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प्राकृतिक आपदा में मददगार बनेगा 'नभ नेत्र', चंद सेकेंड में होगी रियल टाइम मैपिंग - उत्तराखंड आपदा कंट्रोल स्टेशन

उत्तराखंड आपदा प्रबंधन ने सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी विकास प्राधिकरण यानी आईटीडीए ने मिलकर एक ऐसा वाहन तैयार किया है, जो किसी भी क्षेत्र में आपदा के समय वरदान साबित होगा. पूरे उत्तर भारत में केवल उत्तराखंड आपदा प्रबंधन के पास ऐसी तकनीक है, जिसके जरिए बिना नेटवर्क और बिना पावर सप्लाई के 24 घंटे से ज्यादा किसी आपदा प्रभावित क्षेत्र में ड्रोन ऑपरेशन के जरिए ऑनसाइट डाटा असेसमेंट किया जा सकता है. इसकी लाइव फीड भी टेलीकास्ट की जा सकती है.

Nabh Netr ground control station
उत्तराखंड आपदा कंट्रोल स्टेशन
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Published : Jun 21, 2022, 10:11 PM IST

देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड का प्राकृतिक सौंदर्य जितना पर्यटन को आकर्षित करता है, उतना ही उत्तराखंड का एक दूसरा स्याह पहलू भी है, जो कि आपदाओं से जुड़ा हुआ है. आपदाओं से उत्तराखंड का पुराना वास्ता है. हर साल उत्तराखंड में आने वाली दैवीय आपदाओं के चलते कई लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं. ऐसे में प्रदेश में आने वाली हर एक दैवीय आपदा में कम से कम नुकसान और लोगों को राहत पहुंचाने के लिए पूरी जिम्मेदारी आपदा प्रबंधन विभाग पर होती है. ऐसे में उत्तराखंड आपदा प्रबंधन ने सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी विकास प्राधिकरण यानी आईटीडीए के साथ मिलकर एक ऐसी तकनीक इजाद की है, जो आपदा के समय में वरदान साबित होगी.

उत्तराखंड आपदा प्रबंधन और आईटीडीए ने मिलकर तकरीबन 1 करोड़ 10 लाख की कीमत से मोबाइल ग्राउंड कंट्रोल स्टेशन को विकसित किया है. यह वाहन सभी हाईटेक सुविधाओं से लैस है. इस वाहन में पावर बैकअप सैटेलाइट कनेक्शन, एक 360 कैमरा वाहन के ऊपर और अत्याधुनिक तकनीक वाला ड्रोन मौजूद है. उत्तराखंड आईटीडीए ने ऐसे वाहन का नाम 'नभ नेत्र' दिया है. आईटीडीए द्वारा विकसित किए गए इस 'नभ नेत्र' मोबाइल ग्राउंड कंट्रोल स्टेशन के जरिए किसी भी आपदा प्रभावित इलाके में जहां पर मोबाइल कनेक्टिविटी और विद्युत कनेक्टिविटी टूट चुकी हो, ऐसे में वहां पर आपदा आने पर या फिर कोई दुर्घटना घर जाने पर इस ग्राउंड कंट्रोल स्टेशन के जरिए आपदा न्यूनीकरण को लेकर बेहद सकारात्मक प्रयास किए जा सकते हैं.

उत्तराखंड आपदा प्रबंधन और ITDA ने बनाया नभ नेत्र

अत्याधुनिक ड्रोन से सर्विलांस: नभ नेत्र मोबाइल ग्राउंड कंट्रोल स्टेशन ऑपरेट होने वाला ड्रोन बेहद आधुनिक और अपने साथ तकरीबन दो से ढाई किलो का पेलोड ले जा सकता है. यह ड्रोन ऑपरेशन एरिया से तकरीबन 500 मीटर ऊंचाई तक उड़ सकता है. इस ड्रोन पर जीपीएस के अलावा थर्मल सेंसर और नाइट विजन के साथ एक हाई डेफिनेशन कैमरा लगा हुआ है.

Nabh Netr ground control station
नभ नेत्र की खासियत.

ड्रोन पर लगे जीपीएस से आपदा प्रभावित क्षेत्र का रियल टाइम मैपिंग करके मोबाइल ग्राउंड स्टेशन यानी गाड़ी में लगी मशीनों के जरिए ड्रोन द्वारा भेजे गए मैपिंग और डाटा को प्रोसेस करके आपदा से हुए नुकसान का तुरंत आकलन किया जा सकता है. तो वहीं, ड्रोन पर लगे थर्मल कैमरे से आपदा प्रभावित क्षेत्र में थर्मल असेसमेंट किया जा सकता है, जो कि सबसे ज्यादा जिंदा और मृत लोगों को ढूंढने में काम आता है. इसके अलावा हाई डेफिनेशन और नाइट विजन कैमरे से आपदा प्रभावित क्षेत्र का अच्छे से मुआयना किया जा सकता है, जिसके बाद रेस्क्यू ऑपरेशन में बेहद आसानी मिलती है.
पढ़ें- उत्तराखंड में 'AAP' पर क्यों आई है आफत? बिखर गया 'झाड़ू' का तिनका!

