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पुण्यतिथि विशेष: ऐसा दिग्गज नेता जिसका अमिताभ बच्चन ने कैरियर किया खत्म

भारतीय राजनीति एक मजबूत स्तंभ रहे हेमवती नंदन बहुगुणा की आज पुण्यतिथि है. यूपी और केंद्र की राजनीति में बहुत बड़ा कद रखने वाले हिम पुत्र का राजनीतिक कैरियर अमिताभ बच्चन ने खत्म कर दिया था.

death anniversary of Hemvati Nandan Bahuguna
बहुगुणा की याद समाचार
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Published : Mar 17, 2021, 10:40 AM IST

देहरादून: आज हिम पुत्र हेमवती नंदन बहुगुणा की पुण्यतिथि है. उनका जन्म 25 अप्रैल 1919 को हुआ था. संयोग से उसी महीने की 13 अप्रैल को अमृतसर का जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था. बहुगुणा का जन्म पौड़ी जिले के बुधाणी गांव में हुआ था.

डीएवी कॉलेज से हुई पढ़ाई

उनकी पढ़ाई डीएवी कॉलेज में हुई. पढ़ाई के दौरान ही हेमवती नंदन बहुगुणा का संपर्क लाल बहादुर शास्त्री से हो गया था. इससे उनका राजनीति की ओर रुझान हो गया.

छात्र आंदोलन में रहे सक्रिय

1936 से 1942 तक हेमवती नंदन बहुगुणा छात्र आंदोलनों में शामिल रहे थे. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में हेमवती नंदन की सक्रियता ने उन्हें लोकप्रियता दिला दी. अंग्रेजों ने उन्हें जिंदा या मुर्दा पकड़ने पर 5 हजार का इनाम रखा था. आखिरकार 1 फरवरी 1943 को दिल्ली की जामा मस्जिद के पास हेमवती नंदन बहुगुणा गिरफ्तार हो गए थे. 1945 में छूटे तो फिर से आजादी के आंदोलन में सक्रिय हो गए.

यूपी की राजनीति में था बड़ा नाम

आजादी के बाद बहुगुणा उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हो गए. 1952 से वो लगातार यूपी कांग्रेस कमिटी के सदस्य रहे. 1957 में पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी रहे. ऐसा माना जाता है कि सरकार जिसको मंत्री नहीं बना पाती, उसे ये पद दे देती है. पर इससे ये पता चलता है कि हेमवती नंदन बहुगुणा की अनदेखी करना सरकार के लिए आसान नहीं था. 1958 में सरकार में श्रम और उद्योग विभाग के उपमंत्री रहे. 1963 से 1969 तक यूपी कांग्रेस महासचिव के पद पर रहे.

कांग्रेस में कई बड़े पद संभाले

1967 में आम चुनाव के बाद बहुगुणा को अखिल भारतीय कांग्रेस का महामंत्री चुना गया. इसी साल चरण सिंह ने कांग्रेस छोड़ दी. फिर 1969 में इंदिरा गांधी को लेकर ही बवाल मच गया. कांग्रेस दो फाड़ हो गई. त्रिभुवन नारायण सिंह जैसे नेता कामराज के सिंडिकेट ग्रुप में चले गए. कमलापति त्रिपाठी और हेमवती नंदन बहुगुणा, इंदिरा गांधी के साथ चले गये. त्रिभुवन नारायण सिंह मुख्यमंत्री रहते हुए उपचुनाव में एक पत्रकार रामकृष्ण द्विवेदी से हार गए. इसके बाद कमलापति त्रिपाठी को यूपी का मुख्यमंत्री बनाया गया. पर पीएसी विद्रोह के चलते उनको भी पद छोड़ना पड़ा. विद्रोह के अलावा कमला सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप थे.

हेमवती नंदन बहुगुणा 1971 में पहली बार सांसद बने थे. उन्हें उम्मीद थी कि इंदिरा गांधी का लगातार सपोर्ट करने की वजह से उनको कोई ताकतवर पद मिलेगा. पर संचार विभाग में जूनियर मिनिस्टर ही बन पाए थे. उस वक्त ये इतने नाराज हुए थे कि 15 दिन तक मंत्री का चार्ज ही नहीं लिया था. आखिर इंदिरा गांधी ने बहुगुणा को स्वतंत्र प्रभार दे दिया था.

