देहरादूनः धामी सरकार के लिए अगले कुछ महीने खासे चुनौतीपूर्ण होने जा रहे हैं. यह चुनौती कई अफसरों की सेवानिवृत्ति के बाद उनके विकल्प का चुनाव करने को लेकर है. इसके अलावा केंद्र के साथ राज्य की योजनाओं को दोगुनी रफ्तार से आगे बढ़ाने की भी चुनौती है. खासतौर पर तब जब राज्य ऐसी कई चुनौतियों से पहले ही घिरा हुआ हो, जो सरकार के लिए किसी बड़ी परीक्षा से कम नहीं है.
दरअसल, उत्तराखंड में यूं तो इस साल कई अफसर सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं, लेकिन कुछ ऐसे अफसर भी हैं. जो विभिन्न ऐसे पदों पर विराजमान हैं. जो राज्य में एडमिनिस्ट्रेशन के लिहाज से सबसे अहम हैं. जिन को लेकर इन दिनों प्रदेश में सबसे ज्यादा चर्चाएं हैं.
ये अफसर होंगे रिटायरः इस सूची में सबसे पहला और बड़ा नाम उत्तराखंड के मुख्य सचिव एसएस संधू का है. जो 31 जुलाई को रिटायर होने जा रहे हैं. इसके अलावा सीनियर आईएएस और गढ़वाल कमिश्नर सुशील कुमार भी इसी महीने यानी 31 मार्च को सेवानिवृत्त हो जाएंगे. वहीं, उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार इसी साल नवंबर में रिटायर होने वाले हैं.
देहरादून एसएसपी दलीप सिंह कुंवर भी इसी साल नवंबर में सेवानिवृत्त होंगे. वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी और वन विभाग के मुखिया विनोद सिंघल का रिटायरमेंट इसी साल 30 अप्रैल को होने जा रहा है. इसी तरह जैव विविधता बोर्ड में प्रमुख वन संरक्षक राजीव भरतरी भी 30 अप्रैल को रिटायर हो जाएंगे. वहीं, वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी और प्रमुख वन संरक्षक पंचायत ज्योत्सना सितलिंग भी इसी महीने मार्च में सेवानिवृत्त हो जाएंगी.
वैसे तो सेवानिवृत्त होना एक सामान्य सरकारी प्रक्रिया का हिस्सा है, लेकिन मौजूदा समय में कई चुनौतियां एक साथ होने के कारण इन महत्वपूर्ण पदों पर मौजूद अधिकारियों का रिटायर होना चर्चाओं में बना हुआ है. वरिष्ठ पत्रकार भगीरथ शर्मा भी इसी बात को दोहराते हुए कहते हैं कि प्रक्रिया भले ही सामान्य है, लेकिन चुनौतीपूर्ण समय में बड़े अफसरों का रिटायर होना चर्चाओं का कारण रहता है.
हालांकि, जो नई अफसर आते हैं, वो भी प्रशासनिक कार्यों में प्रशिक्षित होते हैं और उन्हें भी सालों का अनुभव होता है, लेकिन ऐसे हालातों में किसी नए अफसर के तैनात होने पर उसे तमाम व्यवस्थाओं को समझने में कुछ समय लग सकता है. बरहाल, उत्तराखंड के प्रमुख पदों पर बैठे इन अधिकारियों की सेवानिवृत्ति के दौरान राज्य फिलहाल ऐसी कई चिंताओं में गिरा हुआ है. जिस पर काफी समय से होमवर्क भी किया जा रहा है. अब बिंदुवार समझिए कि कौन सी है, वो चिंताएं और राज्य के लिए क्यों है यह महत्वपूर्ण.
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चारधाम यात्रा का संचालनः चारधाम यात्रा प्रदेश के लिए इस वक्त सबसे महत्वपूर्ण विषय है. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि पिछले साल चारधाम यात्रा में ऑल टाइम रिकॉर्ड श्रद्धालु पहुंचे थे. इस बार भी इतनी ही बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद है. लिहाजा, यात्रा को व्यवस्थित करना और श्रद्धालुओं को सुरक्षित दर्शन के बाद वापस भेजना राज्य सरकार की जिम्मेदारी भी है और बड़ी चुनौती भी.
इस स्थिति में जब यात्रा की तैयारियां चल रही है और इसकी सीधे तौर पर मॉनिटर जुलाई में रिटायर होने जा रहे मुख्य सचिव एसएस संधू कर रहे हैं. इतना ही नहीं चारधाम गढ़वाल मंडल में होने के कारण गढ़वाल कमिश्नर सुशील कुमार भी लगातार यात्रा की व्यवस्थाओं से जुटे हुए हैं और इनका भी इसी महीने रिटायरमेंट होने जा रहा है. जाहिर है सरकार को दो महत्वपूर्ण पदों पर अब जिम्मेदार और काबिल अफसर की तलाश करनी होगी.
