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20 सालों में प्रदेश ने देखे कई स्कैम, समय-समय पर निकले घोटाले के 'जिन्न'

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Published : Nov 9, 2020, 5:50 AM IST

Updated : Nov 9, 2020, 1:05 PM IST

घोटालों के लिए कुख्यात हो चुके उत्तराखंड में एक के बाद एक कई बड़े घोटालों के 'जिन्न' बोतल से बाहर आये. जिसकी वजह से राज्य विकास में पिछड़ता रहा. उत्तराखंड गठन के 20 साल पूरे हो चुके हैं. ऐसे में हर किसी के मन में एक ही सवाल है कि पहाड़ की तकदीर कितनी बदली है.

Uttarakhand State Establishment Day
राज्य स्थापना दिवस.

देहरादून: उत्तराखंड के गठन को 20 साल पूरे हो चुके हैं. इन वर्षों में राज्य ने तरक्की की कई सीढ़ियां चढ़ी हैं लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि विकास के प्रति लापरवाही की मिसाल बनने में भी उत्तराखंड पीछे नहीं है. राज्य आंदोलनकारियों के सपने का उत्तराखंड तो अभी तक नहीं बना लेकिन, पहाड़ के सपनों का उत्तराखंड भी गुम सा हो गया है.

उत्तराखंड को अलग राज्‍य बने 20 साल हो चुके हैं और सत्ता की कसौटी पर नौ मुख्‍यमंत्रियों का कार्यकाल भी प्रदेश देख चुका है लेकिन, हालात पहले जैसे ही नजर आ रहे हैं. राज्य सफर में सामने आए कई चर्चित घोटाले इस बात को बखूबी बयां कर रहे हैं. इन घोटालों में सबसे महत्वपूर्ण घोटालों से जुड़ा पहलू राजनेताओं के एक दूसरे पर लगाए जाने वाले भ्रष्टाचार को लेकर सियासी आरोप-प्रत्यारोप को ही माना जा रहा है. राज्य स्थापना दिवस पर पढ़िए इन 20 सालों में कौन से बड़े घोटाले के कारण उत्तराखंड चर्चाओं में रहा.

सपनों का उत्तराखंड बनाने के लिए लिए प्रदेश के सैकड़ों आंदोलनकारियों ने अपनी शहादत दी. लेकिन, सत्ता की भूख ने राज्य की परिकल्पनाओं को कभी पनपने ही नहीं दिया. यूं तो अलग राज्य का मकसद पहाड़ी जिलों में विकास और मूलभूत सुविधाओं को पहुंचाकर पलायन रोकना था लेकिन सत्ता के चरम पर पहुंचने की लालसा ने इन सपनों को पीछे छोड़ बहुत पीछे छोड़ दिया.

ये भी पढ़ें: स्थापना दिवस: सत्ता के गलियारों में चलती नूरा-कुश्ती, राजनीतिक लाभ ने तोड़े प्रदेश के सपने!

