देहरादून: उत्तराखंड में संविदा, आउटसोर्स और दैनिक वेतन भोगियों की जुबान पर इन दिनों वित्त विभाग के अपर मुख्य सचिव आनंद वर्धन का ही नाम सुनाई दे रहा है. ऐसा वित्त विभाग के उन दो आदेशों के कारण हो रहा है जिनसे संविदा, आउटसोर्स और दैनिक वेतन भोगियों के हित प्रभावित हो रहे हैं. दरअसल पिछले दिनों जारी हुए आदेश में पुराने जीओ का हवाला देते हुए रिक्त पद के सापेक्ष नियुक्ति न पाने वाले संविदा आउटसोर्स या दैनिक वेतन भोगियों को मानदेय की जगह मजदूरी मद से भुगतान करने की बात कही गई थी.
शासन के इस आदेश के बाद प्रदेश के हजारों कर्मचारी प्रभावित हुए और उनके मासिक रूप से वेतन पर संकट खड़ा हो गया. इसका नतीजा यह रहा कि वन विभाग में सैकड़ो की संख्या में कर्मचारियों ने धरना प्रदर्शन कर अपना विरोध दर्ज किया. इस दौरान शासन के अधिकारियों के साथ ही सरकार के खिलाफ भी कर्मचारी का गुस्सा सातवें आसमान पर रहा, लेकिन अब एक और नए आदेश ने कर्मचारियों की नाराजगी को आक्रोश में बदल दिया है.
हाल ही में हुए आदेश में संविदा आउटसोर्स और दैनिक वेतन भोगी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को महंगाई भत्ता नहीं दिए जाने की बात कही गई है. इसके अलावा इन कर्मियों के समान काम के समान वेतन का भी अधिकार नहीं होने की बात इसमें लिखी गई है. आदेश के सार्वजनिक होते ही कर्मचारियों में खूब आक्रोश पनपता हुआ दिखाई दे रहा है और पर्वतनीय महंगाई भत्ते को लेकर अब कर्मचारियों ने आंदोलन की धमकी तक दे दी है.
खास बात यह भी है कि ऊर्जा निगम में भी पिछले दिनों उपनल कर्मचारियों को महंगाई भत्ता दिए जाने का आदेश दिया गया था, लेकिन आदेश होने के 24 घंटे में ही वित्त विभाग के दबाव के बाद आदेश को निरस्त करना पड़ा. उस दौरान सचिव ऊर्जा के मामले में बैकफुट पर आने के बात कही गई, लेकिन चर्चा यह थी कि इस मामले को शासन की मंजूरी के लिए आगे बढ़ाया गया, ताकि एक बार फिर ऊर्जा निगम के उपनल कर्मचारी को महंगाई भत्ता दिलाया जा सके, लेकिन कर्मचारियों के लिए ऐसी खुशखबरी आने से पहले ही इस नए आदेश ने महंगाई भत्ते को लेकर सभी संभावनाएं खत्म कर दी.
उत्तराखंड संविदा विद्युत कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष विनोद कवि ने कहा कि इस आदेश को जानबूझकर जारी किया गया है और कर्मचारियों के हितों पर प्रहार करते हुए नियमों के खिलाफ ऐसे आदेश किया जा रहे हैं.
आदेश जारी होने के बाद अब कर्मचारियों के हितों को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर उनकी आवाज बुलंद करने वाले इंटक ने भी इस आदेश को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है. साथ ही इसमें मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा भी संज्ञान लिए जाने की बात कही गई है.
इंटक के प्रदेश अध्यक्ष हीरा सिंह बिष्ट ने कहा कि अधिकारी बिना जानकारी के इस तरह के आदेश कर रहे हैं और अधिकारियों की आपसी प्रतिस्पर्धा के कारण कर्मचारियों पर ऐसे आदेश थोपे जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह निर्णय श्रम कानून के खिलाफ है और महंगाई भत्ता सभी कर्मचारी का हक है.
बता दें कि लोकसभा चुनाव नजदीक हैं और प्रदेश में ऐसे कई हजार कर्मचारी हैं, जो संविदा आउटसोर्स या दैनिक वेतन भोगी के रूप में सरकार के विभिन्न विभागों या योजनाओं से जुड़े हुए हैं. लिहाजा यह माना जा सकता है कि इस आदेश के बाद कर्मचारियों में सरकार के खिलाफ बड़ी नाराजगी भी है. इसी स्थिति को समझते हुए इस पर राजनीतिक बयान बाजी भी शुरू हो गई है.
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भारतीय जनता पार्टी के मीडिया प्रभारी मनवीर सिंह चौहान ने बताया कि सरकार कर्मचारियों के हितों में हर स्तर पर काम करने को तैयार है और यदि ऐसा कोई निर्णय हुआ है तो उस पर भी सरकार कर्मचारी के हितों का पूरी तरह से संरक्षण करेगी.
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