24 घंटे का पावर बैकअप: नभ नेत्र मोबाइल ग्राउंड कंट्रोल स्टेशन के पास अपनी खुद की पावर सप्लाई है. इसे बिजली के माध्यम से चार्ज किया जा सकता है, जो कि तकरीबन 24 घंटे के पावर बैकअप के साथ चलता है. इसे जनरेटर से भी ऑपरेट किया जा सकता है. डायरेक्ट बिजली से भी चलाया जा सकता है.

सैटेलाइट से जुड़ने में सक्षम: अगर कनेक्टिविटी की बात करें तो गाड़ी में एक सैटेलाइट एंटीना लगा हुआ है, जिसके माध्यम से अगर आपदा ग्रस्त क्षेत्र में कनेक्टिविटी नहीं है, तो सैटेलाइट कनेक्टिविटी के माध्यम से आपदा कंट्रोल रूम में रिपोर्ट की जा सकती है. वहीं, ड्रोन में लगी बैटरी में 60 मिनट का फ्लाइंग टाइम है. ऐसी चार बैटरीयां इस कंट्रोल स्टेशन पर मौजूद है, जिसके जरिए ड्रोन को लगातार बैटरी बदल कर उड़ाया जा सकता है.

लाइव फीड और ऑनसाइट डेटा प्रोसेसिंग: नभ नेत्र मोबाइल ग्राउंड कंट्रोल स्टेशन एक ऐसी तकनीक है, जिसके माध्यम से ड्रोन और गाड़ी में लगे 360 कैमरा की लाइव फीड को विभाग के सर्वर पर कहीं भी देखा जा सकता है. यानी कि आपदा प्रभावित क्षेत्र से मिलने वाली तस्वीरों को सीधे सेंट्रल कंट्रोल रूम में देखा जा सकता है. वही, इसके अलावा ग्राउंड कंट्रोल स्टेशन के जरिए मिलने वाले डाटा को प्रोसेस करके आपदा के नुकसान का आंकलन किया जा सकता है. साथ ही किस तरह से रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया जाना है और मरने के अलावा बचे हुए लोगों का भी असेसमेंट किया जा सकता है. जिसके जरिए कम समय में अधिक लोगों को बचाया जा सकता है. तकनीकी के मदद से आपदा न्यूनीकरण को एक नए आयाम पर ले जाया जा सकता है.

देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड का प्राकृतिक सौंदर्य जितना पर्यटन को आकर्षित करता है, उतना ही उत्तराखंड का एक दूसरा स्याह पहलू भी है, जो कि आपदाओं से जुड़ा हुआ है. आपदाओं से उत्तराखंड का पुराना वास्ता है. हर साल उत्तराखंड में आने वाली दैवीय आपदाओं के चलते कई लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं. ऐसे में प्रदेश में आने वाली हर एक दैवीय आपदा में कम से कम नुकसान और लोगों को राहत पहुंचाने के लिए पूरी जिम्मेदारी आपदा प्रबंधन विभाग पर होती है. ऐसे में उत्तराखंड आपदा प्रबंधन ने सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी विकास प्राधिकरण यानी आईटीडीए के साथ मिलकर एक ऐसी तकनीक इजाद की है, जो आपदा के समय में वरदान साबित होगी.

उत्तराखंड आपदा प्रबंधन और आईटीडीए ने मिलकर तकरीबन 1 करोड़ 10 लाख की कीमत से मोबाइल ग्राउंड कंट्रोल स्टेशन को विकसित किया है. यह वाहन सभी हाईटेक सुविधाओं से लैस है. इस वाहन में पावर बैकअप सैटेलाइट कनेक्शन, एक 360 कैमरा वाहन के ऊपर और अत्याधुनिक तकनीक वाला ड्रोन मौजूद है. उत्तराखंड आईटीडीए ने ऐसे वाहन का नाम 'नभ नेत्र' दिया है. आईटीडीए द्वारा विकसित किए गए इस 'नभ नेत्र' मोबाइल ग्राउंड कंट्रोल स्टेशन के जरिए किसी भी आपदा प्रभावित इलाके में जहां पर मोबाइल कनेक्टिविटी और विद्युत कनेक्टिविटी टूट चुकी हो, ऐसे में वहां पर आपदा आने पर या फिर कोई दुर्घटना घर जाने पर इस ग्राउंड कंट्रोल स्टेशन के जरिए आपदा न्यूनीकरण को लेकर बेहद सकारात्मक प्रयास किए जा सकते हैं.

