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देवस्थानम बोर्ड भंग करने की मांग हुई तेज, CM धामी से मिले तीर्थ पुरोहित

उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड (uttarakhand chardham devasthanam management board) के विरोध को लेकर चारधाम के तीर्थ-पुरोहित और हक-हकूकधारियों (teerth purohit) ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (CM pushkar singh dhami) से मुलाकात की.

teerth pourth meet CM dhami
देवस्थानम बोर्ड
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Published : Jul 6, 2021, 7:45 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड (uttarakhand chardham devasthanam management board) का विरोध लगातार जारी है. मंगलवार को चारधाम के तीर्थ-पुरोहित और हक-हकूकधारी (teerth purohit) महापंचायत के अध्यक्ष कृष्णकांत कोठियाल के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (CM pushkar singh dhami) से मुलाकात की. प्रतिनिधिमंडल ने उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के बारे में मुख्यमंत्री धामी को विस्तार से जानकारी दी.

प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री धामी (pushkar singh dhami) से कहा कि इस अधिनियम (chardham devasthanam board) के माध्यम से सरकार की मंशा चारों धामों की संपूर्ण व्यवस्था अपने हाथों पर लेने की है, जो उचित नहीं है. तीर्थ-पुरोहितों ने स्पष्ट किया कि इस अधिनियम के आने के बाद जो भ्रम और विवाद की स्थिति पैदा हुई उसके लिए केवल और केवल सरकार जिम्मेदार है. क्योंकि विधेयक लाने से पूर्व राज्य सरकार ने किसी भी तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारी से परामर्श नहीं किया.

पढ़ें- चारधाम यात्रा के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंची धामी सरकार, दायर की विशेष अनुमति याचिका

प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री धामी (teerth purohit meet CM dhami) से कहा कि सरकार इन तीर्थों और मंदिरों के लिए तिरुपति बालाजी और वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड का मॉडल लेकर आई है, जो शास्त्र सम्मत नहीं है. उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड विधेयक न केवल उत्तराखंड के चारोंधामों के तीर्थ पुरोहितों, हक-हकूकधारी समाज व स्थानीय जनमानस की भावनाओं के खिलाफ है, बल्कि करोड़ों हिंदुओं की आस्था और विश्वास पर भी आघात करता है. इसलिए अविलम्ब देवस्थानम प्रबन्धन बोर्ड को भंग करते हुए 27 नवंबर 2019 से पूर्व की स्थिति को बहाल किया जाए.

1939 का बीकेटीसी अधिनियम

संयुक्त उत्तर प्रदेश में साल 1939 में बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति अधिनियम लाया गया था. इसके तहत गठित बदरी-केदार मंदिर समिति (बीकेटीसी) तब से बदरीनाथ और केदारनाथ की व्यवस्थाएं देखती आ रही थी. इनमें बदरीनाथ से जुड़े 29 और केदारनाथ से जुड़े 14 मंदिर भी शामिल थे. इस तरह कुल 45 मंदिरों का जिम्मा बीकेटीसी के पास था.

पढ़ें- नए CM को तीर्थ पुरोहितों ने चेताया, देवस्थानम बोर्ड भंग नहीं किया तो 2022 में लगेगा अभिशाप

2019 में बना चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड

साल 2017 में बीजेपी सत्ता में आई. इसके बाद वैष्णो देवी और तिरुपति बालाजी बोर्ड की तर्ज पर यहां भी चारधाम के लिए बोर्ड बनाने की कसरत हुई. 2019 में तत्कालीन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री समेत 51 मंदिरों का प्रबंधन हाथ में लेने के लिए एक्ट के जरिए चारधाम देवस्थानम बोर्ड बनाया.

चारधाम देवस्थानम बोर्ड के गठन के बाद से ही चारोंधाम के तीर्थ-पुरोहित और हक-हकूकधारी इसका विरोध कर रहे हैं. तभी वे इस फैसले को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद तीर्थ-पुरोहितों ने उनके बाद बने मुख्यमंत्री बने तीरथ सिंह रावत के आगे भी अपनी मांग रखी थी. लेकिन तीरथ सरकार ने भी इस पर कोई फैसला नहीं लिया. तभी से तीर्थ-पुरोहितों का विरोध चला आ रहा है. अब उन्होंने नए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात कर अपनी समस्या बताई और मांग की धामी सरकार जल्द से जल्द चारधाम देवस्थानम बोर्ड को भंग करे.

