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सुरंगों का जाल कहीं पहाड़ों के लिए ना बन जाए खतरा! वैज्ञानिकों ने किया आगाह

उत्तराखंड पहाड़ी राज्य होने के चलते यहां भगौलिक परिस्थिति बहुत ही जटिल है. प्रदेश के कोने-कोने तक विकास पहुंचाने के लिए कई योजनाएं केंद्र और राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही हैं. पहाड़ों में कनेक्टिविटी (connectivity in the mountains) बढ़ाने के लिए सुरंगों का जाल बिछाया जा रहा है. जो आने वाले समय में यात्रियों के साथ-साथ प्रदेश वासियों के लिए सुगम यातायात का साधन होगा. लेकिन इन सुरंगों की वजह से प्रदेश में प्रतिकूल असर प्रड़ने की आशंका है. जिसको लेकर वैज्ञानिक अभी से आगाह कर रहे हैं.

connectivity in uttarakhand mountains
सुरंगों का जाल
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Published : Apr 30, 2022, 6:01 PM IST

Updated : Apr 30, 2022, 8:01 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड के पहाड़ों पर पिछले एक दशक में कनेक्टिविटी बढ़ाने के प्रयास (Efforts to increase connectivity) तेज हुए हैं. सैकड़ों करोड़ की परियोजनाओं के जरिए पहाड़ों पर सड़क और रेल मार्ग (Roads and Rail on the Mountains) को पहुंचाकर पर्यटकों और यात्रियों के लिए मार्ग सुगम किया जा रहा है. इसी प्रयास के तहत कुछ सालों में पहाड़ बड़ी-बड़ी सुरंगों के नए प्रयोग से गुजर रहा है. जबकि उत्तराखंड के नौजवान पहाड़ों पर सुरंगों का जाल (tunnel network) एक नए खतरे को भी इंगित कर रहा है. जानिए पहाड़ पर टनल तकनीक की दुश्वारियां.

उत्तराखंड के नए पहाड़ को खतरा: हिमालय को दुनिया की सबसे नई पर्वत श्रृंखलाओं में गिना जाता है. यही कारण है कि इन नौजवान पहाड़ों की कमजोर चट्टाने उत्तराखंड समेत तमाम हिमालई राज्यों के लिए गाहे-बगाहे समस्या बनी रहती है. भूस्खलन की घटनाएं उत्तराखंड में मॉनसून सीजन के दौरान सामान्य बात हो चली है. बावजूद इसके पहाड़ों तक विकास और जीवन को सुगम बनाने की कोशिशें भी जरूरी है.

सुरंगों का जाल कहीं पहाड़ों के लिए ना बन जाए खतरा.

पहाड़ों में कनेक्टिविटी बढ़ाने पर जोर: लिहाजा इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण बेहतर यातायात है. इसी को ध्यान में रखकर पहाड़ों में कनेक्टिविटी को बढ़ाने की दिशा में तेजी से काम किया जा रहा है, लेकिन कहते हैं ना कि कई बार विकास अपने साथ विनाश लेकर भी आता है. कुछ इसी तरह के खतरे उत्तराखंड के पहाड़ों पर भी दिखाई दे रहे हैं.

ये भी पढ़ें: Chardham Yatra: देव डोलियों के निकलने का कार्यक्रम तय, जानें पूरा शेड्यूल, ऐसे पहुंचें दर्शन करने

सुरंग के जरिए यातायात मार्ग निर्माण: दरअसल पिछले कुछ सालों में उत्तराखंड के पहाड़ों पर टनल के जरिए यातायात आसान करने की कोशिशें की जा रही है. इस तरह विभिन्न परियोजनाओं के जरिए पहाड़ों पर सुरंगों का जाल तैयार करने का प्लान किया जा रहा है. जानिए वह परियोजनाएं जिन पर काम चल रहा है या फिर राज्य सरकार विचार कर रही है.

tunnel network
सुरंगों का जाल

पर्यावरण अनुकूल टनल: प्रमुख सचिव लोक निर्माण विभाग आरके सुधांशु बताते हैं कि राज्य में कनेक्टिविटी के लिए कई जिलों में टनल बनाए जाने पर विचार चल रहा है. कई मामलों में केंद्र सरकार से भी बातचीत की गई है. ऐसा होता है तो पर्यावरण अनुकूल टनल बनाकर यातायात को लेकर सुगमता लाई जा सकेगी.

