देहरादून: देश के नए संसद भवन पर 6.5 मीटर ऊंचे राष्ट्रीय प्रतीक की भव्यता देखते ही बनती है. लेकिन अशोक स्तंभ की चर्चा इसकी विशालता से ज्यादा मूल स्वरूप में बदलाव को लेकर हो रही है. इस विवाद पर अभी विपक्षी दलों के तेवर और ताने खत्म भी नहीं हुए हैं कि देहरादून से एक और ऐसी तस्वीर सामने आ गई है, जो उत्तराखंड में भी इस मुद्दे को तूल दे रही है.
दरअसल, देहरादून में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत हो रहे सैकड़ों करोड़ के काम के बीच देहरादून स्मार्ट सिटी लिमिटेड की तरफ से परेड ग्राउंड में एक अशोक स्तंभ भी स्थापित किया गया है. कमाल की बात यह है कि इस अशोक स्तंभ का स्वरूप भी नए संसद भवन में स्थापित राष्ट्रीय प्रतीक की तरह ही नजर आ रहा है. इसमें बनाए गए शेरों के दांत बड़े दर्शाए गए हैं.
हालांकि, अशोक स्तंभ के नीचे से ली गई तस्वीर से दांत इस तरह से दिखाई दे रहे हैं. लेकिन विपक्षी दल ने भी ठीक दिल्ली की तरह ही देहरादून में बने इस अशोक स्तंभ को भी आक्रामक बनाए जाने का आरोप लगाया है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा कहते हैं कि भाजपा सरकार प्रदेश में पलायन आयोग से लेकर तमाम सड़कों के नाम बदलने में लगी है. भाजपाई साबित करने में लगे हैं कि उनकी सरकार से पहले कोई इतिहास ही नहीं था. शायद यही सोचकर भाजपा की सरकार ने देहरादून में भी ऐसे ही एक आक्रामक मुद्रा वाले अशोक स्तंभ को स्थापित किया है.
हालांकि, नए संसद भवन में स्थापित किए गए अशोक स्तंभ का आकार काफी बड़ा है. इसका वजन 9500 किलोग्राम है. इसे कांस्य से बनाया गया है. इसके इतने बड़े आकार की वजह से नीचे से ली गई तस्वीरों के कारण इसके आक्रामक दिखने का तर्क भी भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर देती रही है. लेकिन उत्तराखंड में स्मार्ट सिटी के तहत बनाए गए अशोक स्तंभ को कुछ ऊंचाई से देखने के बाद भी इसकी आक्रामकता और दांतों का आकार बड़ा ही दिखाई देता है.
वैसे तो केंद्र सरकार के स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत देहरादून में काफी पहले से ही काम चल रहा है. फिलहाल, स्मार्ट सिटी का काम अपने तय समय से काफी पीछे और सुस्त गति से चल रहा है लेकिन परेड ग्राउंड में अशोक स्तंभ के मूल भाव में बदलाव को लेकर उठे सवालों ने अब नया विवाद इस बात को लेकर खड़ा कर दिया है कि क्या संसद भवन के बाद राज्यों में भी स्थापित होने वाले अशोक स्तंभ राजनीतिक रूप से विवाद बनते रहेंगे और क्या वाकई अशोक स्तंभ के मूल स्वरूप में बदलाव किया जा रहा है ?
हालांकि, इसका जवाब लेने की कोशिश देहरादून के प्रभारी मंत्री सुबोध उनियाल से लेकर शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल से की गई. लेकिन इन दोनों से ही संपर्क नहीं हो पाया. इसके बाद देहरादून स्मार्ट सिटी लिमिटेड की सीईओ और देहरादून की जिलाधिकारी सोनिका से भी बात करने की कोशिश की गई. लेकिन उनकी बैठक में व्यस्तता के कारण उनका पक्ष नहीं लिया जा सका.
इस मामले में केंद्र सरकार की पहले ही काफी किरकिरी करा चुके इस विषय को लेकर भाजपा नेता जवाब देने में पीछे नहीं रहे. देश की राजधानी में जहां फोटो खींचने के एंगल को भाजपा नेताओं ने इसकी आक्रामकता को लेकर अपना तर्क दिया, तो उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में भाजपा प्रदेश प्रवक्ता भाजपा शादाब शम्स फिलहाल इस पर तर्क देने की स्थिति में नहीं दिखाई दिए. हालांकि, उन्होंने इतना जरूर कहा कि कांग्रेस जो भी आरोप लगा रही है वह गलत है और उनको अपनी सोच बदलनी चाहिए.
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भारत का राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ: सारनाथ में 250 ईसा पूर्व सम्राट अशोक ने अशोक स्तंभ बनवाया था, जिसे चुनार के बलुआ पत्थर को कटवा कर बनवाया गया था. खास बात यह है कि इसे एक ही पत्थर को तराश कर बनाया गया, जिसमें हाथी, चौकड़ी भरता घोड़ा, सांड और शेर की ऊपरी कलाकृति भी बनाई गई है.
विवाद इसलिए है क्योंकि सारनाथ में बनाए गए इस अशोक स्तंभ में शेर की आकृति गंभीर और शांत नजर आती है, जबकि नए अशोक स्तंभ में इसका स्वरूप आक्रामक दिखता है. सारनाथ में बनवाए गए अशोक स्तंभ को ही भारत के राष्ट्रीय चिन्ह के रूप में स्वीकार किया गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हाल ही में 11 जुलाई को नए संसद भवन में सेंट्रल विस्ता प्रोजेक्ट के तहत अशोक स्तंभ की कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया था.