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आक्रामक भालुओं पर वन विभाग रखेगा नजर, रेडियो कॉलर लगाने की कवायद तेज

भालुओं के आतंक को देखते हुए अब उन पर निगरानी रखने के लिए वन विभाग ने कार्य योजना तैयार कर ली है. वन महकमा प्रभावित पहाड़ी जनपदों में भालूओं पर रेडियो कॉलर लगाएगा.

dehradun
भालू
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Published : Sep 3, 2021, 8:42 AM IST

देहरादून: उत्तराखंड में हाथियों, बाघ और तेंदुओं के बाद पहली बार भालुओं पर भी रेडियो कॉलर लगाने की तैयारी की जा रही है. खास बात यह है कि प्रदेश में पिछले 4 सालों में अब तक सबसे ज्यादा वन्यजीवों को रेडियो कॉलर किया गया है और अब वालों पर भी नजर रखने के लिए उन्हें रेडियो कॉलर किए जाने की तैयारी की जा रही है.

उत्तराखंड की पहाड़ी जनपदों में भालुओं के आतंक को देखते हुए अब उन पर निगरानी रखने के लिए वन विभाग ने कार्य योजना तैयार कर ली है. इस दिशा में प्रभावित पहाड़ी जनपदों में भालूओं को रेडियो कॉलर लगाया जाएगा. पहले चरण में दो भालूओं को रेडियो कॉलर किए जाने की कोशिश की जा रही है. इसके लिए चमोली जनपद के कंटेनमेंट जॉन का चयन किया गया है जहां पर पिछले दिनों से भालुओं का आतंक रहा है. क्षेत्र में दो भालू को चिन्हित करते हुए उन्हें रेडियो कॉलर किया जाएगा और उसके बाद क्षेत्र से दूर छोड़ा जाएगा. इसके बाद इन दोनों पर ही वन विभाग निगरानी रखेगा. इनकी गतिविधियों के साथ ही हमला करने की वजह और तरीकों को भी वन विभाग स्टडी कर सकेगा.

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मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग ने बताया कि फिलहाल चमोली जिले में दो भालुओं को रेडियो कॉलर किया जाना है जबकि इसके बाद रुद्रप्रयाग जिले में भी दूसरे चरण के तहत रेडियो कॉलर लगाए जाएंगे. उत्तराखंड में फिलहाल 14 वन्य जीवो को रेडियो कॉलर लगाया गया है जिसमें से एक बार अपना रेडियो कॉलर निकाल कर भागने में कामयाब रहा है. वहीं प्रदेश में 9 लेपर्ड को रेडियो कॉलर किया गया था, जिन पर लगातार वन विभाग निगरानी रखे हुए हैं, इसके अलावा तीन हाथियों पर भी रेडियो कॉलर हरिद्वार क्षेत्र में किया गया था, उधर कॉर्बेट से राजाजी में लाए गए दो बाघों में भी रेडियो कॉलर लगाए गए थे, हालांकि इसमें से एक बार अपना रेडियो कॉलर निकाल कर भागने में कामयाब रहा था.

पढ़ें-चीन बॉर्डर तक जाने वाली इस सड़क का हुआ बुरा हाल, सेना को हो सकती है दिक्कत

रेडियो कॉलर के जरिए वन विभाग इन सभी वन्यजीवों पर निगरानी बनाए हुए हैं. वन विभाग ने पाया है कि यह सभी वन्य जीव जिनको रेडियो कॉलर लगाकर करीब 50 से 60 किलोमीटर दूरी पर छोड़ा जाता है वह वन्यजीव सभी कम से कम एक बार अपने मूल जगहों पर जरूर वापस लौटते हैं, हालांकि अच्छी बात यह है कि रेडियो कॉलर किए गए वन्यजीवों की तरफ से किसी भी व्यक्ति पर हमला नहीं किया गया है. उधर यह भी पाया गया कि रेडियो कॉलर लगाए गए वन्यजीवों ने दूसरी जगह पर अपनी टेरिटरी बना ली है.इसी अनुभव को देखते हुए अब वन विभाग भालुओं को रेडियो कॉलर लगा रहा है और इसके जरिए आक्रामक होते इन वन्य जीव पर वन विभाग निगरानी रख सकेगा.

