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सुद्धोवाला जेल में 3 गुना अधिक कैदी प्रशासन के लिए बने सिरदर्द, कटघरे में कानून और सुरक्षा व्यवस्था

देहरादून की सुद्धोवाला जेल में क्षमता से 3 गुना अधिक कैदी बंद हैं. 560 कैदियों की क्षमता वाले कारागार में 1590 कैदी रखे गए हैं. 20 कैदी वाले बैरक में 55 से 60 कैदी सजा काट रहे हैं. ऐसे में अधिक संख्या में कैदी होने से जेल प्रशासन के लिए सिरदर्द बन गया है. दूसरी तरफ सुरक्षा व्यवस्था भी सवालों के कटघरे में है.

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Published : Sep 9, 2022, 7:51 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड की सुद्धोवाला जेल (Uttarakhand Suddhowala Jail) में क्षमता से 3 गुना अधिक कैदी बंद होने से कई तरह की व्यवहारिक समस्याएं दिन-प्रतिदिन जी का जंजाल बनती जा रही है. 560 कैदियों की क्षमता वाले सुद्धोवाला कारागार (Number of prisoners in Suddhowala Jail) में वर्तमान समय में 1590 कैदी बंद हैं. ऐसे में क्षमता से 3 गुना अधिक भीड़ होने की वजह से जेल में सुरक्षा व्यवस्था से लेकर अन्य तरह की व्यवस्थाओं का हाल बेहाल है.

आलम यह है कि जहां एक बैरक में 20 कैदियों को रखने की क्षमता है. वहां 55 से 60 कैदी रखे गए हैं. ऐसे में जेल में रखने, खाने से लेकर शौचालय, चिकित्सा व्यवस्था सहित सुरक्षा व्यवस्था जैसी अन्य तरह की समस्याएं जेल प्रशासन के लिए लगातार चुनौती का विषय बनी हुई है. हालांकि, इस मामले पर संबंधित अधिकारी फिलहाल कुछ भी बोलने से बच रहे हैं.

जेल में स्वीकृत मैन पावर पर तीन गुणा बोझः 580 कैदियों की क्षमता वाले देहरादून सुद्धोवाला जेल में गृह विभाग से मैन पावर के रूप में 120 पद स्वीकृत हैं. लेकिन कारागार में सिर्फ 100 कर्मी तैनात हैं, जो 1590 से अधिक कैदियों को संभाल रहे हैं. ऐसे में जेल की मैन पावर पर भी क्षमता से 3 गुना अधिक कार्य का बोझ है. हालांकि, जेलों में क्षमता से अधिक और मैन पावर की ये समस्या हल्द्वानी, सितारगंज, हरिद्वार जैसे जेलों में भी बनी हुई है. लेकिन गृह विभाग का लचर रवैया जारी है.

जेलों में 200 बंदी रक्षक की भर्ती अधर परः जानकारी के मुताबिक, उत्तराखंड की 11 जेलों में लगभग 200 बंदी रक्षकों की कमी लंबे समय से चल रही है. इसके लिए जेल प्रशासन द्वारा शासन से प्रस्ताव सहित अन्य प्रक्रिया काफी समय से प्रचलित है. लेकिन इस भर्ती के लिए भी शासन से कार्रवाई पूरी ना होने कारण यह भर्ती प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकी है. वहीं, दूसरी तरफ यूपी से अलग होने के बाद साल 2013 में एक सहमति बनी थी, जिसके तहत यूपी से 75 बंदी रक्षकों को उत्तराखंड आना था. लेकिन यह प्रक्रिया भी इतने वर्षों के बावजूद मात्र कागजों तक ही सीमित है.
ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड कैबिनेट: UKSSSC की कई परीक्षाएं हुई रद्द, लोक सेवा आयोग करवाएगा 7000 पदों पर भर्ती

ठंडे बस्ते में हाईटेक सुरक्षा बैरिक और जेल डेवलपमेंटः देहरादून सुद्दोवाला जेल को अपराधिक गतिविधि और सुरक्षा कारणों के कारण तिहाड़ जेल की तर्ज पर हाईटेक बनाने की योजना थी. जेल को सीसीटीवी, बॉडी कैंप, जैमर और अन्य तरह की आधुनिक सुरक्षा से लैस होना था. लेकिन यह योजना भी कागजी दावों तक ही सिमट गई. वहीं, कुछ समय पहले तेलंगाना की तर्ज पर उत्तराखंड में भी जेल डेवलपमेंट बोर्ड गठन का प्रस्ताव बनाकर जेल प्रशासन द्वारा शासन को भेजा गया था. लेकिन इस प्रस्ताव पर फिलहाल कोई प्रगति नजर नहीं आई. इस योजना के मुताबिक, राज्य के सभी कारागारों को अपग्रेड कर व्यवस्थित ढंग से संचालित करना था.

वहीं, जेल डेवलपमेंट बोर्ड का मकसद जेलों के छोटे-मोटे कार्यों से लेकर आवश्यक संसाधनों को जेल बोर्ड अपने स्तर से राजस्व बढ़ाकर विकास करना था. अभी तक राज्य की 11 जेलों में स्किल्ड कैदियों द्वारा तैयार होने वाले उत्पादों से औसतन सालाना 50 से 60 लाख की आमदनी होती है. हालांकि, अभी यह पैसा सरकार के खाते में चला जाता है.

