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उत्तराखंड में भी सख्त होगा धर्मांतरण कानून, जानकार बोले- धार्मिक असंतुलन रोकना जरूरी

उत्तराखंड पुलिस की तरफ से सामूहिक धर्मांतरण को लेकर एक प्रस्ताव भेजा गया है. इसमें धर्मांतरण के खिलाफ सख्त कानून बनाने की बात कही गई है. पुलिस की तरफ से गए इस प्रस्ताव में सामूहिक धर्मांतरण पर 10 साल तक की सजा और 25 हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान है. उत्तराखंड सरकार की इस सख्ती को कानूनी जानकारों ने भविष्य के लिए सही बताया है.

धर्मांतरण कानून
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Published : Oct 11, 2021, 7:04 PM IST

Updated : Oct 11, 2021, 10:49 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड सरकार भी धर्मांतरण विरोधी कानून (Anti-conversion Law) को और सख्त बनाने को लेकर विचार कर रही है. हाल ही में आई एक रिपोर्ट के आधार पर पिछले दिनों मुख्यमंत्री के आदेश पर उत्तराखंड पुलिस ने धर्मांतरण कानून में महत्वपूर्ण संशोधन के लिए प्रस्ताव गृह मंत्रालय को भेजा है. ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव से पहले पुलिस द्वारा भेजे गए संशोधन पर सरकार जल्द निर्णय लेगी और इस कानून में सख्त सजा का प्रावधान भी जोड़ेगी.

धर्मांतरण कानून क्या है और इसे अधिक सख्त बनाए जाने की क्यों जरूरत है, इस पर ईटीवी भारत ने कानून के जानकार और उत्तराखंड बार काउंसिल सदस्य वरिष्ठ अधिवक्ता चंद्रशेखर तिवारी से बात की. चंद्रशेखर तिवारी भी सख्त कानून के पक्ष में हैं.

उत्तराखंड में भी सख्त होगा धर्मांतरण कानून

पढ़ें- 'शादी के लिए धर्म बदलने वाले हिंदू कर रहे गलती, बच्चों को सिखाएं धर्म संस्कार'

धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 2018 में सख्ती जरूरी: चंद्रशेखर तिवारी का मानना है कि जिस तरह से प्रदेश में लंबे समय से लव जिहाद की तर्ज पर धर्मांतरण का खेल खेला जा रहा है, वो बहुत की संवेदनशील मामला है. जाति और समुदाय को गुमराह किया जा रहा है. इससे समाज में गंभीर परिस्थितियां पैदा हो रही हैं. ऐसे में सरकार को जितनी जल्द हो सके धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 2018 में संशोधन कर इसको सख्ती से लागू करे. ताकि लोगों को गुमराह कर और जबरन धर्म परिवर्तन जैसे आपराधिक मामलों पर रोक लगे और इस अपराध में लिप्त अपराधियों को सख्त सजा मिल सके.

भविष्य के लिए वर्तमान में कुछ कदम उठाने जरूरी: चद्रशेखर तिवारी के मुताबिक मौजूदा परिस्थितियों में धर्मांतरण कानून को सख्त करने की बहुत जरूरत है. यदि समय रहते इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया, तो भविष्य में इसका दुष्परिणाम समाज में एक बड़े धार्मिक असंतुलन के रूप में भी सामने आ सकता है.

पढ़ें- हरिद्वार में गंगा में मूर्ति विसर्जन पर प्रतिबंध, उल्लंघन पर 50 हजार का जुर्माना

चंद्रशेखर तिवारी का मानना है कि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की तर्ज पर उत्तराखंड सरकार को इस दिशा में कड़े उदम उठाने चाहिए. इस एक्ट में संशोधन कर कम से कम 10 साल की सजा और भारी जुर्माना जैसे प्रावधान जोड़ने चाहिए.

