देहरादून: उत्तराखंड में अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रही उत्तराखंड क्रांति दल मिशन-2022 की तैयारियों में जुट गई है. भाजपा और कांग्रेस से मिल रही चुनौतियों के बीच यूकेडी ने आगामी 15 माह का खाका तैयार करते हुए अपने कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार की है. जिसके तहत 'एक बूथ-दस यूथ' की योजना बनाई गई है. उत्तराखंड क्रांति दल का कहना है कि सत्ता में आने के बाद यूकेडी भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों को जेल के सलाखों के पीछे भेजेगी.
उत्तराखंड क्रांति दल के संरक्षक त्रिवेंद्र पंवार का कहना है कि यूकेडी करो या मरो की नीति अपनाने जा रही है. क्योंकि, उत्तराखंड क्रांति दल ने राज्य गठन के लिए संघर्ष करते हुए यहां की जनता को संगठित किया है. लेकिन भाजपा और कांग्रेस ने इस राज्य को बारी-बारी से लूटा है. ऐसे में प्रदेश की जनता यूकेडी की आवश्यकता को महसूस कर रही है.
त्रिवेंद्र पंवार ने कहा कि राज्य में हर विभाग भ्रष्टाचार में लिप्त है. इसके लिए भाजपा नेतृत्व जिम्मेदार है. यूकेडी ने भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों के खिलाफ अभियान चलाया है. उन्होंने बाहर से आए प्रवासियों का जिक्र करते हुए कहा कि अन्य प्रदेशों से पहाड़ों में वापस आए प्रवासियों ने अब उत्तराखंड में ही रहने का मन बनाया है और राज्य को विकसित करना चाहते हैं. त्रिवेंद्र पंवार का कहना है कि अगर 2022 में यूकेडी नहीं आती है तो इसका असर पहाड़ों पर पड़ेगा. इसलिए दल ऐसी 1994 जैसे आंदोलन का माहौल बनाने जा रहा है.
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यूकेडी का इतिहास
उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके के हितों की रक्षा के लिए गठित राज्य का एकमात्र क्षेत्रीय दल उत्तराखंड क्रांति दल सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है. 25 जुलाई 1979 को मसूरी में पृथक पर्वतीय राज्य की अवधारणा के साथ उत्तराखंड क्रांति दल का गठन हुआ था. उत्तर प्रदेश के शिक्षा निदेशक और कुमाऊं विश्वविद्यालय के पहले कुलपति रहे स्वर्गीय डॉ डीडी पंत इसके संस्थापक अध्यक्ष थे.
यूकेडी के गठन के दिन से ही जनता का अथाह समर्थन मिलने लगा. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यूकेडी के गठन के मात्र एक साल के भीतर वर्ष 1980 में हुए चुनावों में रानीखेत विधानसभा क्षेत्र से जसवंत सिंह बिष्ट ने जीत दर्ज कर उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहुंचे थे. UKD ने 1994 में उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से अलग करने की मांग उठाई थी, लेकिन आज यूकेडी का राजनीतिक अस्तित्व पीछे की तरफ सरकता जा रहा है.