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उत्तराखंड स्थापना दिवस: इन 19 सालों में वे चर्चित घोटाले, जिन्होंने बटोरी सबसे ज्यादा सुर्खियां

उत्तराखंड राज्य अपनी 19वीं वर्षगांठ मना रहा है. ऐसे में राज्यवासियों को ये जानना भी जरूरी है कि इन 19 सालों में कौन से घोटाले सबसे ज्यादा चर्चा में रहे.

इन 19 सालों में वे चर्चित घोटाले, जिन्होंने बटोरी सबसे ज्यादा चर्चा
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Published : Nov 9, 2019, 6:58 PM IST

Updated : Nov 9, 2019, 10:52 PM IST

देहरादून: लंबे संघर्ष और आंदोलन के बाद पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड को अस्तित्व में आए 19 साल पूरे हो चुके हैं. बीजेपी और कांग्रेस की सरकारों में नि:संदेह कई बेहतर काम हुए, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा प्रदेश में हुए घोटालों ने ही बटोरी. इन 19 सालों में किस शासन काल में कौन-कौन से बड़े घोटाले चर्चाओं में रहे ? देखिये ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट में.


उत्तराखंड के इस सफर में प्रदेश की जनता को कई गड़बड़झाले-घोटाले जरूर देखने को मिले. भले ही जिस अवधारणा को लेकर राज्य के जनमानस ने न सिर्फ लंबे समय तक संघर्ष किया, बल्कि राज्य गठन के लिए कई लोगों ने अपने प्राणों की आहुति भी दी, लेकिन इन 19 सालों में राज्य को विकास से ज्यादा चर्चित घोटाले ही मिले.

पढ़ेंः उत्तराखंड@19: टूटी उम्मीदों के दर्द से कराह रही देवभूमि, चुनौती जस की तस

राज्य के सबसे चर्चित घोटाले
राज्य गठन के बाद सबसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के कार्यकाल में पटवारी भर्ती घोटाला सामने आया था. इस घोटाले में कुछ अधिकारियों पर जरूर कार्रवाई की गई थी. लेकिन किसी भी राजनेता को इस मामले में सलाखों के पीछे पहुंचाने में सिस्टम पूरी तरह से नाकाम साबित हुआ.

दिवंगत एनडी तिवारी सरकार में ही साल 2002-03 में दरोगा भर्ती घोटाला भी काफी चर्चा में रहा. 11 साल बाद 2014 में इस मामले में संलिप्त पाए गए अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी. हालांकि, इस पूरे गड़बड़-झाले में तत्कालीन डीजीपी पीडी रतूड़ी से कई स्तर की पूछताछ तो हुई लेकिन इतने गंभीर प्रकरण में भी सिस्टम किसी भी अधिकारी को जेल नहीं भेज पाया. भुवन चंद्र खंडूड़ी के कार्यकाल में ढैचा बीज प्रकरण घोटाला सामने आया था. जो कई सालों तक काफी चर्चाओं में भी रहा. हालांकि, इस मामले में कई स्तर पर जांच हुई, लेकिन जांच रिपोर्ट इस प्रदेश की जनता को देखने को नहीं मिल सके. मतलब नतीजा जीरो रहा.

19 सालों में वे चर्चित घोटाले जिन्होंने बटोरी सुर्खियां.

पढ़ेंः उत्तराखंड स्थापना दिवसः पलायन का दीमक पहाड़ को कर रहा वीरान, 4400 गांव पूरी तरह से खाली

साल 2010 में रमेश पोखरियाल निशंक के शासनकाल में स्टर्डिया जमीन घोटाले और जल विद्युत परियोजनाओं के आवंटन में गड़बड़ी का मामला सामने आया था. इस मामले में कोर्ट पूर्व सीएम और मौजूदा केंद्रीय मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक को बड़ी राहत दी. कोर्ट ने त्रिपाठी आयोग द्वारा निशंक को जारी नोटिस और त्रिपाठी आयोग को पॉवर प्रोजेक्ट मामले की जांच करने संबंधी सरकार के नोटिफिकेशन को निरस्त कर दिया था.
साल 2013 में केदारघाटी में आई आपदा के बाद चल रहे पुनर्निर्माण कार्यों में आपदा किट घोटाला चर्चाओं में आया था. ये घोटाला आपदा आने के बाद तत्कालीन सीएम विजय बहुगुणा के शासनकाल में सामने आया था. क्योंकि केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्यो को लेकर केंद्र सरकार ने हजारों करोड़ रुपए जारी किए थे. जिसके बाद यह मामला काफी चर्चाओं में रहा. यहां तक कि पीएम नरेंन्द्र मोदी ने भी परेड ग्राउंड में चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि उतराखंड मे तो स्कूटर भी डीजल से चलता है. यह कहकर उन्होंने खूब ताली तो बटोरी परन्तु नतीजा सिफर ही निकला.