चंद्रशेखर तिवारी ने कहा कि इस एक्ट में संशोधन कर ट्रिपल तलाक की तर्ज पर अवैध धर्मांतरण मामले पर सीधे एफआईआर दर्ज कर गिरफ्तारी होनी चाहिए. ताकि नाबालिग बच्चियों से लेकर एक विशेष गरीब तबके के लोगों को अवैध धर्मांतरण का शिकार होने से बचाया जा सके. यानि भविष्य में उन्हें कोई इसके लिए मजबूर नहीं कर सके. चंद्रशेखर तिवारी ने कहा कि धर्मांतरण कानून में सख्ती के बाद इसे संगीन अपराध की श्रेणी में जोड़ा जाना चाहिए, ताकि पीड़िता को न्याय मिल सके.

यह है उत्तर प्रदेश का कानून: उत्तर प्रदेश सरकार ने जबरन होने वाली अंतरधार्मिक शादियां रोकने के लिए कानून बनाया हुआ है. इसे गैर कानूनी धर्मांतरण कानून 2020 नाम दिया गया. इसमें जबरन धर्म परिवर्तन करवाने वालों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है. इसके मुताबिक जबरन धर्म परिवर्तन करवाना संज्ञेय और गैर जमानती अपराध है. इसमें अलग-अलग मामलों के लिए अलग-अलग प्रावधान किए गए हैं. धर्म छिपाकर शादी करने पर 10 साल तक की सजा, नाबालिग या अनुसूचित जाति या जनजाति की लड़की का धर्म परिवर्तन करवाने पर 10 साल की सजा, 25 हजार रुपये जुर्माना हो सकता है. इसके साथ ही गैर कानूनी सामूहिक धर्म परिवर्तन करवाने पर 50 हजार रुपये जुर्माना और तीन से 10 साल तक की सजा का प्रावधान है.

यह है उत्तराखंड का कानून: उत्तराखंड में इसका नाम धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम-2018 है. इसके तहत बिना अनुमति के यदि कोई धर्मांतरण या इसकी साजिश करता है, तो उसे अधिकतम पांच साल की सजा हो सकती है. सरकार ऐसे धर्मांतरण को शून्य भी कर सकती है. यह प्रलोभन देकर या दैवी कृपा बताकर धर्मांतरण करने वालों पर प्रभावी होगा. धमकाने वालों और मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने वालों पर कार्रवाई की जाती है. इसके साथ ही यदि कोई व्यक्ति अपना धर्म बदलवाना चाहता तो उसे एक माह पहले अपने जिले के जिलाधिकारी को बताना होगा. बता दें कि उत्तराखंड धर्मांतरण कानून 2018 लागू होने के बाद प्रदेश में कुल दो मामले दर्ज हुए है, जिसमें एक देहरादून के पटेल नगर थाना क्षेत्र में और दूसरा हरिद्वार जिले के रुड़की में.

देहरादून: उत्तराखंड सरकार भी धर्मांतरण विरोधी कानून (Anti-conversion Law) को और सख्त बनाने को लेकर विचार कर रही है. हाल ही में आई एक रिपोर्ट के आधार पर पिछले दिनों मुख्यमंत्री के आदेश पर उत्तराखंड पुलिस ने धर्मांतरण कानून में महत्वपूर्ण संशोधन के लिए प्रस्ताव गृह मंत्रालय को भेजा है. ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव से पहले पुलिस द्वारा भेजे गए संशोधन पर सरकार जल्द निर्णय लेगी और इस कानून में सख्त सजा का प्रावधान भी जोड़ेगी.

धर्मांतरण कानून क्या है और इसे अधिक सख्त बनाए जाने की क्यों जरूरत है, इस पर ईटीवी भारत ने कानून के जानकार और उत्तराखंड बार काउंसिल सदस्य वरिष्ठ अधिवक्ता चंद्रशेखर तिवारी से बात की. चंद्रशेखर तिवारी भी सख्त कानून के पक्ष में हैं.

उत्तराखंड में भी सख्त होगा धर्मांतरण कानून

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धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 2018 में सख्ती जरूरी: चंद्रशेखर तिवारी का मानना है कि जिस तरह से प्रदेश में लंबे समय से लव जिहाद की तर्ज पर धर्मांतरण का खेल खेला जा रहा है, वो बहुत की संवेदनशील मामला है. जाति और समुदाय को गुमराह किया जा रहा है. इससे समाज में गंभीर परिस्थितियां पैदा हो रही हैं. ऐसे में सरकार को जितनी जल्द हो सके धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 2018 में संशोधन कर इसको सख्ती से लागू करे. ताकि लोगों को गुमराह कर और जबरन धर्म परिवर्तन जैसे आपराधिक मामलों पर रोक लगे और इस अपराध में लिप्त अपराधियों को सख्त सजा मिल सके.

