हरिद्वार: कुंभ में नागा संन्यासियों का अपना विशेष महत्व होता है. नागाओं के जीवन में धूनी का भी अलग स्थान होता है. कुंभ के दौरान आने वाले तमाम नागा जहां अपना अलग तंबू लगाते हैं तो वहीं अग्नि के प्रतीक धूनी को भी वहीं स्थापित करते हैं. उसी पर अपने हाथों से भोजन पकाते हैं. नागा संन्यासियों की धूनी लोगों के लिए एक आकर्षण का केंद्र होती है. बड़ी संख्या में श्रद्धालु नागा संन्यासियों के दर्शन उनकी धूनी पर ही करते हैं. आखिर क्या है धूनी का महत्व पेश है हमारी इस खास रिपोर्ट में.
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नागा संन्यासियों के लिए धूनी, भस्म, त्रिशूल और रुद्राक्ष महत्वपूर्ण
नागा संन्यासी के जीवन में धूनी, भस्म, त्रिशूल और रुद्राक्ष का एक विशेष महत्व होता है. कुंभ के दौरान इन नागा संन्यासियों के कई रूप जनता को देखने को मिलते हैं. निरंजनी अखाड़े के सचिव राम रतन गिरी का कहना है कि नागा संन्यासी कुंभ के दौरान अपने अखाड़े की छावनी में अलग तंबू तो लगाते ही हैं साथ ही इस तंबू के बाहर अग्नि की प्रतीक धूनी भी प्रज्ज्वलित करते हैं. इसे कुंभ के अंतिम दिन तक पूजा जाता है.
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धूनी के भस्म से करते हैं श्रृंगार
इस धूनी पर ही नागा की पूरी दिनचर्या आधारित होती है. इस धूनी की भस्म से वह अपना प्रतिदिन भस्म श्रृंगार करते हैं. इसी पर अपने लिए भोजन पकाते हैं. नागा कुंभ के दौरान किसी दूसरे के हाथ का पका भोजन भी ग्रहण नहीं करते. इनका कहना है कि नागा संन्यासी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र होते हैं, क्योंकि वस्त्र पहनने वाले संत तो बहुत होते हैं मगर नागा संन्यासी सिर्फ कुंभ में ही दिखते हैं.
धूनी को मानते हैं प्रत्यक्ष देवता
नागा संन्यासी अजय गिरी का कहना है कि धूनी हमारे प्रत्यक्ष देवता हैं. इनको जो भी भोग दिया जाता है उसको यह ग्रहण करते हैं. धूनी अग्नि का रूप मानी जाती है. धूनी पंचतत्व का स्वरूप होती है. इसके सानिध्य में बैठकर हम तपस्या करते हैं. उनका कहना है कि कुंभ मेले के उपरांत साधु-संत अपने आश्रम में निवास करते हैं. कई साधु देशभर का भ्रमण करते हैं. इनका कहना है कि कुंभ मेला नागा संन्यासियों के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है.
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धूनी पर खुद ही बनाते हैं भोजन
कुंभ का शाही स्नान करने के लिए सभी नागा संन्यासी पूरे देश से कुंभ नगरी में पहुंचते हैं. इसी कारण लोगों को सभी नागा संन्यासी एक साथ देखने को मिलते हैं. दिगंबर किरण भारती नागा संन्यासी का कहना है कि नागा संन्यासी द्वारा स्थापित की गई धूनी पर तपस्या की जाती है. देश-दुनिया में खुशहाली बनी रहे ये प्रार्थना की जाती है. धूनी पर ही हमारे द्वारा भोजन बनाया जाता है और इसकी भभूति से ही हम श्रृंगार करते हैं.
नागा संन्यासियों की धूनी श्रद्धालुओं के लिए भी एक आकर्षण का केंद्र होती है. बड़ी संख्या में श्रद्धालु नागा संन्यासियों के दर्शन करने उनकी धूनी पर पहुंचते हैं. श्रद्धालुओं का कहना है कि कुंभ में हरिद्वार का एक अलग ही रंग देखने को मिल रहा है. पूरी कुंभ नगरी जगमगाई हुई है. नागा संन्यासियों को देख कर मन में डर बना रहता था. मगर यहां पर आकर एक अलग ही अनुभूति हुई है. हमें नागा संन्यासियों के दर्शन करके काफी अच्छा लगा. इनका कहना है कि नागा संन्यासियों की धुनी श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र है और इनकी तरफ श्रद्धालुओं को खींचने पर विवश करती है.
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नागा संन्यासियों की धूनी भगवान शंकर का प्रतीक होती है. इसके द्वारा ही देवताओं को भोग लगाया जाता है. इसी के सामने बैठकर नागा संन्यासी तपस्या करते हैं. कुंभ में की गयी तपस्या का महत्व और बढ़ जाता है. साथ ही नागा संन्यासी धूनी की भभूति से ही श्रृंगार करता हैं जो लोगों में आकर्षण का केंद्र होता है.