जोशीमठ में दरारः जोशीमठ में आ रही दरारों को लेकर स्थानीय लोगों को सुरक्षित पुनर्वास देने के साथ उन्हें संतुष्ट करने की जिम्मेदारी भी सरकार पर ही है. यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर उठने के बाद धामी सरकार के सामने इस विषय को बेहतर तरीके से टैकल करने की चुनौती भी है. इस स्तर पर भी मुख्य सचिव और गढ़वाल कमिश्नर का अहम रोल होता है.
उत्तराखंड में फायर सीजनः उत्तराखंड में 15 फरवरी से फायर सीजन की शुरुआत हो चुकी है. इस साल बारिश कम होने से जंगलों में आग की घटनाएं ज्यादा होने की संभावना भी व्यक्त की जा रही है. जाहिर है कि इस बार वनाग्नि की चुनौतियां पिछले साल से ज्यादा होंगी. ऐसी स्थिति में वन विभाग के मुखिया विनोद सिंघल और जैव विविधता बोर्ड के अध्यक्ष राजीव भरतरी समेत जंगलों की आग बुझाने में अहम रोल अदा करने वाली पंचायत की जिम्मेदारी संभालने वाली प्रमुख वन संरक्षक ज्योत्स्ना शितलिंग भी इसी महीने में मार्च में रिटायर हो रही हैं.
उत्तराखंड की आर्थिक हालतः उत्तराखंड में आर्थिक हालातों को सुधारने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की सलाहकार का काम करने वाली कंपनी मैकेंजी को करोड़ों में हायर किया गया है. जाहिर है कि राज्य सरकार को आर्थिक हालातों में बेहद कमजोर होने के कारण ऐसा करना पड़ा. फिलहाल, राजस्व के नए स्रोत तलाशने के निर्देश मुख्य सचिव के स्तर पर अधिकारियों को दिए जाते रहे हैं. रेवेन्यू कलेक्शन के मामले पर भी मुख्य सचिव समय-समय पर समीक्षा करते रहे हैं. आर्थिक हालातों में सुधार को लेकर इसी सोच के साथ नए मुख्य सचिव के सामने भी बड़ी चुनौतियां होंगी.
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उत्तराखंड में पेपर लीक जांच और लॉ एंड ऑर्डरः हाल ही में प्रतियोगी परीक्षाओं को सीबीआई जांच कराने की मांग के साथ हजारों युवा सड़कों पर आ गए थे और ऐसे में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति भी बन गई थी. जबकि, अब भी युवा लगातार अपनी मांगों को लेकर बड़े आंदोलन की चेतावनी दे रहे हैं. इस बीच जब तमाम जांचे गतिमान है और कानून व्यवस्था को लेकर सरकार विपक्ष के निशाने पर है, तब राज्य के पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार और देहरादून एसएसपी दलीप कुंवर भी रिटायर हो रहे हैं. ऐसे में अब इन पदों पर नई जिम्मेदारी संभालने वाले अधिकारियों के सामने भी यही बड़ी चुनौतियां होगी.
वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा कहते हैं कि उत्तराखंड के पास ऐसे कई काबिल अधिकारी हैं, जो इन अफसरों के रिटायरमेंट के बाद उनका विकल्प हो सकते हैं. हालांकि, वो यह मानते हैं कि रेस को जीतने के लिए एक बेहतर घुड़सवार की जरूरत होती है. ऐसे में सरकार यदि बेहतर तरीके से अफसरों को काम के लिए मोटिवेट करती है और उन्हें भरोसे में लेकर मजबूती के साथ सही दिशा में काम लेती है तो इन अफसरों के रिटायरमेंट के बाद भी किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं होने जा रही है. सरकार आसानी से तमाम योजनाओं और चुनौतियों से पार पा सकती है.
वैसे जब कई अफसरों के सेवानिवृत्त होने की बात चल रही है तो ऐसे में इन पदों पर नया चेहरा कौन सा होगा? इसको लेकर भी बहस तेज है. तमाम चर्चाओं के बीच खबर ये है कि गढ़वाल कमिश्नर के तौर पर विनय शंकर पांडे का नाम तेजी से चल रहा है. फिलहाल, विनय शंकर पांडे हरिद्वार के जिलाधिकारी हैं, लेकिन माना जा रहा है कि अब उन्हें गढ़वाल कमिश्नर की जिम्मेदारी दी जा सकती है.
मुख्य सचिव से संधू की सेवानिवृत्ति के बाद सबसे सीनियर के तौर पर राधा रतूड़ी का नाम लिया जा रहा है. हालांकि, दिल्ली से भी कुछ चेहरे अंतिम समय में सामने आ सकते हैं. दूसरी तरफ चारधाम यात्रा समेत कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियों के चलते मुख्य सचिव के कार्यकाल को 6 महीने भी बढ़ाया जा सकता है. वन विभाग में विनोद सिंघल और राजीव भरतरी के रिटायरमेंट के बाद वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी अनूप मलिक या धनंजय मोहन वरिष्ठता के आधार पर वन मुखिया के तौर जगह बना सकते हैं.