देहरादून: देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड की चारधाम यात्रा को श्राइन बोर्ड की तर्ज पर चलाने को लेकर उत्तराखंड मंत्रिमंडल से मंजूरी मिलने के बाद तीर्थ पुरोहितों का विरोध शुरू हो गया है. यही नहीं, तीर्थ पुरोहितों ने चारधाम श्राइन बोर्ड बनाने के खिलाफ सड़कों पर उतरकर आंदोलन की भी चेतावनी दी है. हालांकि, वैष्णो देवी और तिरुपति की तर्ज पर बनाए जा रहे चारधाम श्राइन बोर्ड के अध्यक्ष मुख्यमंत्री होंगे. यही नहीं, इस बोर्ड में प्रदेश के 51 मंदिरों को शामिल किया गया है. आखिर क्या है इस बोर्ड का स्वरूप? चारधाम में किस तरह से यह बोर्ड काम करेगा. देखिये ईटीवी भारत की खास पेशकश.
उत्तराखंड की लाइफ लाइन कही जाने वाली और विश्व प्रसिद्ध चारधाम यात्रा अब बेहतर सुविधाओं में नजर आएगी. दरअसल, चारधाम यात्रा की व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने और यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधा देने को लेकर सरकार ने बड़ा कदम उठाया है. बीते दिनों सचिवालय में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में जम्मू-कश्मीर में बने श्राइन एक्ट की तर्ज पर उत्तराखंड चारधाम बोर्ड विधेयक 2019 को मंजूरी दे दी थी. जिसके अध्यक्ष प्रदेश के मुख्यमंत्री होंगे और बोर्ड का सीईओ, शासन के वरिष्ठ आइएएस अधिकारी को बनाया जाएगा.
चारधाम श्राइन बोर्ड एक्ट
उत्तराखंड चारधाम के लिए चारधाम श्राइन बोर्ड बनाने का मकसद चारधाम की व्यवस्थाओं को दुरुस्त करना है. वहीं ज्यादा जानकारी देते हुए चारधाम विकास परिषद उपाध्यक्ष शिव प्रसाद ममगाईं ने बताया कि इस एक्ट के माध्यम से यात्रियों के खाने-पीने, रहने और दर्शन करने में कोई असुविधा नहीं होगी साथ ही चारों धामों का प्रसाद सभी के हाथों में पहुंचे, इसके संबंधित प्रावधान हैं. साथ ही इस बोर्ड का काम मुख्य रूप से नीति बनाना, बजट आवंटन करना व प्रबंधन के लिये मुख्य कार्यकारी अधिकारी को दिशा-निर्देश, प्रबंधन तंत्र का आधुनिकरण और चारधाम स्थित मंदिर और परिसर का विकास करना है.
इस बोर्ड से 80 साल पुराना अधिनियम होगा निष्क्रिय
उत्तराखंड चारधाम यात्रा की परंपरा करीब 80 साल पुरानी है, साल 1939 में बदरी-केदार मंदिर समिति के लिए अधिनियम लाया गया था. तब से लेकर अभी तक बदरी-केदार मंदिर समिति का अधिनियम चल रहा है, लेकिन यमुनोत्री और गंगोत्री धाम के लिए कोई अधिनियम नहीं था, जिसके चलते यमुनोत्री और गंगोत्री धाम की यात्रा के संचालन के लिए अलग से व्यवस्थाएं करनी पड़ती हैं. ऐसे में अब उत्तराखंड कैबिनेट द्वारा चारधाम श्राइन बोर्ड बनाने के निर्णय लिए जाने के बाद 80 साल से चली आ रही बदरी-केदार मंदिर समिति की परंपरा समाप्त हो जाएगी. साथ ही चारधाम श्राइन बोर्ड लागू होने के बाद यमुनोत्री और गंगोत्री धाम की यात्रा संचालन के लिए अलग व्यवस्था नहीं करनी पड़ेगी.