1973 में बने यूपी के मुख्यमंत्री

हेमवती नंदन बहुगुणा 8 नवंबर 1973 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. वो दो बार यूपी के मुख्यमंत्री रहे. जब देश में इमरजेंसी लगी तो वो संजय गांधी के व्यवहार से नाखुश थे. उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया.

कांग्रेस से कर दी बगावत

बहुगुणा ने पूर्व रक्षा मंत्री जगजीवन राम के साथ मिलकर कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी पार्टी बनाई. उस चुनाव में इस दल को 28 सीटें मिलीं, जिसका बाद में जनता दल में विलय हो गया. इसी पार्टी के बैनर तले बहुगुणा ने आज के उत्तराखंड की लोकसभा सीट जीती. चौधरी चरण सिंह के प्रधानमंत्री रहते बहुगुणा देश के वित्त मंत्री भी रहे.

स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा को राष्ट्रीय फलक पर किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है. उनकी दूरदर्शी सोच ने उन्हें राष्ट्रीय राजनीति का पुरोधा बना दिया. स्वतंत्रता संग्राम हो या आजादी के बाद देश को विकास के पथ पर अग्रसर करने की बात, बहुगुणा हर मोर्चे पर अग्रिम पंक्ति में खड़े रहे. उन्होंने अंतिम सांस तक देश और पहाड़ों के विकास की ही फिक्र की. उत्तराखंड की आधार भूमि तय करने में भी उनकी भूमिका को बिसराया नहीं जा सकता.

हेमवती नंदन बहुगुणा का राजनीतिक सफरनामा

  • वर्ष 1952 में सर्वप्रथम विधान सभा सदस्य निर्वाचित
  • वर्ष 1957 से लगातार 1969 तक और 1974 से 1977 तक उत्तर प्रदेश विधान सभा सदस्य
  • वर्ष 1952 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति तथा वर्ष 1957 से अखिल भारतीय कांग्रेस समिति सदस्य
  • अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव
  • वर्ष 1957 में डा. सम्पूर्णानन्द के मंत्रिमण्डल में सभासचिव
  • डा. सम्पूर्णानन्द मंत्रिमण्डल में श्रम तथा समाज कल्याण विभाग के पार्लियामेन्टरी सेक्रेटरी
  • वर्ष 1958 में उद्योग विभाग के उपमंत्री
  • वर्ष 1962 में श्रम विभाग के उपमंत्री
  • वर्ष 1967 में वित्त तथा परिवहन मंत्री

केंद्र की राजनीति में

  • वर्ष 1971,1977 तथा 1980 में लोक सभा सदस्य निर्वाचित
  • दिनांक 2 मई,1971 को केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में संचार राज्य मंत्री

यूपी के मुख्यमंत्री

  • पहली बार 8 नवम्बर, 1973 से 4 मार्च, 1974 तक
  • दूसरी बार 5 मार्च, 1974 से 29 नवम्बर, 1975 तक

जनता पार्टी सरकार में

  • वर्ष 1977 में केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में पेट्रोलियम,रसायन तथा उर्वरक मंत्री
  • वर्ष 1979 में केन्द्रीय वित्त मंत्री

अमिताभ बच्चन ने खत्म किया कैरियर

1984 में अमिताभ बच्चन राजीव गांधी के कहने पर लोकसभा इलेक्शन लड़े थे. उन्होंने इलाहाबाद सीट से उस एरिया के दिग्गज हेमवती नंदन बहुगुणा को चुनौती दी थी. बहुगुणा को अमिताभ ने 1.87 लाख से ज्यादा वोटों से करारी शिकस्त दी थी. हार के बाद हेमवती नंदन बहुगुणा लोकदल में चले गए और यहीं से उनके राजनीतिक कैरियर का पतन हो गया.

ये भी पढ़ें: क्या काशी, मथुरा और कुतुब मीनार परिसर विवाद पर सुनवाई संभव है ?

