधन ना होना है. प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में करीब 92% खेती वर्षा पर निर्भर है. सिंचाई क्षमता तो राज्य में है. लेकिन पानी लिफ्ट कर पर्वतीय क्षेत्रों में पहुंचाना ना सिर्फ काफी महंगा होगा, बल्कि उतने संसाधन भी राज्य के पास उपलब्ध नहीं हैं. यही वजह है कि राज्य सरकार 90% सब्सिडी के साथ पर्वतीय क्षेत्रों में ड्रिप इरिगेशन योजना को लागू कर रही है. जिससे पर्वतीय क्षेत्रों के किसानों की ना सिर्फ उत्पादकता बढ़ेगी, बल्कि इससे किसानों की आय भी बढ़ेगी.

सुबोध उनियाल, कृषि मंत्री

जब तक कृषि में हम आधुनिक तकनीकी का प्रयोग नहीं करेंगे, तब तक सिंचन क्षमता का पूरी तरह से उपयोग नहीं किया जा सकेगा.

सतपाल महाराज, सिंचाई मंत्री

सिंचन क्षमता के सापेक्ष उपयोग के आंकड़े

  1. साल 2017-18 के दौरान प्रदेश में 977.30 हजार हेक्टेयर सिंचन क्षमता थी. जिसके सापेक्ष 721.40 हजार हेक्टेयर सिंचन क्षमता का ही उपयोग किया गया. मतलब साफ है कि वित्तीय वर्ष में सिंचन क्षमता का 73.81% ही उपयोग हो पाया था.
  2. साल 2018-19 के दौरान प्रदेश में 991.40 हजार हेक्टेयर सिंचन क्षमता थी. जिसके सापेक्ष 715.60 हजार हेक्टेयर सिंचन क्षमता का ही उपयोग किया गया था. वित्तीय वर्ष में सिंचन क्षमता का 72.18% ही उपयोग हो पाया था.
  3. साल 2019-20 के दौरान प्रदेश में 996.70 हजार हेक्टेयर सिंचन क्षमता थी. जिसके सापेक्ष 648.10 हजार हेक्टेयर सिंचन क्षमता का ही उपयोग किया गया था. यानी इस वित्तीय वर्ष सिंचन क्षमता का 65.02% ही उपयोग हो पाया था.
  4. वित्तीय वर्ष 2020-21 में दिसंबर 2020 तक प्रदेश में 1016.30 हजार हेक्टेयर सिंचन क्षमता थी. जिसके सापेक्ष 720.80 हजार हेक्टेयर सिंचन क्षमता का ही उपयोग किया गया था. वित्तीय वर्ष सिंचन क्षमता का 70.92% ही उपयोग हो पाया था.
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