उत्तराखंड आपदा प्रबंधन और ITDA ने बनाया नभ नेत्र

अत्याधुनिक ड्रोन से सर्विलांस: नभ नेत्र मोबाइल ग्राउंड कंट्रोल स्टेशन ऑपरेट होने वाला ड्रोन बेहद आधुनिक और अपने साथ तकरीबन दो से ढाई किलो का पेलोड ले जा सकता है. यह ड्रोन ऑपरेशन एरिया से तकरीबन 500 मीटर ऊंचाई तक उड़ सकता है. इस ड्रोन पर जीपीएस के अलावा थर्मल सेंसर और नाइट विजन के साथ एक हाई डेफिनेशन कैमरा लगा हुआ है.

Nabh Netr ground control station
नभ नेत्र की खासियत.

ड्रोन पर लगे जीपीएस से आपदा प्रभावित क्षेत्र का रियल टाइम मैपिंग करके मोबाइल ग्राउंड स्टेशन यानी गाड़ी में लगी मशीनों के जरिए ड्रोन द्वारा भेजे गए मैपिंग और डाटा को प्रोसेस करके आपदा से हुए नुकसान का तुरंत आकलन किया जा सकता है. तो वहीं, ड्रोन पर लगे थर्मल कैमरे से आपदा प्रभावित क्षेत्र में थर्मल असेसमेंट किया जा सकता है, जो कि सबसे ज्यादा जिंदा और मृत लोगों को ढूंढने में काम आता है. इसके अलावा हाई डेफिनेशन और नाइट विजन कैमरे से आपदा प्रभावित क्षेत्र का अच्छे से मुआयना किया जा सकता है, जिसके बाद रेस्क्यू ऑपरेशन में बेहद आसानी मिलती है.
पढ़ें- उत्तराखंड में 'AAP' पर क्यों आई है आफत? बिखर गया 'झाड़ू' का तिनका!

24 घंटे का पावर बैकअप: नभ नेत्र मोबाइल ग्राउंड कंट्रोल स्टेशन के पास अपनी खुद की पावर सप्लाई है. इसे बिजली के माध्यम से चार्ज किया जा सकता है, जो कि तकरीबन 24 घंटे के पावर बैकअप के साथ चलता है. इसे जनरेटर से भी ऑपरेट किया जा सकता है. डायरेक्ट बिजली से भी चलाया जा सकता है.

सैटेलाइट से जुड़ने में सक्षम: अगर कनेक्टिविटी की बात करें तो गाड़ी में एक सैटेलाइट एंटीना लगा हुआ है, जिसके माध्यम से अगर आपदा ग्रस्त क्षेत्र में कनेक्टिविटी नहीं है, तो सैटेलाइट कनेक्टिविटी के माध्यम से आपदा कंट्रोल रूम में रिपोर्ट की जा सकती है. वहीं, ड्रोन में लगी बैटरी में 60 मिनट का फ्लाइंग टाइम है. ऐसी चार बैटरीयां इस कंट्रोल स्टेशन पर मौजूद है, जिसके जरिए ड्रोन को लगातार बैटरी बदल कर उड़ाया जा सकता है.

लाइव फीड और ऑनसाइट डेटा प्रोसेसिंग: नभ नेत्र मोबाइल ग्राउंड कंट्रोल स्टेशन एक ऐसी तकनीक है, जिसके माध्यम से ड्रोन और गाड़ी में लगे 360 कैमरा की लाइव फीड को विभाग के सर्वर पर कहीं भी देखा जा सकता है. यानी कि आपदा प्रभावित क्षेत्र से मिलने वाली तस्वीरों को सीधे सेंट्रल कंट्रोल रूम में देखा जा सकता है. वही, इसके अलावा ग्राउंड कंट्रोल स्टेशन के जरिए मिलने वाले डाटा को प्रोसेस करके आपदा के नुकसान का आंकलन किया जा सकता है. साथ ही किस तरह से रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया जाना है और मरने के अलावा बचे हुए लोगों का भी असेसमेंट किया जा सकता है. जिसके जरिए कम समय में अधिक लोगों को बचाया जा सकता है. तकनीकी के मदद से आपदा न्यूनीकरण को एक नए आयाम पर ले जाया जा सकता है.

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