देहरादून: पर्वतीय क्षेत्रों में बदहाल शिक्षा व्यवस्था का हाल किसी से छुपा नहीं हैं. एक तरफ पहाड़ में शिक्षक नहीं हैं तो दूसरी ओर आदेशों को मानने को भी अधिकारी तैयार नही हैं. चिंता की बात ये है कि शिक्षा महकमे की पेचीदगियों के चलते कई बार कोर्ट के निर्णय महकमे की मुश्किलें बढ़ा देती है. वहीं शिक्षा मंत्री के आदेशों के बाद भी शिक्षकों की तैनाती पर्वतीय क्षेत्रों में नहीं हो पा रही है.
गौर हो कि उत्तराखंड में पहाड़ी क्षेत्र शिक्षकों की भारी कमी से जूझ रहा है. ऐसे में शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे ने मोदी सरकार में करीब 500 से ज्यादा शिक्षकों को फिर से पहाड़ चढ़ाने के आदेश दिए. जिनको तमाम व्यक्तिगत कारणों के चलते मैदानी जिलों में दूसरे संवर्ग पर नियुक्ति दी गई थी. लेकिन शिक्षा मंत्री के इन आदेशों के बाद भी अब तक ऐसे शिक्षकों की पर्वतीय क्षेत्रों में तैनाती नहीं हो पाई है. चिंता की बात यह है कि इससे पहले भी शिक्षा मंत्री के आदेशों के खिलाफ अधिकारियों की कार्यप्रणाली के मामले सामने आते रहे हैं.
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दूसरा मामला एससीईआरटी में शैक्षिक योग्यता पूरी ना करने वाले शिक्षकों को हटाए जाने से जुड़ा है. जिनको लेकर शिक्षा मंत्री के आदेशों पर अब तक कार्रवाई नहीं की गई है. शिक्षा महकमे में नियमों की अनदेखी और मंत्री के निर्देशों की नाफरमानी के मामले सामने आ रहे हैं. वहीं कोर्ट की तरफ से शिक्षकों को लेकर आ रहे आदेश भी महकमे के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं. बता दे कि राज्य में तदर्थ शिक्षकों को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता दिए जाने पर उत्तराखंड पब्लिक सर्विस ट्रिब्यूनल ने रोक लगा दी है.
वहीं हाईकोर्ट के आदेश के चलते शासन ने सदर शिक्षकों को वरिष्ठता दी थी. जिससे सीधी भर्ती वाले शिक्षकों की वरिष्ठता प्रभावित हो रही थी. हालांकि मामले पर ट्यूबवेल में अगली सुनवाई के बाद भी स्थिति स्पष्ट हो पाएगी.