भविष्य के लिए वर्तमान में कुछ कदम उठाने जरूरी: चद्रशेखर तिवारी के मुताबिक मौजूदा परिस्थितियों में धर्मांतरण कानून को सख्त करने की बहुत जरूरत है. यदि समय रहते इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया, तो भविष्य में इसका दुष्परिणाम समाज में एक बड़े धार्मिक असंतुलन के रूप में भी सामने आ सकता है.

पढ़ें- हरिद्वार में गंगा में मूर्ति विसर्जन पर प्रतिबंध, उल्लंघन पर 50 हजार का जुर्माना

चंद्रशेखर तिवारी का मानना है कि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की तर्ज पर उत्तराखंड सरकार को इस दिशा में कड़े उदम उठाने चाहिए. इस एक्ट में संशोधन कर कम से कम 10 साल की सजा और भारी जुर्माना जैसे प्रावधान जोड़ने चाहिए.

चंद्रशेखर तिवारी ने कहा कि इस एक्ट में संशोधन कर ट्रिपल तलाक की तर्ज पर अवैध धर्मांतरण मामले पर सीधे एफआईआर दर्ज कर गिरफ्तारी होनी चाहिए. ताकि नाबालिग बच्चियों से लेकर एक विशेष गरीब तबके के लोगों को अवैध धर्मांतरण का शिकार होने से बचाया जा सके. यानि भविष्य में उन्हें कोई इसके लिए मजबूर नहीं कर सके. चंद्रशेखर तिवारी ने कहा कि धर्मांतरण कानून में सख्ती के बाद इसे संगीन अपराध की श्रेणी में जोड़ा जाना चाहिए, ताकि पीड़िता को न्याय मिल सके.

यह है उत्तर प्रदेश का कानून: उत्तर प्रदेश सरकार ने जबरन होने वाली अंतरधार्मिक शादियां रोकने के लिए कानून बनाया हुआ है. इसे गैर कानूनी धर्मांतरण कानून 2020 नाम दिया गया. इसमें जबरन धर्म परिवर्तन करवाने वालों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है. इसके मुताबिक जबरन धर्म परिवर्तन करवाना संज्ञेय और गैर जमानती अपराध है. इसमें अलग-अलग मामलों के लिए अलग-अलग प्रावधान किए गए हैं. धर्म छिपाकर शादी करने पर 10 साल तक की सजा, नाबालिग या अनुसूचित जाति या जनजाति की लड़की का धर्म परिवर्तन करवाने पर 10 साल की सजा, 25 हजार रुपये जुर्माना हो सकता है. इसके साथ ही गैर कानूनी सामूहिक धर्म परिवर्तन करवाने पर 50 हजार रुपये जुर्माना और तीन से 10 साल तक की सजा का प्रावधान है.

यह है उत्तराखंड का कानून: उत्तराखंड में इसका नाम धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम-2018 है. इसके तहत बिना अनुमति के यदि कोई धर्मांतरण या इसकी साजिश करता है, तो उसे अधिकतम पांच साल की सजा हो सकती है. सरकार ऐसे धर्मांतरण को शून्य भी कर सकती है. यह प्रलोभन देकर या दैवी कृपा बताकर धर्मांतरण करने वालों पर प्रभावी होगा. धमकाने वालों और मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने वालों पर कार्रवाई की जाती है. इसके साथ ही यदि कोई व्यक्ति अपना धर्म बदलवाना चाहता तो उसे एक माह पहले अपने जिले के जिलाधिकारी को बताना होगा. बता दें कि उत्तराखंड धर्मांतरण कानून 2018 लागू होने के बाद प्रदेश में कुल दो मामले दर्ज हुए है, जिसमें एक देहरादून के पटेल नगर थाना क्षेत्र में और दूसरा हरिद्वार जिले के रुड़की में.

Last Updated : Oct 11, 2021, 10:49 PM IST
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