देहरादून: उत्तराखंड में कोरोन वायरस के बढ़ते मामलों के बीच स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत कितनी खराब है ये किसी से छिपा नहीं है. तमाम अस्पतालों में जूझ रहे मरीजों को न तो ऑक्सीजन मिल पा रही है, न ही वे सुविधाएं जिनके वे हकदार हैं. ऐसे टाइम में जनप्रतिनिधि जनता के प्रति कितने संवेदनशील हैं ये जानने के लिए ईटीवी भारत ने टिहरी सांसद माला राज्य लक्ष्मी से संपर्क किया. जिसमें हमने एक पीड़ित बनकर उनसे मदद की गुहार लगाई. इस सारी बातचीत में क्या कुछ निकलकर सामने आया, सांसद मोहदया ने इस मुश्किल दौर में कितनी संवेनशीलता दिखाई आइये आपको बताते हैं.
गायब अफसर, जनप्रतिनिधि
कोरोना संक्रमण से जंग में लोग बेबस हैं. जनप्रतिनिधि हों या अफसर, हर किसी से मदद की आस लगाए बैठे हैं, लेकिन वो पूरी नहीं हो रही है. जो अफसर और जनप्रतिनिधि सुझाव या समस्या पूछते थे, वो अब फोन तक नहीं उठा रहे हैं. जनप्रतिनिधियों और अफसरों के इस बर्ताव से लोगों में रोष है. कोरोना काल में लोगों को किसी तरह की मदद नहीं मिल रही है. जनप्रतिनिधि और अफसर सिर्फ सोशल मीडिया पर ही दिखाई दे रहे हैं. धरातल पर सिर्फ मरीज, तीमारदार और बेबस लोग ही दिखाई दे रहे हैं.
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सांसद से लगाई मदद की गुहार
कोरोनाकाल में जनप्रतिनिधियों की संवेदनाओं और भावनाओं के रियलिटी टेस्ट में हमने सबसे पहले टिहरी सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह के ही एक सहयोगी को फोन किया. हमने मरीज की हालत का हवाला देते हुए उनसे एक अदद वेंटिलेटर बेड की व्यवस्था करने की बात कही. जिस पर उनकी ओर से कहा गया कि वे ऋषिकेश आ गये हैं, लिहाजा वह फिलहाल किसी भी तरह की कोई हेल्प नहीं कर सकते हैं.
सांसद प्रतिनिधि ने छुट्टी का हवाला देकर छुड़ाया पल्ला
इसके बाद हमने दूसरा फोन उनके प्रतिनिधि (ओएसडी) राजपाल को मिलाया. राजपाल ने भी छुट्टी का हवाला देते हुए किसी भी तरह की मदद देने से इंकार कर दिया. हम हम लगातार मरीज की हालत को लेकर उनसे मदद की गुहार लगा रहे थे, मगर फिर भी उनका दिल नहीं पसीजा. आखिर में जब हमने उनसे पूछा कि किस जिम्मेदार से बात करने मदद मिल सकती है तो उन्होंने सांसद का नंबर हमें दे दिया.
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सांसद को 'सुनाई' नहीं देता !
इसके बाद हमारी टीम ने टिहरी सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह से संपर्क किया. सबसे पहले तो कई देर तक उनका फोन उठा ही नहीं. जब फोन उठा तो हमने उन्हें अपना परिचय देते हुए पीड़ित मरीज के लिए मदद मांगी. हम तो अपनी ओर से लगातार मदद मांगते रहे, मगर दूसरी ओर से आवाज न सुनाई देते का नाटक चलता रहा. मुश्किल से 3 या 4 सेकंड के बाद दोबारा फोन काट कर हमने फिर से नंबर मिलाया. उसके बाद सांसद महोदय का नंबर बंद हो चुका था. हमें लगा कि कुछ देर बाद शायद फोन खुल जाये, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
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बजती रही घंटी, नहीं उठा फोन
उसके बाद सुबह फिर से हमने प्रयास किया. 6 कॉल करने के बाद भी सांसद ने फोन नहीं उठाया. ऐसे में सवाल ये उठता है कि ऐसे मुश्किल हालातों में जनता, जनप्रतिनिधियों के अलावा मदद की आस लगायें भी तो किससे? उसके ऊपर से जनप्रतिनिधियों का ऐसा संवेदनहीन रवैया जनता के हौसले को तोड़ने का काम करता है. जनता अपने जनप्रतिनिधि का चुनाव इसलिए करती है कि वो सुख-दुख में उसका साथ देगी, मुश्किल हालातों में उसकी खेवनहार बनेगी. मगर जो कुछ हमने देखा उससे कहीं भी ये नहीं लगता है कि जनता के इन जन प्रतिनिधियों को किसी की भी कोई फिक्र है.
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जिम्मेदारों का गैरजिम्मेदाराना रवैया
अस्पतालों, सड़कों पर लोग हर दिन कोरोना के कारण काल के गाल में समा रहे हैं. समाज में जिससे जितनी मदद बन रही है वो अपनी तरफ से भरसक कोशिशों में लगे हैं, मगर ऐसे समय में जो लोग जिम्मेदार हैं वो ही गैर जिम्मेदाराना रवैया अपना रहे हैं. इसी तरह सांसद महोदया के अधिकारियों और खुद के इस तरह से किसी भी संवेदनशील मामले को हैंडल करने से इस बात की तस्दीक होती है कि वे जनता के प्रति डेडिकेटेड हैं.
ऐसे मुश्किल हालात में जनप्रतिनिधि, क्षेत्रीय सांसद, विधायकों का इस तरह का रवैया बेहद ही शर्मनाक है. ऐसे समय में जब देश विकट समस्या का सामना कर रहा है तो हमारे सांसद एवं विधायक जनता के साथ मजाक करने से बाज नहीं आ रहे हैं. उनको जनमानस से, उनकी समस्याओं से, उनकी आवश्यकताओं से वास्तविक रूप से सरोकार है तो वे जनता से साथ खड़े होते. न कि इस तरह बहानों से समस्याओं से पीछा छुड़ाते.