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कुलदेवी से हारी 200 लोगों की जान लेने वाली आपदा, ऐसे हुआ चमत्कार

हिमालय में चमत्कार हुआ है. 200 से ज्यादा लोगों की जान लेने वाला और कई प्रोजेक्ट को नेस्तनाबूद करने वाला सैलाब भी मां की मूर्ति का बाल बांका नहीं कर पाया.

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चमोली में चमत्कार
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Published : Apr 5, 2021, 2:21 PM IST

Updated : Apr 5, 2021, 3:17 PM IST

देहरादून/चमोली: 7 फरवरी 2021..ये तारीख भला उत्तराखंड के साथ-साथ देश शायद ही भूल पाए. ये वो तारीख है जिस दिन उत्तराखंड के चमोली स्थित रैणी गांव से ग्लेशियर टूटने की वजह से 200 से ज्यादा जिंदगियां काल के गाल में समा गईं. हजारों करोड़ों रुपए का नुकसान हो गया. अचानक आई इस आपदा में मानो चमोली स्थित रैणी गांव से लेकर तपोवन तक का पूरा नक्शा ही बदल कर रख दिया.

कुलदेवी से हारी 200 लोगों की जान लेने वाली आपदा.

7 फरवरी 2021 को आला था सैलाब

सुबह आए सैलाब ने हर किसी को डरा कर दिया. इस सैलाब के आगे ना कंक्रीट के बांध बचे और ना ही उनमें काम करने वाले लोग. लेकिन क्या आप यकीन करेंगे कि जिस जगह से यह पूरा सैलाब उठा था उस रैणी गांव में जिस मंदिर की चर्चा उस वक्त भी हो रही थी कि यह सैलाब गांव की कुलदेवी माता काली के मंदिर को भी बहा कर ले गया. जिस मंदिर की याद करके गांव के लोग रो रहे थे. उस मंदिर की चारदीवारी को भले ही सैलाब ने धराशाई कर दिया हो लेकिन जो सैलाब बड़े-बड़े बांधों को अपनी चपेट में लेकर ध्वस्त कर चुका था, वह सैलाब मंदिर में स्थित माता काली की मूर्ति को छू भी नहीं पाया.

दो महीने बाद सुरक्षित मिली मां की मूर्ति

जी हां 2 महीने बाद जब कली मंदिर के आसपास गांव के लोगों ने खुदाई की तो मंदिर में स्थित मूर्ति उसी जगह पर स्थापित मिली. इसके बाद पूरे गांव में इस घटना को चमत्कार के रूप में देखा जा रहा है. लोगों की खुशी का ठिकाना भी नहीं है.

सुबह-सुबह आए इस सैलाब में सब कुछ तबाह कर दिया. पूरी दुनिया ने देखा कि आखिरकार कैसे जब कुदरत अपने गुरूर पर होती है तो वह अपने पीछे विनाश की एक बड़ी कहानी छोड़ जाती है. हालांकि उत्तराखंड ऐसी कहानियों से हर साल 2-4 होता है लेकिन इन आपदाओं में हर बार कुछ ना कुछ ऐसा जरूर होता है जिसके बाद उत्तराखंड के मंदिरों यहां की देवी देवताओं और पहाड़ों में स्थित अलौकिक शक्तियों को लोग मानने पर मजबूर हो जाते हैं.

2013 में केदारनाथ में आई थी आपदा

आपको याद होगा साल 2013 की आपदा के वक्त भी तमाम उत्तराखंड के लोग इसी बात को जोर-जोर से कह रहे थे की पानी की आपूर्ति और बिजली की आपूर्ति के लिए जिस धारी देवी मंदिर को डुबोया जा जा रहा है, उस धारी देवी मंदिर में दरारें आ गई हैं. जिस वजह से कुछ दिन बाद 2013 की आपदा आ गई थी.