बेटा विजय और बेटी रीता भी हैं राजनीति में बड़ा नाम

हेमवती नंदन बहुगुणा के बेटा और बेटी दोनों राजनीति में हैं. विजय बहुगुणा तो उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं. रीता बहुगुणा जोशी उत्तर प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष रही हैं. फिलहाल दोनों बीजेपी में हैं.

देहरादून: आज हिम पुत्र हेमवती नंदन बहुगुणा की पुण्यतिथि है. उनका जन्म 25 अप्रैल 1919 को हुआ था. संयोग से उसी महीने की 13 अप्रैल को अमृतसर का जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था. बहुगुणा का जन्म पौड़ी जिले के बुधाणी गांव में हुआ था.

डीएवी कॉलेज से हुई पढ़ाई

उनकी पढ़ाई डीएवी कॉलेज में हुई. पढ़ाई के दौरान ही हेमवती नंदन बहुगुणा का संपर्क लाल बहादुर शास्त्री से हो गया था. इससे उनका राजनीति की ओर रुझान हो गया.

छात्र आंदोलन में रहे सक्रिय

1936 से 1942 तक हेमवती नंदन बहुगुणा छात्र आंदोलनों में शामिल रहे थे. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में हेमवती नंदन की सक्रियता ने उन्हें लोकप्रियता दिला दी. अंग्रेजों ने उन्हें जिंदा या मुर्दा पकड़ने पर 5 हजार का इनाम रखा था. आखिरकार 1 फरवरी 1943 को दिल्ली की जामा मस्जिद के पास हेमवती नंदन बहुगुणा गिरफ्तार हो गए थे. 1945 में छूटे तो फिर से आजादी के आंदोलन में सक्रिय हो गए.

यूपी की राजनीति में था बड़ा नाम

आजादी के बाद बहुगुणा उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हो गए. 1952 से वो लगातार यूपी कांग्रेस कमिटी के सदस्य रहे. 1957 में पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी रहे. ऐसा माना जाता है कि सरकार जिसको मंत्री नहीं बना पाती, उसे ये पद दे देती है. पर इससे ये पता चलता है कि हेमवती नंदन बहुगुणा की अनदेखी करना सरकार के लिए आसान नहीं था. 1958 में सरकार में श्रम और उद्योग विभाग के उपमंत्री रहे. 1963 से 1969 तक यूपी कांग्रेस महासचिव के पद पर रहे.

कांग्रेस में कई बड़े पद संभाले

1967 में आम चुनाव के बाद बहुगुणा को अखिल भारतीय कांग्रेस का महामंत्री चुना गया. इसी साल चरण सिंह ने कांग्रेस छोड़ दी. फिर 1969 में इंदिरा गांधी को लेकर ही बवाल मच गया. कांग्रेस दो फाड़ हो गई. त्रिभुवन नारायण सिंह जैसे नेता कामराज के सिंडिकेट ग्रुप में चले गए. कमलापति त्रिपाठी और हेमवती नंदन बहुगुणा, इंदिरा गांधी के साथ चले गये. त्रिभुवन नारायण सिंह मुख्यमंत्री रहते हुए उपचुनाव में एक पत्रकार रामकृष्ण द्विवेदी से हार गए. इसके बाद कमलापति त्रिपाठी को यूपी का मुख्यमंत्री बनाया गया. पर पीएसी विद्रोह के चलते उनको भी पद छोड़ना पड़ा. विद्रोह के अलावा कमला सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप थे.

हेमवती नंदन बहुगुणा 1971 में पहली बार सांसद बने थे. उन्हें उम्मीद थी कि इंदिरा गांधी का लगातार सपोर्ट करने की वजह से उनको कोई ताकतवर पद मिलेगा. पर संचार विभाग में जूनियर मिनिस्टर ही बन पाए थे. उस वक्त ये इतने नाराज हुए थे कि 15 दिन तक मंत्री का चार्ज ही नहीं लिया था. आखिर इंदिरा गांधी ने बहुगुणा को स्वतंत्र प्रभार दे दिया था.

