देहरादून: संसद में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को 'राष्ट्रपत्नी' कहकर संबोधित करने की गलती को लेकर कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने माफी मांग ली है. उन्होंने राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखकर सफाई दी है कि उन्होंने भूलवश वो गलत शब्द इस्तेमाल किया था. हालांकि, इसके बाद भी भाजपा इस मामले को छोड़ने के पक्ष में दिखाई नहीं देती. भाजपा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से माफी की मांग कर रही है. वहीं, इस राजनीतिक विवाद के बीच कांग्रेस के पूर्व सांसद एवं उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने एक सार्वजनिक पत्र लिखकर अधीर रंजन प्रकरण को समाप्त करने की गुजारिश की है.
अधीर रंजन प्रकरण को करें समाप्त: सोशल मीडिया पर एक लंबा पोस्ट करते हुए हरीश रावत ने कहा है कि, वो एक पूर्व सांसद और हिंदी के प्रति समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर अनुरोध करते हैं कि अधीर रंजन प्रकरण को यहीं समाप्त माना जाए. रंजन अपने बयान को लिए माफी मांग चुके हैं. रावत ने लिखा कि, भारतीय राजनीति इतनी तंगदिल नहीं होनी चाहिए कि उसे महामहिम के लिए अनायास निकले एक शब्द के लिए अपने साथी द्वारा महामहिम के सम्मान के प्रति मांगी गई क्षमा को स्वीकार न किया जाए.
सोनिया गांधी के साथ किया गया कृत्य निंदनीय: इसके साथ ही हरीश रावत ने संसद में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को घेरकर घमकाने का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि, इस प्रकरण के बाद जिस तरीके से भाजपा सांसदों ने घेरकर सोनिया जी को धमकाने का प्रयास किया है, वो निंदनीय है. ये निंदनीय है कि गलती अधीर रंजन से हो और उसमें सोनिया गांधी को घसीटा जाए.
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एक पूर्व सांसद का अनुरोध, एक हिंदी के प्रति समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता का अनुरोध, बस करो श्री अधीर रंजन प्रकरण को..https://t.co/helJ5AciNv..न दिखाइए, आपका यह छोटापन अब ओछा भी लग रहा है।#india #BJP4IND #संसद #Congress @narendramodi #SoniyaGandhi #DroupatiMurmu@INCIndia pic.twitter.com/ULIvB24xZk
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अहिंदी भाषी साथियों को न करें हतोत्साहित: इसी बीच दक्षिण के अहिंदी भाषी लोगों को लेकर भी उन्होंने अपने विचार रखे हैं. रावत ने कहा कि, अगर इसी तरह इन मुद्दों को बढ़ाया गया तो अहिंदी भाषी भाइयों को हिंदी में वार्तालाप करने, हिंदी को अपने भाषण के और अपनी बातचीत की भाषा बनाने या हिंदी को साहित्य के तौर पर सीखने से सिर्फ हतोत्साहित करना होगा. इसी के साथ उन्होंने अटल बिहारी वाजपेई के समय का एक किस्सा भी साझा किया.
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अटल जी के समय का किस्सा किया साझा: उत्तराखंड के पूर्व सीएम ने कहा कि, वो वाजपेयी जी के साथ राजभाषा समिति की दूसरी उप समिति के सदस्य रहे हैं. वाजपेयी जी की पहल पर एक अहिंदी भाषी तोम्बी सिंह जी को समिति का संयोजक बनाया गया था. इस समिति में अहिंदी भाषी सदस्यों में दक्षिण के सांसद भी थे. अटल जी हमेशा सभी सदस्यों से टूटी-फूटी हिंदी में ही सही, लेकिन अधिकारियों से प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित करते थे. एक बार अधिकारियों से प्रश्न पूछने की एक दक्षिण भारतीय सांसद की बारी आई तो उन्होंने कुछ ऐसा शब्द कह दिया जिसका अर्थ बड़ा हास्यास्पद होता है.
लेकिन तब सभी लोग जोर से हंसे और अटल जी ने मेज थपथपा कर उनके बोलने के अंदाज को प्रोत्साहित किया. जबकि जो शब्द बोला गया था, वो एक प्रकार से गलत था और यही गलती वो सांसद मातृभाषा शब्द के उच्चारण में भी कर गए थे. मगर सबने उनके प्रयास की सराहना की थी. ये तब था जबकि वो शख्स कहीं दूर-दूर से भी अटल जी के पार्टी के नहीं थे. इसलिए हमें हिंदी को यदि राष्ट्रभाषा बनाना है तो राजनीति की तंगदिली से आगे बढ़कर सोचना पड़ेगा.
वंदनीय हैं महामहिम: रावत ने कहा कि, नारी का हर स्वरूप वंदनीय है. हमारी राष्ट्रपति भी हर रूप में वंदनीय हैं. कोई भी व्यक्ति कभी ऐसा महापाप नहीं कर सकता कि जिससे यह लगे वो उनका अपमान कर रहा है. यदि प्रधानमंत्री एक स्पिन बॉल के बजाय स्ट्रेट बॉल डालकर विपक्ष से ये कहते कि इस बार क्यों न हम एक आदिवासी महिला को देश के सर्वोच्च पद पर बैठाएं, तो द्रौपदी मुर्मू जी सर्वसम्मति से देश की राष्ट्रपति बनी होतीं. आज वो हमारी राष्ट्रपति हैं. आखिर में हरदा ने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा कि, राजनीति के लोभ में छोटापन न दिखाएं, क्योंकि ये छोटापन अब ओछा भी लग रहा है.