देहरादून: उत्तराखंड भाजपा इन दिनों बड़ी ही अजीब स्थिति से गुजर रही है. एक तरफ तीरथ सिंह रावत अपनी ही सरकार के फैसले को पलटने में जुटे हैं तो वहीं दूसरी तरफ पार्टी के अंदर बेहद शांत माहौल में खींचतान की स्थिति भी दिखाई दे रही है.
तीरथ सिंह रावत के मुख्यमंत्री बनने के बाद ऐसे कई बयान और फैसले हुए हैं जो त्रिवेंद्र नेतृत्व वाली सरकार के फैसलों के ठीक उलट हैं. ताजा मामला त्रिवेंद्र सरकार के दौरान बनाए गए दायित्वधारियों को हटाने से जुड़ा हुआ है. इस बेहद बड़े और गंभीर फैसले के बाद सवाल यह उठ रहे हैं कि आखिरकार तीरथ के ऐसे फैसले भाजपा के लिए फायदेमंद होंगे?
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सवाल ये भी है कि इसका आगामी चुनाव में भी पार्टी को कितना नुकसान झेलना होगा. इसके जवाब में भाजपा के नेता कहते हैं कि ऐसे निर्णय पार्टी के शीर्ष स्तर पर लिए जाते हैं. जो भी निर्णय लिया जाता है उसे बेहद सोच समझकर आगे बढ़ाया जाता है. ऐसे में ऐसे फैसलों के नुकसान का सवाल ही पैदा नहीं होता. उन्होंने कहा जहां तक दायित्वधारियों को हटाने का मामला है तो ऐसे निर्णय पहले भी लिए जाते रहे हैं, पार्टी समय-समय पर परिस्थितियों के हिसाब से ऐसे कदम उठाती है.
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नेतृत्व परिवर्तन के बाद क्या-क्या फैसले पलटे गये
- तीरथ सिंह रावत ने मुख्यमंत्री बनने के बाद गैरसैंण को कमिश्नरी बनाए जाने के निर्णय पर पुनर्विचार करने की बात कही.
- कोटद्वार में मेडिकल कॉलेज पर त्रिवेंद्र नेतृत्व वाली सरकार ने विराम लगाया तो तीरथ सिंह रावत ने इसके लिए बजट आवंटित कर दिया.
- कर्मकार कल्याण बोर्ड में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने नया अध्यक्ष और सचिव बैठाया, तो तीरथ सिंह रावत ने आते ही सचिव और अध्यक्ष को ही हटा दिया.
- त्रिवेंद्र सरकार के दौरान अहम पदों पर बैठे अधिकारियों को हटाकर दूसरे अधिकारियों को लाया गया.
- त्रिवेंद्र सिंह रावत के करीबी माने जाने वाले दायित्वधारियों को भी तीरथ सरकार में बदल दिया गया है.
इस तरह एक महीने से भी कम वक्त में तीरथ सिंह रावत ने त्रिवेंद्र सरकार के दौरान के फैसलों को एक के बाद एक पलटा है. इस मामले पर कांग्रेस कहती है कि भाजपा में इस वक्त अंदरूनी खींचतान चल रही है. इसी का नतीजा है कि इस तरह से अपनी ही सरकार के फैसलों को भाजपा बदल रही है. लिहाजा इसका न केवल आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को नुकसान होगा, बल्कि कांग्रेस को इसका फायदा होगा.