आपदा पर आस्था पड़ी भारी

हालांकि कुछ लोगों ने इसे भगवान के प्रति आस्था का नाम दिया लेकिन एक बार फिर से आपदा के ऊपर आस्था भारी पड़ी है. इसका जीता जागता उदाहरण है रैणी गांव में घटी ये घटना.

पावर प्रोजेक्ट बह गया लेकिन मूर्ति रही सही-सलामत

जिस जगह मंदिर मौजूद है उससे चंद कदमों की दूरी पर एनटीपीसी का प्रोजेक्ट था. जिसके बारे में यह कहा गया है कि रिसर्च में ही लगभग 20 साल लगेंगे कि आखिरकार अगर कोई आपदा पानी के रूप में सैलाब बनकर आती है तो इसको कोई नुकसान ना पहुंचे. लेकिन 7 फरवरी को आई आपदा में यह प्रोजेक्ट ताश के पत्तों की तरह बह गया. लेकिन उस से चंद कदमों की दूरी पर स्थित छोटी सी मूर्ति को यह सैलाब अपने साथ नहीं बहा पाया.

आपको जानकर हैरानी होगी कि जब रविवार को इस मंदिर की खुदाई की जा रही थी और जैसे ही यह मूर्ति निकली यकीन मानिए इस मूर्ति के ऊपर से पानी का सैलाब पत्थर बोल्डर और ना जाने कितना मलवा गुजरा. लेकिन गर्भ गृह में स्थापित मां काली की मूर्ति को यह जरा भी नुकसान नहीं पहुंचा पाया.

ये भी पढ़िए: जोशीमठ जल प्रलयः अपनों के इंतजार में बेबस बेजुबान, रैणी आपदा में खोया परिवार

गांव के लोगों में खुशी का माहौल

ग्राम प्रधान शोभा राणा की मानें तो इस मंदिर में पूरे क्षेत्र की बहुत आस्था है. जिस दिन से यह मंदिर गायब हुआ था उस दिन से ही इसकी खोज भी जारी थी. गांव के लोग बहुत परेशान थे. इस मंदिर को लेकर के खासकर अपनी कुलदेवी को लेकर लोग बहुत परेशान थे. लेकिन आज मानो उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो गई हैं. पूरे गांव में खुशी का माहौल बना हुआ है.

देहरादून/चमोली: 7 फरवरी 2021..ये तारीख भला उत्तराखंड के साथ-साथ देश शायद ही भूल पाए. ये वो तारीख है जिस दिन उत्तराखंड के चमोली स्थित रैणी गांव से ग्लेशियर टूटने की वजह से 200 से ज्यादा जिंदगियां काल के गाल में समा गईं. हजारों करोड़ों रुपए का नुकसान हो गया. अचानक आई इस आपदा में मानो चमोली स्थित रैणी गांव से लेकर तपोवन तक का पूरा नक्शा ही बदल कर रख दिया.

कुलदेवी से हारी 200 लोगों की जान लेने वाली आपदा.

7 फरवरी 2021 को आला था सैलाब

सुबह आए सैलाब ने हर किसी को डरा कर दिया. इस सैलाब के आगे ना कंक्रीट के बांध बचे और ना ही उनमें काम करने वाले लोग. लेकिन क्या आप यकीन करेंगे कि जिस जगह से यह पूरा सैलाब उठा था उस रैणी गांव में जिस मंदिर की चर्चा उस वक्त भी हो रही थी कि यह सैलाब गांव की कुलदेवी माता काली के मंदिर को भी बहा कर ले गया. जिस मंदिर की याद करके गांव के लोग रो रहे थे. उस मंदिर की चारदीवारी को भले ही सैलाब ने धराशाई कर दिया हो लेकिन जो सैलाब बड़े-बड़े बांधों को अपनी चपेट में लेकर ध्वस्त कर चुका था, वह सैलाब मंदिर में स्थित माता काली की मूर्ति को छू भी नहीं पाया.