पढ़ेंः उत्तराखंड स्थापना दिवस: राज्य गठन के बाद से नहीं बढ़ पाया औद्योगिक इकाइयों का दायरा

साल 2016 में हरीश रावत शासनकाल में चर्चाओं में आया एनएच-74 घोटाला. कई दौर की जांच के बाद इस मामले में संलिप्त पाए गए अधिकारियों पर केस तक फाइल हुए. यही नहीं कुछ अधिकारियों को जेल में भी डाल दिया गया. बावजूद इसके किसी भी सफेदपोश को इस पूरे प्रकरण में सलाखों तक पहुंचाने में सिस्टम पूरी तरह से फेल साबित हुआ. यही नहीं दो आईएएस अधिकारियों को भी कुछ समय के लिए इस घोटालों में निलंबित कर दिया गया था. लेकिन कुछ समय बाद ही इन अधिकारियों की बहाली के आदेश भी जारी कर दिए गए. यहां तक भी मौजूदा सीएम ने भी इस मामले मे प्रेस वार्ता कर आह्वान किया था कि किसी भी सूरत मे भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं करेंगे. वो इसके लिए धर्मयुद्ध चला रहे हैं इसमें कोई उनका सगा भी आता है तो उनके खिलाफ भी कारवाई की जाएगी अपनी बात पर बल देते हुए सीएम ने सीबीआई जांच की भी संस्तुति की थी, परन्तु नतीजा सबके सामने है.

राज्य गठन के बाद से ही छात्रवृत्ति मामला चर्चाओं में रहा है. कई दौर की जांच भी हुई. हालांकि, ये मामला करीब साल 2016 में हरीश रावत के शासनकाल में खूब सुर्खियों में आया. जिसके बाद इस मामले में कई अधिकारियों से एसआईटी द्वारा पूछताछ तो की जा रही है. लेकिन एसआईटी की टीम के चंगुल में कोई सफेदपोश अभी तक नहीं पहुंचा है.
अब ये देखना दिलचस्प होगा कि आखिर क्या आने वाले समय में भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाने वाले सफेदपोश, जेल पहुंच पाएंगे? या फिर सिर्फ और सिर्फ नेताओं के इशारे पर भ्रष्टाचार के किसी भी मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा.

देहरादून: लंबे संघर्ष और आंदोलन के बाद पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड को अस्तित्व में आए 19 साल पूरे हो चुके हैं. बीजेपी और कांग्रेस की सरकारों में नि:संदेह कई बेहतर काम हुए, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा प्रदेश में हुए घोटालों ने ही बटोरी. इन 19 सालों में किस शासन काल में कौन-कौन से बड़े घोटाले चर्चाओं में रहे ? देखिये ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट में.


उत्तराखंड के इस सफर में प्रदेश की जनता को कई गड़बड़झाले-घोटाले जरूर देखने को मिले. भले ही जिस अवधारणा को लेकर राज्य के जनमानस ने न सिर्फ लंबे समय तक संघर्ष किया, बल्कि राज्य गठन के लिए कई लोगों ने अपने प्राणों की आहुति भी दी, लेकिन इन 19 सालों में राज्य को विकास से ज्यादा चर्चित घोटाले ही मिले.

पढ़ेंः उत्तराखंड@19: टूटी उम्मीदों के दर्द से कराह रही देवभूमि, चुनौती जस की तस

राज्य के सबसे चर्चित घोटाले
राज्य गठन के बाद सबसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के कार्यकाल में पटवारी भर्ती घोटाला सामने आया था. इस घोटाले में कुछ अधिकारियों पर जरूर कार्रवाई की गई थी. लेकिन किसी भी राजनेता को इस मामले में सलाखों के पीछे पहुंचाने में सिस्टम पूरी तरह से नाकाम साबित हुआ.

