देहरादून: उत्तराखंड में कर्मचारियों की वरिष्ठता सूची मेरिट के बजाय आरक्षण रोस्टर के लिहाज से निर्धारित करने पर कर्मचारियों ने विरोध किया है. इस संदर्भ में उत्तराखंड ओबीसी इंप्लाइज एसोसिएशन ने आपत्ति दर्ज कराते हुए इसे संवैधानिक रूप से गलत करार दिया है. उधर, दूसरी तरफ पेयजल निगम इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की तैयारी कर रहा है.
प्रदेश में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद वरिष्ठता में आरक्षण रोस्टर लागू होने से अब नया विवाद शुरू हो गया है. दरअसल, खबर है कि पेयजल निगम में साल 2005 में 241 अभियंताओं की भर्ती की गई. जिन्हें अलग-अलग तिथियों में नियुक्ति दी गई जबकि इन सभी का चयन एक साथ किया गया था. उस समय के सेवा नियमावली के अनुसार नियुक्ति की तिथि के आधार पर ही वरिष्ठता के निर्धारण की बात तय थी लेकिन बाद में यह मामला तब उछला जब पदोन्नति में आरक्षण को खत्म कर दिया गया.
इसके बाद कुछ अभियंताओं ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और यह मामला हाईकोर्ट तक भी जा पहुंचा. बाद में यही मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा. यहां 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने रोस्टर के आधार पर वरिष्ठता तय करने का निर्णय दे दिया, लेकिन इस पर अमल नहीं हो पाया बाद में जब कोर्ट की अवमानना को लेकर नोटिस भेजा गया. इसके बाद आनन-फानन में आदेश के अनुसार ही रोस्टर को लागू कर दिया गया.
वहीं, अब इस मामले पर विसंगति पैदा होने की बात कही जा रही है. कहा जा रहा है कि चयन के दौरान ज्यादा नंबर पाने वाले अभियंता पीछे रह गए जबकि कम नंबर वाले अभियंताओं को वरिष्ठता दे दी गई, इसी को लेकर अब कर्मचारी संगठनों ने अपना विरोध शुरू कर दिया है. उधर, खबर है कि पेयजल निगम ने भी शासन से इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की अनुमति मांगी है. एंप्लाइज एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष दीपक जोशी ने कहा है कि इस नई व्यवस्था से संवैधानिक संकट पैदा हो गया है और यह पूरी तरह से गलत है.