दो महीने बाद सुरक्षित मिली मां की मूर्ति

जी हां 2 महीने बाद जब कली मंदिर के आसपास गांव के लोगों ने खुदाई की तो मंदिर में स्थित मूर्ति उसी जगह पर स्थापित मिली. इसके बाद पूरे गांव में इस घटना को चमत्कार के रूप में देखा जा रहा है. लोगों की खुशी का ठिकाना भी नहीं है.

सुबह-सुबह आए इस सैलाब में सब कुछ तबाह कर दिया. पूरी दुनिया ने देखा कि आखिरकार कैसे जब कुदरत अपने गुरूर पर होती है तो वह अपने पीछे विनाश की एक बड़ी कहानी छोड़ जाती है. हालांकि उत्तराखंड ऐसी कहानियों से हर साल 2-4 होता है लेकिन इन आपदाओं में हर बार कुछ ना कुछ ऐसा जरूर होता है जिसके बाद उत्तराखंड के मंदिरों यहां की देवी देवताओं और पहाड़ों में स्थित अलौकिक शक्तियों को लोग मानने पर मजबूर हो जाते हैं.

2013 में केदारनाथ में आई थी आपदा

आपको याद होगा साल 2013 की आपदा के वक्त भी तमाम उत्तराखंड के लोग इसी बात को जोर-जोर से कह रहे थे की पानी की आपूर्ति और बिजली की आपूर्ति के लिए जिस धारी देवी मंदिर को डुबोया जा जा रहा है, उस धारी देवी मंदिर में दरारें आ गई हैं. जिस वजह से कुछ दिन बाद 2013 की आपदा आ गई थी.

आपदा पर आस्था पड़ी भारी

हालांकि कुछ लोगों ने इसे भगवान के प्रति आस्था का नाम दिया लेकिन एक बार फिर से आपदा के ऊपर आस्था भारी पड़ी है. इसका जीता जागता उदाहरण है रैणी गांव में घटी ये घटना.

पावर प्रोजेक्ट बह गया लेकिन मूर्ति रही सही-सलामत

जिस जगह मंदिर मौजूद है उससे चंद कदमों की दूरी पर एनटीपीसी का प्रोजेक्ट था. जिसके बारे में यह कहा गया है कि रिसर्च में ही लगभग 20 साल लगेंगे कि आखिरकार अगर कोई आपदा पानी के रूप में सैलाब बनकर आती है तो इसको कोई नुकसान ना पहुंचे. लेकिन 7 फरवरी को आई आपदा में यह प्रोजेक्ट ताश के पत्तों की तरह बह गया. लेकिन उस से चंद कदमों की दूरी पर स्थित छोटी सी मूर्ति को यह सैलाब अपने साथ नहीं बहा पाया.

आपको जानकर हैरानी होगी कि जब रविवार को इस मंदिर की खुदाई की जा रही थी और जैसे ही यह मूर्ति निकली यकीन मानिए इस मूर्ति के ऊपर से पानी का सैलाब पत्थर बोल्डर और ना जाने कितना मलवा गुजरा. लेकिन गर्भ गृह में स्थापित मां काली की मूर्ति को यह जरा भी नुकसान नहीं पहुंचा पाया.

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गांव के लोगों में खुशी का माहौल

ग्राम प्रधान शोभा राणा की मानें तो इस मंदिर में पूरे क्षेत्र की बहुत आस्था है. जिस दिन से यह मंदिर गायब हुआ था उस दिन से ही इसकी खोज भी जारी थी. गांव के लोग बहुत परेशान थे. इस मंदिर को लेकर के खासकर अपनी कुलदेवी को लेकर लोग बहुत परेशान थे. लेकिन आज मानो उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो गई हैं. पूरे गांव में खुशी का माहौल बना हुआ है.

Last Updated : Apr 5, 2021, 3:17 PM IST
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