सुरंगों का पहाड़ पर प्रतिकूल असर: पहाड़ों पर सुरंगों का निर्माण पर्यावरणीय लिहाज से बेहतर नहीं माना जाता है. निर्माण के दौरान पर्यावरण पर इसका प्रतिकूल असर पड़ने की बात कही जाती है. खतरा सुरंगों के बनने के कारण जल स्रोतों के सूखने का है. वैसे यह केवल आशंका नहीं है, बल्कि इसका असर प्रदेश के कई क्षेत्रों में दिखाई भी दे रहा है. राज्य में कई जगह सुरंगें बनने के बाद जल स्रोत सूखने की शिकायत स्थानीय ग्रामीणों की तरफ से की गई है. जाहिर है कि राज्य में टनल बनने से पहाड़ों पर रहने वाले लोगों को जल संकट से जूझना पड़ेगा.

tunnel network
सुरंगों का जाल

ये भी पढ़ें: चमधार, जवाड़ी और नरकोटा लैंडस्लाइड जोन का होगा ट्रीटमेंट, भारत सरकार ने दिए आदेश

हिमालयी क्षेत्र में भूकंप का खतरा: दूसरा खतरा हिमालय क्षेत्र में बड़े भूकंप की आशंका से जुड़ा है. दरअसल इस क्षेत्र में सैकड़ों साल से रिएक्टर पैमाने पर 8 डिग्री तक का भूकंप नहीं आया है. लिहाजा इस क्षेत्र को जोन 5 में गिना जाता है, यानी यहां पर बड़े भूकंप आने का सबसे ज्यादा खतरा और संभावना है. ऐसे में चिंता इस बात की है कि राज्य के पहाड़ों में सुरंगों की अधिकतम संख्या के कारण ऐसे भूकंप के दौरान यह सुरंग कितना दबाव सह पाएंगी.

वैज्ञानिकों ने जताया खतरे की आशंका: प्रदेश में सुरंगों का जाल बिछाए जाने के बीच पहाड़ों पर खतरा वैज्ञानिकों की उन आशंकाओं से शुरू होता है, जो गैर वैज्ञानिक और बिना अध्ययन किए गए कार्यों से जुड़ा है. वैज्ञानिकों की चिंता है कि प्रदेश में सुरंगों के निर्माण के दौरान बिना अध्ययन के कार्य से पहाड़ों को भारी नुकसान हो सकता है.

देहरादून: उत्तराखंड के पहाड़ों पर पिछले एक दशक में कनेक्टिविटी बढ़ाने के प्रयास (Efforts to increase connectivity) तेज हुए हैं. सैकड़ों करोड़ की परियोजनाओं के जरिए पहाड़ों पर सड़क और रेल मार्ग (Roads and Rail on the Mountains) को पहुंचाकर पर्यटकों और यात्रियों के लिए मार्ग सुगम किया जा रहा है. इसी प्रयास के तहत कुछ सालों में पहाड़ बड़ी-बड़ी सुरंगों के नए प्रयोग से गुजर रहा है. जबकि उत्तराखंड के नौजवान पहाड़ों पर सुरंगों का जाल (tunnel network) एक नए खतरे को भी इंगित कर रहा है. जानिए पहाड़ पर टनल तकनीक की दुश्वारियां.

उत्तराखंड के नए पहाड़ को खतरा: हिमालय को दुनिया की सबसे नई पर्वत श्रृंखलाओं में गिना जाता है. यही कारण है कि इन नौजवान पहाड़ों की कमजोर चट्टाने उत्तराखंड समेत तमाम हिमालई राज्यों के लिए गाहे-बगाहे समस्या बनी रहती है. भूस्खलन की घटनाएं उत्तराखंड में मॉनसून सीजन के दौरान सामान्य बात हो चली है. बावजूद इसके पहाड़ों तक विकास और जीवन को सुगम बनाने की कोशिशें भी जरूरी है.

