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जनजाति बालिका आश्रम विद्यालय में बजट के फांके, छात्राओं को नहीं मिल रहा पौष्टिक भोजन

विकासनगर में ट्राइबल बालिका आश्रम विद्यालय कालसी बजट की कमी से जूझ रहा है. इस विद्यालय में जौनसारी जनजाति क्षेत्र की करीब 200 छात्राएं अध्ययनरत हैं लेकिन उनको पौष्टिक भोजन नहीं मिल रहा है. ऐसे में भारतीय आदिमजाति सेवक संघ शाखा सेक्रेटरी दिनेश भरद्वाज ने सरकार से बजट बढ़ाने की मांग की है.

vikasnagar
विकासनगर
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Published : Jul 25, 2022, 2:12 PM IST

विकासनगर: भारतीय आदिम जाति सेवक संघ के संचालित ट्राइबल बालिका आश्रम विद्यालय कालसी बजट की कमी से जूझ रहा है. इस विद्यालय में जौनसारी जनजाति क्षेत्र की करीब 200 छात्राएं अध्ययनरत हैं. दूर क्षेत्रों से अत्यंत गरीब तबके की यह बालिकाएं इस विद्यालय में शिक्षा ग्रहण कर रही हैं लेकिन विद्यालय की बालिकाओं को पौष्टिक आहार में मात्र दाल, चावल, रोटी, सब्जी दी जाती है. इस विद्यालय में ट्राइबल कन्या प्राइमरी आवासीय विद्यालय व ट्राइबल कन्या जूनियर आवासीय विद्यालय दोनों प्रोजेक्ट जनजाति कार्य मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली के द्वारा वित्त पोषित हैं.

वर्तमान में 100 छात्राएं प्राइमरी व 100 छात्राएं जूनियर में पंजीकृत हैं. प्राइमरी की 100 छात्राओं पर पांच महिला टीचर व जूनियर में 6 महिला टीचर हैं. दोनों विभाग में स्टाफ में करीब 22 कर्मचारी उपस्थित हैं. प्राइमरी की मान्यता बेसिक शिक्षा परिषद देहरादून से जबकि जूनियर की मान्यता सहायक शिक्षा निदेशक गढ़वाल मंडल पौड़ी से है.

बजट की कमी से जूझ रहा जनजाति बालिका आश्रम विद्यालय.

साल 2018 -19 में प्रति छात्रा को ₹660 प्रति माह और 2020-21 में प्रति छात्रा के लिए ₹990 जनजाति मंत्रालय भारत सरकार के द्वारा साल के 10 माह का बजट स्वीकृत किया गया. इस विद्यालय में अध्ययनरत छात्रा ने बताया कि सुबह के नाश्ते में चना व रोटी व दिन के खाने में दाल चावल और शाम के खाने में दाल रोटी मिलती है. छात्रा ने बताया कि हमें दूध, फल आदि पौष्टिक आहार जैसी कोई सुविधा इस विद्यालय में नहीं दी जाती है.

पढ़ें- सूचना विभाग में बदली गई जिम्मेदारी, संयुक्त निदेशक केएस चौहान हल्द्वानी संबद्ध

भारतीय आदिमजाति सेवक संघ शाखा सेक्रेटरी दिनेश भारद्वाज ने बताया कि इस विद्यालय में दूरस्थ क्षेत्रों की बालिकाएं शिक्षा ग्रहण करने आती हैं, लेकिन ट्राइबल बालिका आश्रम विद्यालय कालसी बजट की कमी से जूझ रहा है. प्रत्येक शिक्षक को प्रतिमाह 5 से 6 हजार रुपए मानदेय दिया जाता है. जबकि इस विद्यालय को उत्तराखंड सरकार से कोई बजट नहीं मिलता. हालांकि उत्तराखंड सरकार द्वारा ही मंत्रालय को प्रतिवर्ष प्रस्ताव भेजा जाता है.

इस विद्यालय का बजट जनजाति मंत्रालय भारत सरकार से दिया जाता है, जिसके द्वारा यह विद्यालय संचालित किया जाता है. बाकी कम बजट होने के चलते सेवक संघ बालिकाओं को फल, दूध आदि देने में असमर्थ है.

विकासनगर: भारतीय आदिम जाति सेवक संघ के संचालित ट्राइबल बालिका आश्रम विद्यालय कालसी बजट की कमी से जूझ रहा है. इस विद्यालय में जौनसारी जनजाति क्षेत्र की करीब 200 छात्राएं अध्ययनरत हैं. दूर क्षेत्रों से अत्यंत गरीब तबके की यह बालिकाएं इस विद्यालय में शिक्षा ग्रहण कर रही हैं लेकिन विद्यालय की बालिकाओं को पौष्टिक आहार में मात्र दाल, चावल, रोटी, सब्जी दी जाती है. इस विद्यालय में ट्राइबल कन्या प्राइमरी आवासीय विद्यालय व ट्राइबल कन्या जूनियर आवासीय विद्यालय दोनों प्रोजेक्ट जनजाति कार्य मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली के द्वारा वित्त पोषित हैं.

वर्तमान में 100 छात्राएं प्राइमरी व 100 छात्राएं जूनियर में पंजीकृत हैं. प्राइमरी की 100 छात्राओं पर पांच महिला टीचर व जूनियर में 6 महिला टीचर हैं. दोनों विभाग में स्टाफ में करीब 22 कर्मचारी उपस्थित हैं. प्राइमरी की मान्यता बेसिक शिक्षा परिषद देहरादून से जबकि जूनियर की मान्यता सहायक शिक्षा निदेशक गढ़वाल मंडल पौड़ी से है.

बजट की कमी से जूझ रहा जनजाति बालिका आश्रम विद्यालय.

साल 2018 -19 में प्रति छात्रा को ₹660 प्रति माह और 2020-21 में प्रति छात्रा के लिए ₹990 जनजाति मंत्रालय भारत सरकार के द्वारा साल के 10 माह का बजट स्वीकृत किया गया. इस विद्यालय में अध्ययनरत छात्रा ने बताया कि सुबह के नाश्ते में चना व रोटी व दिन के खाने में दाल चावल और शाम के खाने में दाल रोटी मिलती है. छात्रा ने बताया कि हमें दूध, फल आदि पौष्टिक आहार जैसी कोई सुविधा इस विद्यालय में नहीं दी जाती है.

पढ़ें- सूचना विभाग में बदली गई जिम्मेदारी, संयुक्त निदेशक केएस चौहान हल्द्वानी संबद्ध

भारतीय आदिमजाति सेवक संघ शाखा सेक्रेटरी दिनेश भारद्वाज ने बताया कि इस विद्यालय में दूरस्थ क्षेत्रों की बालिकाएं शिक्षा ग्रहण करने आती हैं, लेकिन ट्राइबल बालिका आश्रम विद्यालय कालसी बजट की कमी से जूझ रहा है. प्रत्येक शिक्षक को प्रतिमाह 5 से 6 हजार रुपए मानदेय दिया जाता है. जबकि इस विद्यालय को उत्तराखंड सरकार से कोई बजट नहीं मिलता. हालांकि उत्तराखंड सरकार द्वारा ही मंत्रालय को प्रतिवर्ष प्रस्ताव भेजा जाता है.

इस विद्यालय का बजट जनजाति मंत्रालय भारत सरकार से दिया जाता है, जिसके द्वारा यह विद्यालय संचालित किया जाता है. बाकी कम बजट होने के चलते सेवक संघ बालिकाओं को फल, दूध आदि देने में असमर्थ है.

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