देहरादून: उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस बार विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने की बात कही है. एक पत्र के जरिए उन्होंने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को अपने फैसले के बारे में जानकारी दी है. पत्र में उन्होंने लिखा है कि, राज्य का नेतृत्व युवा हाथों में है ऐसे में बदलते हुए राजनीतिक परिस्थितियों में उन्हें चुनाव नहीं लड़ना चाहिए. वो बीजेपी के कार्यकर्ता के रूप में कार्य करते रहेंगे.
इससे पहले उन्होंने कार्यकर्ताओं के बीच भी कहा था कि, उन्हें इस बार चुनाव लड़ना नहीं लड़ाना है. पार्टी उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दे रही है. सूत्रों के मुताबिक, त्रिवेंद्र सिंह रावत को भाजपा का प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जा सकता है.
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क्या सच में चुनाव लड़ाना मकसद? प्रदेश में यह चर्चा भी अब तेजी से हो रही है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत ने यह फैसला इसलिए भी लिया क्योंकि अगर कांग्रेस पार्टी में शामिल होने के बाद अगर हरक सिंह रावत को चुनावी मैदान में उतारा जाता है तो इसकी पूरी संभावनाएं हैं कि उन्हें डोईवाला सीट से ही चुनाव लड़ाया जाएगा. ऐसे में हरक सिंह रावत के चुनावी इतिहास को देखकर भी त्रिवेंद्र सिंह रावत ने चुनाव न लड़ने का मन बनाया है, ऐसी चर्चाएं हैं.
BJP से सबसे ज्यादा समय सीएम पद पर बने रहे: बड़ा सवाल ये भी है कि जिसके मुख्यमंत्री रहते हुए 2017 से लेकर 2021 तक बीजेपी ने उत्तराखंड में सरकार चलाई हो, आखिरकार वही पूर्व मुख्यमंत्री चुनाव न लड़े यह बात भी उत्तराखंड के लोगों को हजम नहीं होगी. ये भी एक सच है कि बीजेपी की अबतक उत्तराखंड में बनी सरकारों में केवल त्रिवेंद्र सिंह रावत ही इकलौते ऐसे सीएम रहे जो सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री पद पर बने रहे थे.
गौर हो कि राज्य में कुल 70 विधानसभा सीटों के लिए 14 फरवरी को मतदान होंगे. नतीजे 10 मार्च को सामने आएंगे. बीजेपी जहां सीएम धामी के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है तो वहीं कांग्रेस की कमान हरीश रावत के हाथों में है. आम आदमी पार्टी की ओर से अजय कोठियाल चेहरा हैं.