दिवंगत एनडी तिवारी सरकार में ही साल 2002-03 में दरोगा भर्ती घोटाला भी काफी चर्चा में रहा. 11 साल बाद 2014 में इस मामले में संलिप्त पाए गए अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी. हालांकि, इस पूरे गड़बड़-झाले में तत्कालीन डीजीपी पीडी रतूड़ी से कई स्तर की पूछताछ तो हुई लेकिन इतने गंभीर प्रकरण में भी सिस्टम किसी भी अधिकारी को जेल नहीं भेज पाया. भुवन चंद्र खंडूड़ी के कार्यकाल में ढैचा बीज प्रकरण घोटाला सामने आया था. जो कई सालों तक काफी चर्चाओं में भी रहा. हालांकि, इस मामले में कई स्तर पर जांच हुई, लेकिन जांच रिपोर्ट इस प्रदेश की जनता को देखने को नहीं मिल सके. मतलब नतीजा जीरो रहा.

19 सालों में वे चर्चित घोटाले जिन्होंने बटोरी सुर्खियां.

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साल 2010 में रमेश पोखरियाल निशंक के शासनकाल में स्टर्डिया जमीन घोटाले और जल विद्युत परियोजनाओं के आवंटन में गड़बड़ी का मामला सामने आया था. इस मामले में कोर्ट पूर्व सीएम और मौजूदा केंद्रीय मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक को बड़ी राहत दी. कोर्ट ने त्रिपाठी आयोग द्वारा निशंक को जारी नोटिस और त्रिपाठी आयोग को पॉवर प्रोजेक्ट मामले की जांच करने संबंधी सरकार के नोटिफिकेशन को निरस्त कर दिया था.
साल 2013 में केदारघाटी में आई आपदा के बाद चल रहे पुनर्निर्माण कार्यों में आपदा किट घोटाला चर्चाओं में आया था. ये घोटाला आपदा आने के बाद तत्कालीन सीएम विजय बहुगुणा के शासनकाल में सामने आया था. क्योंकि केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्यो को लेकर केंद्र सरकार ने हजारों करोड़ रुपए जारी किए थे. जिसके बाद यह मामला काफी चर्चाओं में रहा. यहां तक कि पीएम नरेंन्द्र मोदी ने भी परेड ग्राउंड में चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि उतराखंड मे तो स्कूटर भी डीजल से चलता है. यह कहकर उन्होंने खूब ताली तो बटोरी परन्तु नतीजा सिफर ही निकला.

पढ़ेंः उत्तराखंड स्थापना दिवस: राज्य गठन के बाद से नहीं बढ़ पाया औद्योगिक इकाइयों का दायरा

साल 2016 में हरीश रावत शासनकाल में चर्चाओं में आया एनएच-74 घोटाला. कई दौर की जांच के बाद इस मामले में संलिप्त पाए गए अधिकारियों पर केस तक फाइल हुए. यही नहीं कुछ अधिकारियों को जेल में भी डाल दिया गया. बावजूद इसके किसी भी सफेदपोश को इस पूरे प्रकरण में सलाखों तक पहुंचाने में सिस्टम पूरी तरह से फेल साबित हुआ. यही नहीं दो आईएएस अधिकारियों को भी कुछ समय के लिए इस घोटालों में निलंबित कर दिया गया था. लेकिन कुछ समय बाद ही इन अधिकारियों की बहाली के आदेश भी जारी कर दिए गए. यहां तक भी मौजूदा सीएम ने भी इस मामले मे प्रेस वार्ता कर आह्वान किया था कि किसी भी सूरत मे भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं करेंगे. वो इसके लिए धर्मयुद्ध चला रहे हैं इसमें कोई उनका सगा भी आता है तो उनके खिलाफ भी कारवाई की जाएगी अपनी बात पर बल देते हुए सीएम ने सीबीआई जांच की भी संस्तुति की थी, परन्तु नतीजा सबके सामने है.

राज्य गठन के बाद से ही छात्रवृत्ति मामला चर्चाओं में रहा है. कई दौर की जांच भी हुई. हालांकि, ये मामला करीब साल 2016 में हरीश रावत के शासनकाल में खूब सुर्खियों में आया. जिसके बाद इस मामले में कई अधिकारियों से एसआईटी द्वारा पूछताछ तो की जा रही है. लेकिन एसआईटी की टीम के चंगुल में कोई सफेदपोश अभी तक नहीं पहुंचा है.
अब ये देखना दिलचस्प होगा कि आखिर क्या आने वाले समय में भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाने वाले सफेदपोश, जेल पहुंच पाएंगे? या फिर सिर्फ और सिर्फ नेताओं के इशारे पर भ्रष्टाचार के किसी भी मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा.