1973 में बने यूपी के मुख्यमंत्री

हेमवती नंदन बहुगुणा 8 नवंबर 1973 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. वो दो बार यूपी के मुख्यमंत्री रहे. जब देश में इमरजेंसी लगी तो वो संजय गांधी के व्यवहार से नाखुश थे. उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया.

कांग्रेस से कर दी बगावत

बहुगुणा ने पूर्व रक्षा मंत्री जगजीवन राम के साथ मिलकर कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी पार्टी बनाई. उस चुनाव में इस दल को 28 सीटें मिलीं, जिसका बाद में जनता दल में विलय हो गया. इसी पार्टी के बैनर तले बहुगुणा ने आज के उत्तराखंड की लोकसभा सीट जीती. चौधरी चरण सिंह के प्रधानमंत्री रहते बहुगुणा देश के वित्त मंत्री भी रहे.

स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा को राष्ट्रीय फलक पर किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है. उनकी दूरदर्शी सोच ने उन्हें राष्ट्रीय राजनीति का पुरोधा बना दिया. स्वतंत्रता संग्राम हो या आजादी के बाद देश को विकास के पथ पर अग्रसर करने की बात, बहुगुणा हर मोर्चे पर अग्रिम पंक्ति में खड़े रहे. उन्होंने अंतिम सांस तक देश और पहाड़ों के विकास की ही फिक्र की. उत्तराखंड की आधार भूमि तय करने में भी उनकी भूमिका को बिसराया नहीं जा सकता.

हेमवती नंदन बहुगुणा का राजनीतिक सफरनामा

  • वर्ष 1952 में सर्वप्रथम विधान सभा सदस्य निर्वाचित
  • वर्ष 1957 से लगातार 1969 तक और 1974 से 1977 तक उत्तर प्रदेश विधान सभा सदस्य
  • वर्ष 1952 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति तथा वर्ष 1957 से अखिल भारतीय कांग्रेस समिति सदस्य
  • अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव
  • वर्ष 1957 में डा. सम्पूर्णानन्द के मंत्रिमण्डल में सभासचिव
  • डा. सम्पूर्णानन्द मंत्रिमण्डल में श्रम तथा समाज कल्याण विभाग के पार्लियामेन्टरी सेक्रेटरी
  • वर्ष 1958 में उद्योग विभाग के उपमंत्री
  • वर्ष 1962 में श्रम विभाग के उपमंत्री
  • वर्ष 1967 में वित्त तथा परिवहन मंत्री

केंद्र की राजनीति में

  • वर्ष 1971,1977 तथा 1980 में लोक सभा सदस्य निर्वाचित
  • दिनांक 2 मई,1971 को केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में संचार राज्य मंत्री

यूपी के मुख्यमंत्री

  • पहली बार 8 नवम्बर, 1973 से 4 मार्च, 1974 तक
  • दूसरी बार 5 मार्च, 1974 से 29 नवम्बर, 1975 तक

जनता पार्टी सरकार में

  • वर्ष 1977 में केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में पेट्रोलियम,रसायन तथा उर्वरक मंत्री
  • वर्ष 1979 में केन्द्रीय वित्त मंत्री

अमिताभ बच्चन ने खत्म किया कैरियर

1984 में अमिताभ बच्चन राजीव गांधी के कहने पर लोकसभा इलेक्शन लड़े थे. उन्होंने इलाहाबाद सीट से उस एरिया के दिग्गज हेमवती नंदन बहुगुणा को चुनौती दी थी. बहुगुणा को अमिताभ ने 1.87 लाख से ज्यादा वोटों से करारी शिकस्त दी थी. हार के बाद हेमवती नंदन बहुगुणा लोकदल में चले गए और यहीं से उनके राजनीतिक कैरियर का पतन हो गया.

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बेटा विजय और बेटी रीता भी हैं राजनीति में बड़ा नाम

हेमवती नंदन बहुगुणा के बेटा और बेटी दोनों राजनीति में हैं. विजय बहुगुणा तो उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं. रीता बहुगुणा जोशी उत्तर प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष रही हैं. फिलहाल दोनों बीजेपी में हैं.

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