देहरादून: कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में पाखरो टाइगर सफारी के नाम पर हुए अवैध निर्माण और पेड़ कटान के मामले में सरकार सीबीआई (सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन) जांच को तैयार है. धामी सरकार ने इस मामले में उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ न जाने का निर्णय लिया है. सरकार के इस निर्णय से विभाग के साथ ही संबंधित अफसरों में भी हड़कंप मचना तय है.
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने पाखरो टाइगर सफारी के नाम पर हुए अवैध निर्माण और पेड़ कटान के मामले में सीबीआई जांच के जो आदेश किए थे, उस पर सरकार ने फाइनली अपना फैसला ले लिया है. दरअसल, हाईकोर्ट ने हाल ही में मामले की सुनवाई के बाद सीबीआई (केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो) जांच के आदेश दिए थे, जिस पर राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जाने को लेकर विचार किए जाने की बात कही थी. अब सरकार ने विचार करने के बाद अंतिम फैसला ले लिया है. इस मामले में हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील नहीं करने का मन बनाया है.
कई अधिकारी नप सकते हैं: खास बात यह है कि इस मामले में उत्तराखंड की SIT (स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम) पहले ही जांच कर रही है और तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत से लेकर विभाग के कई आईएफएस अधिकारी भी इसकी जांच के घेरे में हैं. बड़ी बात यह है कि शासन स्तर पर वित्तीय मंजूरी दिए जाने के विषय पर भी कुछ बड़े अधिकारियों के नाम सामने आ रहे हैं और सीबीआई जांच के दौरान शासन के अधिकारी भी पूछताछ के दायरे में आ सकते हैं.
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के बफर जोन में हुए निर्माण और पेड़ कटान पर ऐसे कई फैसले हैं, जो नियम कानून के खिलाफ हुए हैं. बड़ी बात यह है कि जांच के दौरान कई ऐसे अधिकारियों के नाम भी सामने आए हैं, जिन पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है. ऐसे में सीबीआई जांच शुरू होने के बाद शासन से लेकर वन विभाग के बड़े अधिकारी नप सकते हैं. क्योंकि उनकी स्वीकृतियां जांच के दायरे में होंगी, जिस कारण वो सीबीआई के कटघरे में खड़े होंगे.
क्या है पूरा मामला: साल 2019-20 में तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल में कॉर्बेट नेशनल पार्क की कालागढ़ टाइगर रिजर्व प्रभाग के पाखरो में 106 हेक्टेयर वन क्षेत्र में टाइगर सफारी के निर्माण को मंजूरी मिली थी. हालांकि कुछ समय बाद ही पाखरो टाइगर सफारी पर ग्रहण लग गया और ये योजना पूरी होने से विवाद में आ गई.
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दरअसल, पाखरो टाइगर सफारी के निर्माण को लेकर वन विभाग के अधिकारियों पर कुछ सवाल खड़े किए गए. आरोप ये है कि पाखरो टाइगर सफारी के निर्माण में पर्यावरणीय मानकों को दरकिनार किया गया है और बड़े पैमाने पर पेड़ों का कटान किया गया है. सच का पता लगाने के लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority) की टीम ने खुद मौके पर स्थलीय निरीक्षण किया था. National Tiger Conservation Authority की जांच में आरोप सही पाए गए थे. बाद में विभागीय जांच कराई गई तो उसमें भी आरोप सही पाए गए.
इस मामले में तत्कालीन मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग और कालागढ़ के तत्कालीन डीएफओ किशन चंद पर गाज गिरी थी. दोनों अधिकारियों को इस मामले में सस्पेंड किया गया था. फिलहाल दोनों अधिकारी रिटायर हो चुके हैं. इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट के सीईसी यानी सेंट्रल इंपावर्ड कमेटी ने भी इस प्रकरण पर कड़ा रुख अपनाया था. पाखरो टाइगर सफारी में कितने पेड़ काटे गए, इसकी सही जानकारी के लिए भारतीय वन सर्वेक्षण से इलाके का सर्वे भी कराया गया था.
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भारतीय वन सर्वेक्षण के सर्वे में जो बात निकलकर सामने आयी, उसके मुताबिक पखरो टाइगर सफारी के लिए 163 पेड़ों को काटने की अनुमति दी गई थी, लेकिन वहां पर 6093 पेड़ काट दिए गए. 21 अक्टूबर 2022 को एनजीटी ने पाखरो टाइगर सफारी के निर्माण पर रोक लगा दी थी. साथ ही सभी पहलुओं की जांच के लिए कमेठी भी गठित की थी.
तीन सदस्यों की इस कमेठी ने मार्च 2023 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी को करीब 128 पेज की रिपोर्ट सौंपी, जिसमें अवैध कार्यों की पूरी जानकारी दी गई. इस रिपोर्ट में वन विभाग के कुछ बड़े अधिकारियों के नाम भी दिए गए थे. साथ ही तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत पर भी सवाल खडे़ किए गए थे.