राज्य गठन से अभी तक के चर्चित घोटाले

  • लंबे आंदोलन के बाद 9 नवंबर 2000 में राज्य गठित किया गया, राज्य गठन के बाद सबसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के कार्यकाल में पटवारी भर्ती घोटाला सामने आया था. इस घोटाले में कुछ अधिकारियों पर जरूर कार्रवाई हुई लेकिन किसी भी राजनेता को इस मामले में कोई सजा नहीं हुई.
  • साल 2002-03 में इंस्पेक्टर भर्ती घोटाला भी काफी चर्चाओं में रहा. 11 साल बाद 2014 में इस मामले में संलिप्त पाए गए अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई. हालांकि, इस पूरे मामले में तत्कालीन डीजीपी पीडी रतूड़ी से कई स्तर की पूछताछ तो हुई लेकिन कोई भी अधिकारी सलाखों के पीछे नहीं पहुंचा.
  • प्रदेश में भुवन चंद्र खंडूड़ी के कार्यकाल में ढैंचा बीज प्रकरण सामने आया जो कई सालों तक काफी चर्चाओं में रहा. इस मामले में कई स्तर की जांच तो हुई लेकिन जांच रिपोर्ट के परिणाम सामने ही नहीं आए.
  • साल 2010 में रमेश पोखरियाल निशंक के शासनकाल में चर्चाओं मे स्टर्डिया जमीन घोटाले और जल विद्युत परियोजनाओं के आवंटन का मामला सामने आया था. इस गड़बड़ी के मामले में पूर्व सीएम और मौजूदा केंद्रीय मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक को बड़ी राहत दी है. कोर्ट ने त्रिपाठी आयोग द्वारा निशंक को जारी नोटिस और त्रिपाठी आयोग को पावर प्रोजेक्ट मामले की जांच करने संबंधी सरकार के नोटिफिकेशन को निरस्त कर दिया है.
  • साल 2013 में केदारघाटी में आयी आपदा के बाद चल रहे पुनर्निर्माण कार्यों में आपदा किट घोटाला चर्चाओं में आया. घोटाला आपदा आने के बाद तत्कालीन सीएम विजय बहुगुणा के शासनकाल में सामने आया था. पूर्व सीएम विजय बहुगुणा के शासनकाल में केदारनाथ में आपदा आई थी, जिसके पुनर्निर्माण कार्यों को लेकर केंद्र सरकार ने हजारों करोड़ रुपए जारी किए थे.
  • साल 2016 में हरीश रावत शासनकाल में एनएच-74 घोटाला चर्चाओं में आया. कई दौर की जांच के बाद इस मामले में संलिप्त पाए गए अधिकारियों पर केस फाइल हुए. यही नहीं, कुछ अधिकारियों को जेल में भी डाल दिया गया. बावजूद इसके किसी भी सफेदपोश को इस पूरे प्रकरण में सजा नहीं हुई. मामला के लीपापोती के लिए दो आईएएस अधिकारियों को कुछ समय के लिए निलंबित जरूर किया गया था. लेकिन, कुछ समय बाद ही दोनों अधिकारी बहाल कर दिए गए.
  • 2016 में हरीश रावत सरकार में ही छात्रवृत्ति घोटाला भी खूब चर्चाओं में आया, जिसके बाद इस मामले में कई अधिकारियों से एसआईटी द्वारा पूछताछ तो कर रही है लेकिन किसी दोषी अधिकारी या राजनेता तक एसआईटी के हाथ नहीं पहुंचे हैं.
  • उत्तराखंड भवन एवं सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड के कामकाज पर 2017 से ही सवाल उठ रहे थे. लेकिन इसी साल हुए साइकिल विवाद से बोर्ड की जमकर किरकिरी हुई. दरअसल, भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड ने साइकिल बांटने के दौरान शिविर में आम आदमी पार्टी की टोपी पहने लोग भी शामिल थे. नियम अनुसार साइकिलें सिर्फ उन्हीं श्रमिकों को मिलनी थी, जिनके श्रमिक कार्ड बने हुए थे. लेकिन आधार कार्ड धारक श्रमिक को भी साइकिल दे दी गई. श्रम विभाग इस मामले की पहले जांच कर चुका है, जिसे शासन ने खारिज कर दिया है. अब पूरे मामले की जांच जिला प्रशासन कर रहा है.

ये भी पढ़ें: राज्य स्थापना दिवस: विकास के रास्ते पर बढ़ा पहाड़, प्रदेश में बिछा सड़कों का जाल

इन 20 सालों में उत्तराखंड के इस सफर में प्रदेश की जनता को कई घोटाले जरूर देखे लेकिन कार्रवाई के नाम पर नतीजा सिफर ही निकला. जिस अवधारणा को लेकर लोगों और आंदोलनकारियों ने संघर्ष किया इन 20 सालों में प्रदेश की जनता से घोटालों के अलावा कुछ नहीं देखा.

देहरादून: उत्तराखंड के गठन को 20 साल पूरे हो चुके हैं. इन वर्षों में राज्य ने तरक्की की कई सीढ़ियां चढ़ी हैं लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि विकास के प्रति लापरवाही की मिसाल बनने में भी उत्तराखंड पीछे नहीं है. राज्य आंदोलनकारियों के सपने का उत्तराखंड तो अभी तक नहीं बना लेकिन, पहाड़ के सपनों का उत्तराखंड भी गुम सा हो गया है.

उत्तराखंड को अलग राज्‍य बने 20 साल हो चुके हैं और सत्ता की कसौटी पर नौ मुख्‍यमंत्रियों का कार्यकाल भी प्रदेश देख चुका है लेकिन, हालात पहले जैसे ही नजर आ रहे हैं. राज्य सफर में सामने आए कई चर्चित घोटाले इस बात को बखूबी बयां कर रहे हैं. इन घोटालों में सबसे महत्वपूर्ण घोटालों से जुड़ा पहलू राजनेताओं के एक दूसरे पर लगाए जाने वाले भ्रष्टाचार को लेकर सियासी आरोप-प्रत्यारोप को ही माना जा रहा है. राज्य स्थापना दिवस पर पढ़िए इन 20 सालों में कौन से बड़े घोटाले के कारण उत्तराखंड चर्चाओं में रहा.

सपनों का उत्तराखंड बनाने के लिए लिए प्रदेश के सैकड़ों आंदोलनकारियों ने अपनी शहादत दी. लेकिन, सत्ता की भूख ने राज्य की परिकल्पनाओं को कभी पनपने ही नहीं दिया. यूं तो अलग राज्य का मकसद पहाड़ी जिलों में विकास और मूलभूत सुविधाओं को पहुंचाकर पलायन रोकना था लेकिन सत्ता के चरम पर पहुंचने की लालसा ने इन सपनों को पीछे छोड़ बहुत पीछे छोड़ दिया.

