देहरादून: उत्तराखंड के आर्थिक हालातों की बदहाली किसी से छिपी नहीं है. राज्य सरकारों की तरफ से कर्ज लेकर प्रदेश में योजनाओं को आगे बढ़ाने और तनख्वाह की व्यवस्था करने तक के हालात पैदा हो गए हैं. कैग की रिपोर्ट में पाया गया है कि सरकार कर्ज लेकर इसका इस्तेमाल कर्ज और इसका ब्याज चुकाने में भी खर्च कर रही है.
यूं तो उत्तराखंड के खराब वित्तीय हालात प्रदेश के लिए चिंता का सबब रहे हैं. लेकिन विधानसभा में सरकार ने कैग की रिपोर्ट पटल पर रखी तो आंकड़ों को लेकर स्थितियां और भी ज्यादा स्पष्ट हो गईं. आंकड़े जाहिर करते हैं कि राज्य सरकार कर्ज के ब्याज को चुकाने में कर्ज की 60 फीसदी रकम खर्च कर देती है. जाहिर है कि सरकार के कर्ज लेने का मकसद योजनाओं को धरातल पर उतारना होता है. लेकिन नया कर्ज पुरानी देनदारियों को चुकाने में खर्च होने के कारण उस कर्ज का सही लाभ राज्य को नहीं मिल पा रहा है.
राज्य पर कर्ज का आंकड़ा भी बढ़ता जा रहा है. प्रदेश में भाजपा सरकार आने के बाद से अब तक करीब 29 हजार 168 करोड़ का कर्जा लिया गया, जिसमें बड़ी रकम कर्ज के ब्याज पर ही भुगतान कर दी गई. राज्य सरकार ना तो राजस्व के नए रिसोर्सेस बड़ी मात्रा में खड़े कर पाई है और ना ही इतने बड़े कर्ज को चुकाने के लिए सरकार के पास कोई प्लान है. खास बात यह है कि सरकार करीब 4000 करोड़ का अनुपूरक बजट लाकर 5000 करोड़ से अधिक की धनराशि खर्च नहीं कर पाई.
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बड़ी बात यह है कि 2005 से 2020 तक 42 हजार करोड़ की धनराशि का हिसाब तक नहीं दिया जा सका है. दरअसल, साल के अंत तक अगर विनियोग से अधिक की धनराशि खर्च की जाती है तो लोक लेखा समिति की सिफारिश के आधार पर इस राशि को नियमित किया जाता है, जिसे नियमित नहीं कराए जाने की बात कही गई है.
यही नहीं कई योजनाएं केवल इसलिए लटकी है. क्योंकि इस पर समय से बजट उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है. इन सभी स्थितियों को कैग ने गंभीर माना है. हालांकि, इन सभी स्थितियों के बावजूद भाजपा सरकार प्रदेश में वित्तीय हालातों पर कर्ज को लेकर जो चिंता जाहिर की जा रही है. उसे नकार रही है. भाजपा नेता शादाब शम्स कहते हैं कि विभिन्न योजनाओं और प्रदेश की स्थिति को देखते हुए कर्ज लिया जाता है. सरकार पूरी प्लानिंग और विकास कार्यों को देख कर काम कर रही है.
रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया है कि स्वास्थ्य समेत कई महत्वपूर्ण सेक्टर में बजट काफी कम खर्च किया जा रहा है. खास तौर पर हिमालयी राज्यों से इसका तुलनात्मक अध्ययन के जरिए एक जरूरी सेक्टर में हो रहे. कम खर्चे को मूलभूत सुविधाओं के लिए खराब माना जा सकता है. कैग की रिपोर्ट में प्रदेश के इन वित्तीय हालातों को लेकर जताई गई चिंता और गलत वित्तीय प्रबंधन पर कांग्रेस ने भी सवाल खड़े किए हैं.
कांग्रेस की प्रदेश प्रवक्ता गरिमा दसौनी कहती हैं कि सरकार का ध्यान केवल कर्ज लेने तक ही सीमित है और खराब प्रबंधन और नीतियों के कारण इसका नुकसान राज्य को वित्तीय रूप में हो रहा है. गरिमा दसौनी ने कहा है कि कांग्रेस समेत तमाम सरकारों में करीब 50,000 करोड़ तक का कर्जा था. लेकिन भाजपा की 5 साल की सरकार में अबतक 30 हजार करोड़ तक का कर्जा प्रदेश पर लाद दिया गया, जबकि सरकार इस कर्जे का फायदा भी नहीं ले पा रही है. उसका विकास में कोई फायदा नहीं लिया जा पा रहा है.