लेकिन जेल डेवलपमेंट बोर्ड गठन के बाद इस कमाई को जेल बोर्ड के पास जमा कर प्रदेश कारागरों का विकास कार्यों में लगाने की योजना है. अभी तक जेलों में कोई भी विकास कार्य या मरम्मत कराने के लिए सरकार से बजट की मांग करनी पड़ती है. ऐसे में राज्य की जेलों की इन सभी योजनाओं और समस्याओं को लेकर फिलहाल कोई भी संबंधित अधिकारी बोलने की स्थिति में नजर नहीं आया है.

देहरादून: उत्तराखंड की सुद्धोवाला जेल (Uttarakhand Suddhowala Jail) में क्षमता से 3 गुना अधिक कैदी बंद होने से कई तरह की व्यवहारिक समस्याएं दिन-प्रतिदिन जी का जंजाल बनती जा रही है. 560 कैदियों की क्षमता वाले सुद्धोवाला कारागार (Number of prisoners in Suddhowala Jail) में वर्तमान समय में 1590 कैदी बंद हैं. ऐसे में क्षमता से 3 गुना अधिक भीड़ होने की वजह से जेल में सुरक्षा व्यवस्था से लेकर अन्य तरह की व्यवस्थाओं का हाल बेहाल है.

आलम यह है कि जहां एक बैरक में 20 कैदियों को रखने की क्षमता है. वहां 55 से 60 कैदी रखे गए हैं. ऐसे में जेल में रखने, खाने से लेकर शौचालय, चिकित्सा व्यवस्था सहित सुरक्षा व्यवस्था जैसी अन्य तरह की समस्याएं जेल प्रशासन के लिए लगातार चुनौती का विषय बनी हुई है. हालांकि, इस मामले पर संबंधित अधिकारी फिलहाल कुछ भी बोलने से बच रहे हैं.

जेल में स्वीकृत मैन पावर पर तीन गुणा बोझः 580 कैदियों की क्षमता वाले देहरादून सुद्धोवाला जेल में गृह विभाग से मैन पावर के रूप में 120 पद स्वीकृत हैं. लेकिन कारागार में सिर्फ 100 कर्मी तैनात हैं, जो 1590 से अधिक कैदियों को संभाल रहे हैं. ऐसे में जेल की मैन पावर पर भी क्षमता से 3 गुना अधिक कार्य का बोझ है. हालांकि, जेलों में क्षमता से अधिक और मैन पावर की ये समस्या हल्द्वानी, सितारगंज, हरिद्वार जैसे जेलों में भी बनी हुई है. लेकिन गृह विभाग का लचर रवैया जारी है.

जेलों में 200 बंदी रक्षक की भर्ती अधर परः जानकारी के मुताबिक, उत्तराखंड की 11 जेलों में लगभग 200 बंदी रक्षकों की कमी लंबे समय से चल रही है. इसके लिए जेल प्रशासन द्वारा शासन से प्रस्ताव सहित अन्य प्रक्रिया काफी समय से प्रचलित है. लेकिन इस भर्ती के लिए भी शासन से कार्रवाई पूरी ना होने कारण यह भर्ती प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकी है. वहीं, दूसरी तरफ यूपी से अलग होने के बाद साल 2013 में एक सहमति बनी थी, जिसके तहत यूपी से 75 बंदी रक्षकों को उत्तराखंड आना था. लेकिन यह प्रक्रिया भी इतने वर्षों के बावजूद मात्र कागजों तक ही सीमित है.
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ठंडे बस्ते में हाईटेक सुरक्षा बैरिक और जेल डेवलपमेंटः देहरादून सुद्दोवाला जेल को अपराधिक गतिविधि और सुरक्षा कारणों के कारण तिहाड़ जेल की तर्ज पर हाईटेक बनाने की योजना थी. जेल को सीसीटीवी, बॉडी कैंप, जैमर और अन्य तरह की आधुनिक सुरक्षा से लैस होना था. लेकिन यह योजना भी कागजी दावों तक ही सिमट गई. वहीं, कुछ समय पहले तेलंगाना की तर्ज पर उत्तराखंड में भी जेल डेवलपमेंट बोर्ड गठन का प्रस्ताव बनाकर जेल प्रशासन द्वारा शासन को भेजा गया था. लेकिन इस प्रस्ताव पर फिलहाल कोई प्रगति नजर नहीं आई. इस योजना के मुताबिक, राज्य के सभी कारागारों को अपग्रेड कर व्यवस्थित ढंग से संचालित करना था.

वहीं, जेल डेवलपमेंट बोर्ड का मकसद जेलों के छोटे-मोटे कार्यों से लेकर आवश्यक संसाधनों को जेल बोर्ड अपने स्तर से राजस्व बढ़ाकर विकास करना था. अभी तक राज्य की 11 जेलों में स्किल्ड कैदियों द्वारा तैयार होने वाले उत्पादों से औसतन सालाना 50 से 60 लाख की आमदनी होती है. हालांकि, अभी यह पैसा सरकार के खाते में चला जाता है.

लेकिन जेल डेवलपमेंट बोर्ड गठन के बाद इस कमाई को जेल बोर्ड के पास जमा कर प्रदेश कारागरों का विकास कार्यों में लगाने की योजना है. अभी तक जेलों में कोई भी विकास कार्य या मरम्मत कराने के लिए सरकार से बजट की मांग करनी पड़ती है. ऐसे में राज्य की जेलों की इन सभी योजनाओं और समस्याओं को लेकर फिलहाल कोई भी संबंधित अधिकारी बोलने की स्थिति में नजर नहीं आया है.

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