Intro:नोट - फीड ftp से भेजी गई है......
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लंबे संघर्ष और आंदोलन के बाद साल 2000 में 9 नवंबर को उत्तर प्रदेश से अलग पहाड़ी राज्य का गठन हुआ। इस पर्वतीय क्षेत्र का अलग राज्य के रूप में पर्वतीय क्षेत्रों के चहुमुखी विकास करने के उद्देश्य से किया गया था, बावजूद इसके जिस अवधारणा को लेकर राज्य का गठन हुआ था। वह मानो गुम हो गया हो। ऐसा हम नहीं बल्कि राज्य गठन से स्थापना दिवस की 19 वीं वर्षगांठ तक के राज्य सफर में सामने आए कई चर्चित घोटाले इस बात को बखूबी बयां कर रहे हैं। इन घोटालो में सबसे महत्वपूर्ण घोटालों से जुड़ा पहलू राजनेताओं के एक दूसरे पर लगाए जाने वाले भ्रष्टाचार को लेकर सियासी आरोप प्रत्यारोप को ही माना जा रहा है। आखिर इन 19 सालो में किस शासन काल में कौन से बड़े घोटाले चर्चाओं में रहे ? देखिये ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट............. 


Body:अक्सर विपक्षी पार्टी के नेता सत्ताधारी पार्टी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हैं यही नहीं अपनी सरकार बनने पर विरोधी दल के नेताओं को सलाखों के पीछे पहुंचाने का खूब दंम भरते रहे हैं, लेकिन जब उन्हीं नेताओं को सत्ता का सुख मिलने लगता है तो वह विपक्षी नेताओं के भ्रष्टाचार के कृतियों को भूल जाते हैं। नतीजा तमाम घोटाले राज्य गठन से आज तक चर्चाओं में तो खूब रहे। लेकिन किसी भी दल का नेता को किसी घोटाले के आरोपी के रूप में सलाखों के पीछे आज तक नहीं पंहुचा गया। इससे साफ जाहिर हो जाता है कि आखिर इन चर्चित घोटालों को लेकर पक्ष-विपक्ष के नेता कितना गंभीर है। 


इन 19 सालों में उत्तराखंड के इस सफर में प्रदेश की जनता को कई गड़बड़झाले-घोटाले जरूर देखने को मिले, भले ही जिस अवधारणा को लेकर राज्य के जनमानस ने न सिर्फ लंबे समय तक संघर्ष किया था बल्कि राज्य गठन के लिए कई लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। लेकिन इन 19 सालो में राज्य की जनता चर्चित घोटालों के सिवाए कुछ नही देखा। 


हालांकि मुख्य विपक्षी पार्टी के नेता अब सत्ता पक्ष को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं और सत्तापक्ष के तमाम नेता जीरो टॉलरेंस की नीति पर चढ़ने वाली सरकार की जमकर वकालत कर रहे हो। लेकिन सवाल यह है कि विपक्ष में राजनेता क्यों सत्ताधारी पार्टी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हैं। जब वह नेता सत्ता सुख भोगते हैं तो उस वक्त आखिर उनकी जीरो टॉलरेंस की नीति कहां गायब हो जाती है। और अगर यह नीति गायब नहीं होती तो शायद राज्य गठन से आज तक हुए तमाम घोटालों का संरक्षण करने वाले तत्कालीन सत्ताधारी पार्टी के नेता भी आज सलाखों के पीछे पहुंच गए होते।

बाइट - सूर्यकांत धस्माना, प्रदेश उपाध्यक्ष, कांग्रेस
बाइट - देवेंद्र भसीन, प्रदेश मीडिया प्रभारी, भाजपा
बाइट - आशुतोष डिमरी, राजनीतिक विशेषज्ञ


......राज्य गठन से अभी तक के चर्चित घोटाले.....


