देहरादून: लंबे संघर्ष और आंदोलन के बाद पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड को अस्तित्व में आए 19 साल पूरे हो चुके हैं. बीजेपी और कांग्रेस की सरकारों में नि:संदेह कई बेहतर काम हुए, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा प्रदेश में हुए घोटालों ने ही बटोरी. इन 19 सालों में किस शासन काल में कौन-कौन से बड़े घोटाले चर्चाओं में रहे ? देखिये ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट में.
उत्तराखंड के इस सफर में प्रदेश की जनता को कई गड़बड़झाले-घोटाले जरूर देखने को मिले. भले ही जिस अवधारणा को लेकर राज्य के जनमानस ने न सिर्फ लंबे समय तक संघर्ष किया, बल्कि राज्य गठन के लिए कई लोगों ने अपने प्राणों की आहुति भी दी, लेकिन इन 19 सालों में राज्य को विकास से ज्यादा चर्चित घोटाले ही मिले.
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राज्य के सबसे चर्चित घोटाले
राज्य गठन के बाद सबसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के कार्यकाल में पटवारी भर्ती घोटाला सामने आया था. इस घोटाले में कुछ अधिकारियों पर जरूर कार्रवाई की गई थी. लेकिन किसी भी राजनेता को इस मामले में सलाखों के पीछे पहुंचाने में सिस्टम पूरी तरह से नाकाम साबित हुआ.
दिवंगत एनडी तिवारी सरकार में ही साल 2002-03 में दरोगा भर्ती घोटाला भी काफी चर्चा में रहा. 11 साल बाद 2014 में इस मामले में संलिप्त पाए गए अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी. हालांकि, इस पूरे गड़बड़-झाले में तत्कालीन डीजीपी पीडी रतूड़ी से कई स्तर की पूछताछ तो हुई लेकिन इतने गंभीर प्रकरण में भी सिस्टम किसी भी अधिकारी को जेल नहीं भेज पाया. भुवन चंद्र खंडूड़ी के कार्यकाल में ढैचा बीज प्रकरण घोटाला सामने आया था. जो कई सालों तक काफी चर्चाओं में भी रहा. हालांकि, इस मामले में कई स्तर पर जांच हुई, लेकिन जांच रिपोर्ट इस प्रदेश की जनता को देखने को नहीं मिल सके. मतलब नतीजा जीरो रहा.
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साल 2010 में रमेश पोखरियाल निशंक के शासनकाल में स्टर्डिया जमीन घोटाले और जल विद्युत परियोजनाओं के आवंटन में गड़बड़ी का मामला सामने आया था. इस मामले में कोर्ट पूर्व सीएम और मौजूदा केंद्रीय मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक को बड़ी राहत दी. कोर्ट ने त्रिपाठी आयोग द्वारा निशंक को जारी नोटिस और त्रिपाठी आयोग को पॉवर प्रोजेक्ट मामले की जांच करने संबंधी सरकार के नोटिफिकेशन को निरस्त कर दिया था.
साल 2013 में केदारघाटी में आई आपदा के बाद चल रहे पुनर्निर्माण कार्यों में आपदा किट घोटाला चर्चाओं में आया था. ये घोटाला आपदा आने के बाद तत्कालीन सीएम विजय बहुगुणा के शासनकाल में सामने आया था. क्योंकि केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्यो को लेकर केंद्र सरकार ने हजारों करोड़ रुपए जारी किए थे. जिसके बाद यह मामला काफी चर्चाओं में रहा. यहां तक कि पीएम नरेंन्द्र मोदी ने भी परेड ग्राउंड में चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि उतराखंड मे तो स्कूटर भी डीजल से चलता है. यह कहकर उन्होंने खूब ताली तो बटोरी परन्तु नतीजा सिफर ही निकला.
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साल 2016 में हरीश रावत शासनकाल में चर्चाओं में आया एनएच-74 घोटाला. कई दौर की जांच के बाद इस मामले में संलिप्त पाए गए अधिकारियों पर केस तक फाइल हुए. यही नहीं कुछ अधिकारियों को जेल में भी डाल दिया गया. बावजूद इसके किसी भी सफेदपोश को इस पूरे प्रकरण में सलाखों तक पहुंचाने में सिस्टम पूरी तरह से फेल साबित हुआ. यही नहीं दो आईएएस अधिकारियों को भी कुछ समय के लिए इस घोटालों में निलंबित कर दिया गया था. लेकिन कुछ समय बाद ही इन अधिकारियों की बहाली के आदेश भी जारी कर दिए गए. यहां तक भी मौजूदा सीएम ने भी इस मामले मे प्रेस वार्ता कर आह्वान किया था कि किसी भी सूरत मे भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं करेंगे. वो इसके लिए धर्मयुद्ध चला रहे हैं इसमें कोई उनका सगा भी आता है तो उनके खिलाफ भी कारवाई की जाएगी अपनी बात पर बल देते हुए सीएम ने सीबीआई जांच की भी संस्तुति की थी, परन्तु नतीजा सबके सामने है.
राज्य गठन के बाद से ही छात्रवृत्ति मामला चर्चाओं में रहा है. कई दौर की जांच भी हुई. हालांकि, ये मामला करीब साल 2016 में हरीश रावत के शासनकाल में खूब सुर्खियों में आया. जिसके बाद इस मामले में कई अधिकारियों से एसआईटी द्वारा पूछताछ तो की जा रही है. लेकिन एसआईटी की टीम के चंगुल में कोई सफेदपोश अभी तक नहीं पहुंचा है.
अब ये देखना दिलचस्प होगा कि आखिर क्या आने वाले समय में भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाने वाले सफेदपोश, जेल पहुंच पाएंगे? या फिर सिर्फ और सिर्फ नेताओं के इशारे पर भ्रष्टाचार के किसी भी मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा.