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त्रिवेंद्र सरकार@3 साल: रिस्पना कितनी 'ऋषिपर्णा', सरकार-विपक्ष में छिड़ी बहस

सीएम त्रिवेंद्र ने रिस्पना नदी के जीर्णोद्धार के लिए 'रिस्पना से ऋषिपर्णा की ओर' मुहिम शुरू की थी. इस मुहिम के जरिए दावा किया गया था कि एक साल के भीतर रिस्पना नदी का पानी आचमन हेतु शुद्ध हो जाएगा. सरकार के तीन साल पूरे होने के मौके पर रिस्पना के हालातों पर ETV BHARAT ने सत्ता और विपक्ष के साथ रिस्पना नदी को शुद्ध करने में जुटे लोगों से चर्चा की.

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Published : Mar 16, 2020, 11:15 PM IST

rispana river
रिस्पना कितनी 'ऋषिप्रणा'

देहरादून: 18 मार्च को त्रिवेंद्र सरकार के तीन साल पूरे होने को है. सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने राजधानी देहरादून की सबसे बड़ी समस्या अस्तित्व खोती रिस्पना नदी को लेकर एक बड़ी पहल शुरू की थी.

सीएम त्रिवेंद्र ने रिस्पना नदी के जीर्णोद्धार के लिए 'रिस्पना से ऋषिपर्णा की ओर' मुहिम शुरू की थी. इस मुहिम के जरिए दावा किया गया था कि एक साल के भीतर रिस्पना नदी का पानी आचमन हेतु शुद्ध हो जाएगा. सरकार के तीन साल पूरे होने के मौके पर रिस्पना के हालातों पर ETV BHARAT ने सत्ता और विपक्ष के साथ रिस्पना नदी को शुद्ध करने जुटे लोगों से चर्चा की.

रिस्पना कितनी 'ऋषिपर्णा'?

त्रिवेंद्र सरकार में राज्य मंत्री वीरेंद्र बिष्ट के मुताबिक मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने रिस्पना नदी के जीर्णोद्धार के लिए एक विशेष पहल शुरू की और बड़े स्तर पर कदम उठाया. मुख्यमंत्री की पहल पर पहली बार रिस्पना नदी में पानी लाने के लिए 10 हजार लोगों ने दो लाख से ज्यादा पेड़ एक दिन में लगाए. इसके अलावा रिस्पना और बिंदाल नदी के साथ-साथ प्रदेश की कोसी जैसी कई ऐसी नदियां जो कि अपना अस्तित्व खोतीं जा रही उनके लिए विशेष बजट भी पास किया गया.

त्रिवेंद्र सरकार पर पलटवार करते हुए कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने राज्य सरकार के सभी दावों को खोखला बचाया. गरिमा दसौनी के मुताबिक सरकार के दावे आज धरातल पर देखे जाएं तो केवल रिस्पना का गंदा पानी ही देखने को मिलेगा. नदियों की सफाई पर सरकार के दावे हवा-हवाई है. जबकि धरातल पर रिस्पना नदी के नाम पर केवल एक गंदा नाला नजर आता है.

ये भी पढ़ें: हरिद्वार: खुदाई के दौरान पाइप लाइन में ब्लास्ट, हिल गए घर, धंस गई सड़क

वहीं, रिस्पना नदी के तकनीकी पहलुओं पर पिछले कई सालों से शोध कर रहे जेपी मैठाणी ने बताया कि वास्तविक रूप से रिस्पना नदी की कायापलट के लिए किसी भी सरकार द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. रिस्पना नदी लगातार पिछले सालों में संकरी हुई है, रिस्पना नदी पर लोगों का अतिक्रमण बढ़ता गया है. जो कि बिना राजनीतिक संरक्षण के संभव नहीं था. एक तरफ जहां रिस्पना नदी के जीर्णोद्धार की बात की जाती है तो वहीं दूसरी तरफ कई अनियमितताएं रिस्पना नदी में देखने को मिलती है.

रिस्पना नदी की सफाई को लेकर लगातार काम कर रही समाजसेवी संस्था 'मैड' के संस्थापक अभिजय नेगी ने बताया कि उनके द्वारा रिस्पना की सफाई के लिए अभियान चलाए जाते हैं. रिस्पना नदी में सफाई के नाम पर किसी भी सरकार द्वारा कोई काम नहीं किया गया है.

अभिजय बताते हैं कि शहर के तकरीबन 200 से ज्यादा गंदे नाले सीधे रिस्पना नदी में गिरते हैं, जिन पर सरकार द्वारा कोई नियंत्रण अब तक नहीं लगाया गया है. साथ ही रिस्पना नदी को साफ करने में फिलहाल कोई भी सरकार असरदार काम नहीं कर पाई है.

देहरादून: 18 मार्च को त्रिवेंद्र सरकार के तीन साल पूरे होने को है. सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने राजधानी देहरादून की सबसे बड़ी समस्या अस्तित्व खोती रिस्पना नदी को लेकर एक बड़ी पहल शुरू की थी.

सीएम त्रिवेंद्र ने रिस्पना नदी के जीर्णोद्धार के लिए 'रिस्पना से ऋषिपर्णा की ओर' मुहिम शुरू की थी. इस मुहिम के जरिए दावा किया गया था कि एक साल के भीतर रिस्पना नदी का पानी आचमन हेतु शुद्ध हो जाएगा. सरकार के तीन साल पूरे होने के मौके पर रिस्पना के हालातों पर ETV BHARAT ने सत्ता और विपक्ष के साथ रिस्पना नदी को शुद्ध करने जुटे लोगों से चर्चा की.

रिस्पना कितनी 'ऋषिपर्णा'?

त्रिवेंद्र सरकार में राज्य मंत्री वीरेंद्र बिष्ट के मुताबिक मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने रिस्पना नदी के जीर्णोद्धार के लिए एक विशेष पहल शुरू की और बड़े स्तर पर कदम उठाया. मुख्यमंत्री की पहल पर पहली बार रिस्पना नदी में पानी लाने के लिए 10 हजार लोगों ने दो लाख से ज्यादा पेड़ एक दिन में लगाए. इसके अलावा रिस्पना और बिंदाल नदी के साथ-साथ प्रदेश की कोसी जैसी कई ऐसी नदियां जो कि अपना अस्तित्व खोतीं जा रही उनके लिए विशेष बजट भी पास किया गया.

त्रिवेंद्र सरकार पर पलटवार करते हुए कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने राज्य सरकार के सभी दावों को खोखला बचाया. गरिमा दसौनी के मुताबिक सरकार के दावे आज धरातल पर देखे जाएं तो केवल रिस्पना का गंदा पानी ही देखने को मिलेगा. नदियों की सफाई पर सरकार के दावे हवा-हवाई है. जबकि धरातल पर रिस्पना नदी के नाम पर केवल एक गंदा नाला नजर आता है.

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वहीं, रिस्पना नदी के तकनीकी पहलुओं पर पिछले कई सालों से शोध कर रहे जेपी मैठाणी ने बताया कि वास्तविक रूप से रिस्पना नदी की कायापलट के लिए किसी भी सरकार द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. रिस्पना नदी लगातार पिछले सालों में संकरी हुई है, रिस्पना नदी पर लोगों का अतिक्रमण बढ़ता गया है. जो कि बिना राजनीतिक संरक्षण के संभव नहीं था. एक तरफ जहां रिस्पना नदी के जीर्णोद्धार की बात की जाती है तो वहीं दूसरी तरफ कई अनियमितताएं रिस्पना नदी में देखने को मिलती है.

रिस्पना नदी की सफाई को लेकर लगातार काम कर रही समाजसेवी संस्था 'मैड' के संस्थापक अभिजय नेगी ने बताया कि उनके द्वारा रिस्पना की सफाई के लिए अभियान चलाए जाते हैं. रिस्पना नदी में सफाई के नाम पर किसी भी सरकार द्वारा कोई काम नहीं किया गया है.

अभिजय बताते हैं कि शहर के तकरीबन 200 से ज्यादा गंदे नाले सीधे रिस्पना नदी में गिरते हैं, जिन पर सरकार द्वारा कोई नियंत्रण अब तक नहीं लगाया गया है. साथ ही रिस्पना नदी को साफ करने में फिलहाल कोई भी सरकार असरदार काम नहीं कर पाई है.

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