- लबे आंदोलन के बाद 9 नवंबर 2000 में राज्य गठित किया गया, राज्य गठन के बाद सबसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के कार्यकाल में पटवारी भर्ती घोटाला सामने आया था। इस घोटाले में कुछ अधिकारियों पर जरूर कार्यवाही की गई थी। लेकिन किसी भी राजनेता को इस मामले में सलाखों के पीछे पहुंचाने में सिस्टम पूरी तरह से नाकामियाब ही साबित हुआ, और सरकारी सिस्टम पूरी तरह से फेल ही साबित हुआ था।  

- राज्य गठन के बाद राज्य के भीतर चुनाव प्रक्रिया के बाद बनी पहली सरकार में ही साल 2002-3 में इंस्पेक्टर भर्ती घोटाला भी काफी चर्चा में रहा। और 11 साल बाद 2014 में इस मामले में संलिप्त पाए गए अधिकारियो के खिलाफ चार्जसीट दाखिल की गयी थी। हालांकि इस पूरे गड़बड़ झाले में तत्कालीन डीजीपी पीडी रतूड़ी से कई स्तर की पूछताछ तो हुई लेकिन प्रकरण  किसी भी अधिकारी को इसमें जेल नहीं भेजा जा सका। 

- इसके बाद प्रदेश में भुवन चंद्र खंडूरी के कार्यकाल में ढैंचा बीज प्रकरण सामने आया था। जो कई सालो तक काफी चर्चाओं में रहा था,हालांकि इस मामले में कई स्तर की जांच तो हुई लेकिन जांच रिपोर्ट के परिणाम इस प्रदेश की जनता को देखने को नहीं मिल सके। नतीजा जीरो ही रह।

- साल 2010 में रमेश पोखरियाल "निशंक" के शासनकाल में चर्चाओं मे स्टूर्जिया जमीन घोटाले और जल विद्युत परियोजनाओ के आवंटन का मामला सामने आया था। इस गड़बड़ी के मामले में पूर्व सीएम और मौजूदा केंद्रीय मंत्री डा० रमेश पोखरियाल निशंक को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने त्रिपाठी आयोग द्वारा निशंक को जारी नोटिस और त्रिपाठी आयोग को पावर प्रोजेक्ट मामले की जांच करने संबंधी सरकार के नोटिफिकेशन को निरस्त कर दिया था। 

- साल 2013 में केदारघाटी में आयी आपदा के बाद चल रहे पुनर्निर्माण कार्यो में आपदा किट घोटाला चर्चाओं में आया था। यह घोटाला आपदा आने के बाद तत्कालीन सीएम विजय बहुगुणा के शासनकाल में सामने आया था। क्योंकि पूर्व सीएम विजय बहुगुणा के शासनकाल में आपदा आई थी। जिसके पुनर्निर्माण कार्यो को लेकर केंद्र सरकार ने हजारो करोड़ रुपये जारी किए थे। जिसके बाद यह मामला काफी चर्चाओं में रहा। 

- साल 2016 में हरीश रावत शासनकाल में चर्चाओं में आया एनएच-74 घोटाला भी काफी सुर्खियों में रहा। कई दौर की जांच के बाद इस मामले में संलिप्त पाए गए अधिकारियो पर केस तक फाइल हुए। यही नही कुछ अधिकारियों को जेल में भी डाल दिया गया। बावजूद इसके किसी भी सफेदपोश को इस पूरे प्रकरण में सलाखों तक पहुंचाने में सिस्टम पूरी तरह से फेल ही साबित हुआ। यही नहीं दो आईएएस अधिकारियों को भी कुछ समय के लिए इस घोटाले में निलंबित कर दिया गया था। लेकिन कुछ समय बाद ही इन दोनों अधिकारियों को बहाल कर दिया गया। 

- राज्य गठन के बाद से ही छात्रवृत्ति मामला चर्चाओं में रहा है। कई दौर की जांच भी हुई। हालांकि यह मामला करीब साल 2016 में हरीश रावत के शासनकाल में  छात्रवृत्ति घोटाला खूब चर्चाओं में आया। जिसके बाद इस मामले में कई अधिकारियों से एसआईटी द्वारा पूछताछ तो की जा रही है। लेकिन एसआईटी की टीम ने अभी किसी सफेदपोश को गिरफ्तार करने तक की स्टेज पर नहीं पहुंच पाई है। 




Conclusion:अब देखना होगा आखिर क्या आने वाले समय में भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाने वाले सफेदपोश, क्या वाकई जेल पहुंच पाएंगे, या फिर सिर्फ और सिर्फ नेताओं के इशारे पर भ्रष्टाचार को बढ़ाने वाले कर्मचारियों पर एक्शन के बाद ही भ्रष्टाचार के किसी भी मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा। जोकि आज तक होता चला आ रहा है।
Last Updated : Nov 9, 2019, 10:52 PM IST
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