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राज्य गठन से अभी तक के चर्चित घोटाले

  • लंबे आंदोलन के बाद 9 नवंबर 2000 में राज्य गठित किया गया, राज्य गठन के बाद सबसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के कार्यकाल में पटवारी भर्ती घोटाला सामने आया था. इस घोटाले में कुछ अधिकारियों पर जरूर कार्रवाई हुई लेकिन किसी भी राजनेता को इस मामले में कोई सजा नहीं हुई.
  • साल 2002-03 में इंस्पेक्टर भर्ती घोटाला भी काफी चर्चाओं में रहा. 11 साल बाद 2014 में इस मामले में संलिप्त पाए गए अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई. हालांकि, इस पूरे मामले में तत्कालीन डीजीपी पीडी रतूड़ी से कई स्तर की पूछताछ तो हुई लेकिन कोई भी अधिकारी सलाखों के पीछे नहीं पहुंचा.
  • प्रदेश में भुवन चंद्र खंडूड़ी के कार्यकाल में ढैंचा बीज प्रकरण सामने आया जो कई सालों तक काफी चर्चाओं में रहा. इस मामले में कई स्तर की जांच तो हुई लेकिन जांच रिपोर्ट के परिणाम सामने ही नहीं आए.
  • साल 2010 में रमेश पोखरियाल निशंक के शासनकाल में चर्चाओं मे स्टर्डिया जमीन घोटाले और जल विद्युत परियोजनाओं के आवंटन का मामला सामने आया था. इस गड़बड़ी के मामले में पूर्व सीएम और मौजूदा केंद्रीय मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक को बड़ी राहत दी है. कोर्ट ने त्रिपाठी आयोग द्वारा निशंक को जारी नोटिस और त्रिपाठी आयोग को पावर प्रोजेक्ट मामले की जांच करने संबंधी सरकार के नोटिफिकेशन को निरस्त कर दिया है.
  • साल 2013 में केदारघाटी में आयी आपदा के बाद चल रहे पुनर्निर्माण कार्यों में आपदा किट घोटाला चर्चाओं में आया. घोटाला आपदा आने के बाद तत्कालीन सीएम विजय बहुगुणा के शासनकाल में सामने आया था. पूर्व सीएम विजय बहुगुणा के शासनकाल में केदारनाथ में आपदा आई थी, जिसके पुनर्निर्माण कार्यों को लेकर केंद्र सरकार ने हजारों करोड़ रुपए जारी किए थे.
  • साल 2016 में हरीश रावत शासनकाल में एनएच-74 घोटाला चर्चाओं में आया. कई दौर की जांच के बाद इस मामले में संलिप्त पाए गए अधिकारियों पर केस फाइल हुए. यही नहीं, कुछ अधिकारियों को जेल में भी डाल दिया गया. बावजूद इसके किसी भी सफेदपोश को इस पूरे प्रकरण में सजा नहीं हुई. मामला के लीपापोती के लिए दो आईएएस अधिकारियों को कुछ समय के लिए निलंबित जरूर किया गया था. लेकिन, कुछ समय बाद ही दोनों अधिकारी बहाल कर दिए गए.
  • 2016 में हरीश रावत सरकार में ही छात्रवृत्ति घोटाला भी खूब चर्चाओं में आया, जिसके बाद इस मामले में कई अधिकारियों से एसआईटी द्वारा पूछताछ तो कर रही है लेकिन किसी दोषी अधिकारी या राजनेता तक एसआईटी के हाथ नहीं पहुंचे हैं.
  • उत्तराखंड भवन एवं सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड के कामकाज पर 2017 से ही सवाल उठ रहे थे. लेकिन इसी साल हुए साइकिल विवाद से बोर्ड की जमकर किरकिरी हुई. दरअसल, भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड ने साइकिल बांटने के दौरान शिविर में आम आदमी पार्टी की टोपी पहने लोग भी शामिल थे. नियम अनुसार साइकिलें सिर्फ उन्हीं श्रमिकों को मिलनी थी, जिनके श्रमिक कार्ड बने हुए थे. लेकिन आधार कार्ड धारक श्रमिक को भी साइकिल दे दी गई. श्रम विभाग इस मामले की पहले जांच कर चुका है, जिसे शासन ने खारिज कर दिया है. अब पूरे मामले की जांच जिला प्रशासन कर रहा है.

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इन 20 सालों में उत्तराखंड के इस सफर में प्रदेश की जनता को कई घोटाले जरूर देखे लेकिन कार्रवाई के नाम पर नतीजा सिफर ही निकला. जिस अवधारणा को लेकर लोगों और आंदोलनकारियों ने संघर्ष किया इन 20 सालों में प्रदेश की जनता से घोटालों के अलावा कुछ नहीं देखा.

Last Updated : Nov 9, 2020, 1:05 PM IST
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