देहरादून: उत्तराखंड में हाथियों, बाघ और तेंदुओं के बाद पहली बार भालुओं पर भी रेडियो कॉलर लगाने की तैयारी की जा रही है. खास बात यह है कि प्रदेश में पिछले 4 सालों में अब तक सबसे ज्यादा वन्यजीवों को रेडियो कॉलर किया गया है और अब वालों पर भी नजर रखने के लिए उन्हें रेडियो कॉलर किए जाने की तैयारी की जा रही है.

उत्तराखंड की पहाड़ी जनपदों में भालुओं के आतंक को देखते हुए अब उन पर निगरानी रखने के लिए वन विभाग ने कार्य योजना तैयार कर ली है. इस दिशा में प्रभावित पहाड़ी जनपदों में भालूओं को रेडियो कॉलर लगाया जाएगा. पहले चरण में दो भालूओं को रेडियो कॉलर किए जाने की कोशिश की जा रही है. इसके लिए चमोली जनपद के कंटेनमेंट जॉन का चयन किया गया है जहां पर पिछले दिनों से भालुओं का आतंक रहा है. क्षेत्र में दो भालू को चिन्हित करते हुए उन्हें रेडियो कॉलर किया जाएगा और उसके बाद क्षेत्र से दूर छोड़ा जाएगा. इसके बाद इन दोनों पर ही वन विभाग निगरानी रखेगा. इनकी गतिविधियों के साथ ही हमला करने की वजह और तरीकों को भी वन विभाग स्टडी कर सकेगा.

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मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग ने बताया कि फिलहाल चमोली जिले में दो भालुओं को रेडियो कॉलर किया जाना है जबकि इसके बाद रुद्रप्रयाग जिले में भी दूसरे चरण के तहत रेडियो कॉलर लगाए जाएंगे. उत्तराखंड में फिलहाल 14 वन्य जीवो को रेडियो कॉलर लगाया गया है जिसमें से एक बार अपना रेडियो कॉलर निकाल कर भागने में कामयाब रहा है. वहीं प्रदेश में 9 लेपर्ड को रेडियो कॉलर किया गया था, जिन पर लगातार वन विभाग निगरानी रखे हुए हैं, इसके अलावा तीन हाथियों पर भी रेडियो कॉलर हरिद्वार क्षेत्र में किया गया था, उधर कॉर्बेट से राजाजी में लाए गए दो बाघों में भी रेडियो कॉलर लगाए गए थे, हालांकि इसमें से एक बार अपना रेडियो कॉलर निकाल कर भागने में कामयाब रहा था.

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रेडियो कॉलर के जरिए वन विभाग इन सभी वन्यजीवों पर निगरानी बनाए हुए हैं. वन विभाग ने पाया है कि यह सभी वन्य जीव जिनको रेडियो कॉलर लगाकर करीब 50 से 60 किलोमीटर दूरी पर छोड़ा जाता है वह वन्यजीव सभी कम से कम एक बार अपने मूल जगहों पर जरूर वापस लौटते हैं, हालांकि अच्छी बात यह है कि रेडियो कॉलर किए गए वन्यजीवों की तरफ से किसी भी व्यक्ति पर हमला नहीं किया गया है. उधर यह भी पाया गया कि रेडियो कॉलर लगाए गए वन्यजीवों ने दूसरी जगह पर अपनी टेरिटरी बना ली है.इसी अनुभव को देखते हुए अब वन विभाग भालुओं को रेडियो कॉलर लगा रहा है और इसके जरिए आक्रामक होते इन वन्य जीव पर वन विभाग निगरानी रख सकेगा.

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