नई दिल्ली/देहरादून: उत्तराखंड में सशक्त भू-कानून (Land Law In Uttarakhand) बनाने और वनों पर अपने पुश्तैनी हक की मांग को लेकर Congress पार्टी के नेताओं सहित सामाजिक संगठनों के लोगों ने Jantar Mantar पर प्रदर्शन किया. प्रदर्शन के दौरान सभी लोगों ने एक स्वर में कहा कि उत्तराखंड में लागू मौजूदा भू-कानून राज्य के लिए मुफीद नहीं है. इसका फायदा उठाकर दूसरे राज्यों के लोग यहां जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं.
वन अधिकार आंदोलन के संस्थापक और उत्तराखंड सरकार के पूर्व मंत्री किशोर उपाध्याय ने बताया कि उत्तराखंड के लोगों के संघर्ष, समर्पण और बलिदान के कारण उत्तराखंड राज्य का निर्माण हुआ है. राज्य की भूमि का मात्र 9% भाग ही वहां के निवासियों के काम आता है, जबकि बाकी की जमीन राष्ट्र को समर्पित है. यह हम सबके लिए चिंता का विषय है कि अन्य हिमालयी राज्यों के लिए स्थानीय आवश्यकतानुसार भू-कानून बनाए गए, लेकिन उत्तराखंड भू-कानून से वंचित रह गया.
उत्तराखंड के निवासियों के लिए जंगल ही जिंदगी थी और जंगलों पर ही वे जीवन यापन करते थे. वन कानून को बनाते वक्त इस तथ्य की अनदेखी की गई और वहां के निवासियों को वनों पर पुश्तैनी हक और अधिकारों से वंचित कर दिया गया.
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उत्तराखंड के पूर्व राज्य मंत्री राजेंद्र भंडारी ने कहा कि उत्तराखंड के निवासियों की तरफ यूपीए सरकार ने ध्यान दिया था और वन अधिकार कानून 2006 अस्तित्व में आया था. जिसमें वनों पर आधारित समुदायों को उनके वनों पर सामुदायिक और व्यक्तिगत अधिकारों को वापस देने की गारंटी दी गई है. इसलिए हम केंद्र और राज्य सरकार दोनों से यह आग्रह करते हैं कि जनहित में उत्तराखंड के लिए भू-कानून बनाया जाए और वहां के निवासियों को उनके वनों पर सामुदायिक और व्यक्तिगत अधिकार को बहाल किया जाए.