सुरंगों का जाल कहीं पहाड़ों के लिए ना बन जाए खतरा.

पहाड़ों में कनेक्टिविटी बढ़ाने पर जोर: लिहाजा इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण बेहतर यातायात है. इसी को ध्यान में रखकर पहाड़ों में कनेक्टिविटी को बढ़ाने की दिशा में तेजी से काम किया जा रहा है, लेकिन कहते हैं ना कि कई बार विकास अपने साथ विनाश लेकर भी आता है. कुछ इसी तरह के खतरे उत्तराखंड के पहाड़ों पर भी दिखाई दे रहे हैं.

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सुरंग के जरिए यातायात मार्ग निर्माण: दरअसल पिछले कुछ सालों में उत्तराखंड के पहाड़ों पर टनल के जरिए यातायात आसान करने की कोशिशें की जा रही है. इस तरह विभिन्न परियोजनाओं के जरिए पहाड़ों पर सुरंगों का जाल तैयार करने का प्लान किया जा रहा है. जानिए वह परियोजनाएं जिन पर काम चल रहा है या फिर राज्य सरकार विचार कर रही है.

tunnel network
सुरंगों का जाल

पर्यावरण अनुकूल टनल: प्रमुख सचिव लोक निर्माण विभाग आरके सुधांशु बताते हैं कि राज्य में कनेक्टिविटी के लिए कई जिलों में टनल बनाए जाने पर विचार चल रहा है. कई मामलों में केंद्र सरकार से भी बातचीत की गई है. ऐसा होता है तो पर्यावरण अनुकूल टनल बनाकर यातायात को लेकर सुगमता लाई जा सकेगी.

सुरंगों का पहाड़ पर प्रतिकूल असर: पहाड़ों पर सुरंगों का निर्माण पर्यावरणीय लिहाज से बेहतर नहीं माना जाता है. निर्माण के दौरान पर्यावरण पर इसका प्रतिकूल असर पड़ने की बात कही जाती है. खतरा सुरंगों के बनने के कारण जल स्रोतों के सूखने का है. वैसे यह केवल आशंका नहीं है, बल्कि इसका असर प्रदेश के कई क्षेत्रों में दिखाई भी दे रहा है. राज्य में कई जगह सुरंगें बनने के बाद जल स्रोत सूखने की शिकायत स्थानीय ग्रामीणों की तरफ से की गई है. जाहिर है कि राज्य में टनल बनने से पहाड़ों पर रहने वाले लोगों को जल संकट से जूझना पड़ेगा.

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सुरंगों का जाल

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हिमालयी क्षेत्र में भूकंप का खतरा: दूसरा खतरा हिमालय क्षेत्र में बड़े भूकंप की आशंका से जुड़ा है. दरअसल इस क्षेत्र में सैकड़ों साल से रिएक्टर पैमाने पर 8 डिग्री तक का भूकंप नहीं आया है. लिहाजा इस क्षेत्र को जोन 5 में गिना जाता है, यानी यहां पर बड़े भूकंप आने का सबसे ज्यादा खतरा और संभावना है. ऐसे में चिंता इस बात की है कि राज्य के पहाड़ों में सुरंगों की अधिकतम संख्या के कारण ऐसे भूकंप के दौरान यह सुरंग कितना दबाव सह पाएंगी.

वैज्ञानिकों ने जताया खतरे की आशंका: प्रदेश में सुरंगों का जाल बिछाए जाने के बीच पहाड़ों पर खतरा वैज्ञानिकों की उन आशंकाओं से शुरू होता है, जो गैर वैज्ञानिक और बिना अध्ययन किए गए कार्यों से जुड़ा है. वैज्ञानिकों की चिंता है कि प्रदेश में सुरंगों के निर्माण के दौरान बिना अध्ययन के कार्य से पहाड़ों को भारी नुकसान हो सकता है.

Last Updated : Apr 30, 2022, 8:01 PM IST
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