बता दें कि चारों धामों को एक अधिनियम या बोर्ड में अधीन लाने की यह पहली कोशिश नहीं है, साल 2004 में तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने भी इसके लिए कोशिश की थी, जिसके चलते चारधाम विकास परिषद का गठन किया गया था, लेकिन चारधाम विकास परिषद का अधिनियम न होने के कारण परिषद का उपयोग नहीं हो पाया. वर्तमान समय में चारधाम श्राइन बोर्ड को पूर्ण रूप से लागू कराना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है.
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वहीं अब उत्तराखंड चारधाम श्राइन बोर्ड विधेयक 2019 को कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद आगामी 4 दिसंबर से होने वाले शीतकाल सत्र में चारधाम श्राइन प्रबंधन विधेयक बिल को सदन के पटल पर रखा जाएगा. चारधाम श्राइन बोर्ड में केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री धाम सहित प्रदेश के 51 सहयोगी मंदिरों को भी शामिल किया गया है. यही नहीं, चारधाम श्राइन बोर्ड में प्रदेश के मुख्यमंत्री को बोर्ड का अध्यक्ष, धर्मस्व मंत्री को बोर्ड का उपाध्यक्ष और सम्बंधित क्षेत्रों के सांसद, विधायक और प्रमुख दानकर्ता को बोर्ड के सदस्य के रूप में शामिल किया जाएगा. इसके साथ ही चारों धामों के पुजारी और वंशागत पुजारी का प्रतिनिधित्व भी बोर्ड में होगा.
वहीं, चारधाम श्राइन बोर्ड का विरोध कर रहे तीर्थ पुरोहितों ने सरकार पर धोखाधड़ी का आरोप लगते हुए बताया कि सरकार ने तीर्थ पुरोहितों से राय लिए बिना चारधाम श्राइन बोर्ड बनाकर कैबिनेट में पास कर दिया है. साथ ही बताया कि चारों धामों की पूजा पद्धति अलग है. ऐसे में इसे एक साथ नहीं लाया जा सकता, लेकिन राज्य सरकार चारों धामों की पारंपरिक व्यवस्था को तोड़ना चाहती है, जो सनातन धर्म पर कुठाराघात है इसलिए उनकी मांग है कि सरकार इस विधेयक को वापस ले.
दूसरी ओर चारधाम विकास परिषद उपाध्यक्ष शिव प्रसाद मंमगाई ने बताया कि चारधाम श्राइन बोर्ड के संबंध में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 3 दिसम्बर तक तीर्थ पुरोहितों के सुझाव मांगे हैं ताकि एक्ट में कोई कमी न रहे. साथ ही बताया की अगर यह बोर्ड बनकर तैयार हो जाता है, तो इससे चारधाम में सुविधाएं बढ़ेंगी और व्यवस्थाएं भी ठीक होंगी, लेकिन अगर मंदिरों की परंपराओं के साथ छेड़छाड़ की गई तो वो बर्दाश्त नहीं की जाएंगी.
वहीं, प्रदेश की दोनों मुख्य पार्टियां भाजपा और कांग्रेस भी चारधाम श्राइन बोर्ड विवाद के अखाड़े में कूद गई है. जहां एक ओर भाजपा प्रदेश मीडिया प्रभारी देवेंद्र भसीन ने राज्य सरकार के इस निर्णय को बहुत महत्वपूर्ण निर्णय बताते हुए स्वागत किया है. साथ ही उन्होंने इस बोर्ड से अंग्रेजों के कानून से मुक्त होने और चारधाम के विकास को नई दिशा मिलने की बात कही है, तो वहीं कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने भी चारधाम श्राइन बोर्ड का स्वागत करते हुए कहा कि सरकार को सभी पक्षों को साथ लेकर निर्णय करना चाहिए और तीर्थ पुरोहितों को नाराज नहीं करना चाहिए.
हालांकि, उत्तराखंड चारधाम यात्रा को श्राइन बोर्ड की तर्ज पर चारधाम श्राइन बोर्ड बनाने का निर्णय तो राज्य सरकार ने ले लिया है, लेकिन क्या सरकार इस बोर्ड का विरोध कर रहे तीर्थ पुरोहितों को मनाकर बोर्ड का गठन कर पाएगी और अगर बोर्ड का गठन कर लेती है, तो उससे चारधाम की व्यवस्थाओं पर कितना फर्क पड़ेगा. ये देखने वाली बात होगी.