देहरादून: उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड (uttarakhand chardham devasthanam management board) का विरोध लगातार जारी है. मंगलवार को चारधाम के तीर्थ-पुरोहित और हक-हकूकधारी (teerth purohit) महापंचायत के अध्यक्ष कृष्णकांत कोठियाल के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (CM pushkar singh dhami) से मुलाकात की. प्रतिनिधिमंडल ने उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के बारे में मुख्यमंत्री धामी को विस्तार से जानकारी दी.

प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री धामी (pushkar singh dhami) से कहा कि इस अधिनियम (chardham devasthanam board) के माध्यम से सरकार की मंशा चारों धामों की संपूर्ण व्यवस्था अपने हाथों पर लेने की है, जो उचित नहीं है. तीर्थ-पुरोहितों ने स्पष्ट किया कि इस अधिनियम के आने के बाद जो भ्रम और विवाद की स्थिति पैदा हुई उसके लिए केवल और केवल सरकार जिम्मेदार है. क्योंकि विधेयक लाने से पूर्व राज्य सरकार ने किसी भी तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारी से परामर्श नहीं किया.

पढ़ें- चारधाम यात्रा के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंची धामी सरकार, दायर की विशेष अनुमति याचिका

प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री धामी (teerth purohit meet CM dhami) से कहा कि सरकार इन तीर्थों और मंदिरों के लिए तिरुपति बालाजी और वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड का मॉडल लेकर आई है, जो शास्त्र सम्मत नहीं है. उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड विधेयक न केवल उत्तराखंड के चारोंधामों के तीर्थ पुरोहितों, हक-हकूकधारी समाज व स्थानीय जनमानस की भावनाओं के खिलाफ है, बल्कि करोड़ों हिंदुओं की आस्था और विश्वास पर भी आघात करता है. इसलिए अविलम्ब देवस्थानम प्रबन्धन बोर्ड को भंग करते हुए 27 नवंबर 2019 से पूर्व की स्थिति को बहाल किया जाए.

1939 का बीकेटीसी अधिनियम

संयुक्त उत्तर प्रदेश में साल 1939 में बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति अधिनियम लाया गया था. इसके तहत गठित बदरी-केदार मंदिर समिति (बीकेटीसी) तब से बदरीनाथ और केदारनाथ की व्यवस्थाएं देखती आ रही थी. इनमें बदरीनाथ से जुड़े 29 और केदारनाथ से जुड़े 14 मंदिर भी शामिल थे. इस तरह कुल 45 मंदिरों का जिम्मा बीकेटीसी के पास था.

पढ़ें- नए CM को तीर्थ पुरोहितों ने चेताया, देवस्थानम बोर्ड भंग नहीं किया तो 2022 में लगेगा अभिशाप

2019 में बना चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड

साल 2017 में बीजेपी सत्ता में आई. इसके बाद वैष्णो देवी और तिरुपति बालाजी बोर्ड की तर्ज पर यहां भी चारधाम के लिए बोर्ड बनाने की कसरत हुई. 2019 में तत्कालीन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री समेत 51 मंदिरों का प्रबंधन हाथ में लेने के लिए एक्ट के जरिए चारधाम देवस्थानम बोर्ड बनाया.

चारधाम देवस्थानम बोर्ड के गठन के बाद से ही चारोंधाम के तीर्थ-पुरोहित और हक-हकूकधारी इसका विरोध कर रहे हैं. तभी वे इस फैसले को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद तीर्थ-पुरोहितों ने उनके बाद बने मुख्यमंत्री बने तीरथ सिंह रावत के आगे भी अपनी मांग रखी थी. लेकिन तीरथ सरकार ने भी इस पर कोई फैसला नहीं लिया. तभी से तीर्थ-पुरोहितों का विरोध चला आ रहा है. अब उन्होंने नए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात कर अपनी समस्या बताई और मांग की धामी सरकार जल्द से जल्द चारधाम देवस्थानम बोर्ड को भंग करे.

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