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Maha Shivratri 2023: टपकेश्वर महादेव मंदिर जहां कभी टपकती थी दूध की बूंदें, महाभारत काल से जुड़ा है इतिहास

उत्तराखंड के देहरादून में टपकेश्वर महादेव मंदिर मौजूद है. माना जाता है कि कभी यहां शिलाओं से दूध की बूंदें टपकती थी, लेकिन अब यहां पानी की बूंदें टपकती है. जिसकी आस्था दूर-दूर तक है. महाशिवरात्रि के दिन यहां का नजारा देखते ही बनता है. इसी दिन भगवान शिव के दर्शन और जलाभिषेक के श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ता है. इस बार भी महाशिवरात्रि को लेकर खास तैयारियां की गई है.

Tapkeshwar Temple Dehradun
टपकेश्वर महादेव मंदिर देहरादून
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Published : Feb 17, 2023, 6:28 PM IST

Updated : Feb 17, 2023, 9:10 PM IST

टपकेश्वर महादेव मंदिर की महिमा.

देहरादूनः महाशिवरात्रि पर्व 2023 को लेकर के सभी मठ मंदिरों में तैयारियां शुरू हो गई हैं. देहरादून के पौराणिक टपकेश्वर महादेव को भी भव्य तरीके से सजाया गया है. टपकेश्वर महादेव मंदिर में भोलेनाथ शंभू के रूप में विराजमान है. शिवरात्रि के दिन टपकेश्वर महादेव मंदिर में लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. जिसके चलते व्यवस्थाओं को पहले ही मुकम्मल किया जाता है. जिसके चलते मंदिर में व्यवस्थाओं को चाक-चौबंद किया गया है.

बता दें कि हर साल फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है. इसके अलावा त्रयोदशी की रात्रि से ही शिवरात्रि पर्व मनाए जाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. लिहाजा, त्रयोदशी की रात्रि 12 बजे से ही बाबा को श्रद्धालुओं की ओर से जल चढ़ाए जाने का सिलसिला शुरू हो जाता है. इस दिन लोग भगवान भोलेनाथ की पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है.

शिवरात्रि के पर्व पर ब्रह्म मुहूर्त में सबसे पहले बाबा का महा विषयक पंचवार्षिक किया जाता है. इसके बाद बाबा का सिंगार कर उनकी प्रात: काल आरती भी की जाती है. इसके साथ ही भोले बाबा को नाना प्रकार की उनकी प्रिय सामग्री का भोग लगाया जाता है. जिसके बाद भोले बाबा के दरबार में भजन कीर्तन का सिलसिला शुरू हो जाता है. शिवरात्रि पर विशेष पूजा आराधना के बाद तमाम श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित किया जाता है.
ये भी पढे़ंः Kedarnath Dham: शिवरात्रि पर तय होगी केदारनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि, 8 क्विंटल फूलों से सजेगा ओंकारेश्वर मंदिर

उत्तराखंड में शिवरात्रि के दिन सभी मंदिरों और शिवालयों को फूल मालाओं से सजाया जाता है. इस दिन श्रद्धालुओं की भारी भीड़ भी देखने को मिलती है. देहरादून के सबसे पौराणिक मंदिर टपकेश्वर महादेव के प्रति लोगों की आस्था देखते ही बनती है. इस दिन हजारों की संख्या में शिवरात्रि के दिन श्रद्धालु भोलेनाथ के दर्शन करने पहुंचते हैं. जहां श्रद्धालु फल, फूल, जल, दूध समर्पित कर भोलेनाथ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.

टपकेश्वर महादेव में तैयारियां जोरों पर है. क्योंकि, हजारों की संख्या में श्रद्धालु का यहां आना अल सुबह से ही शुरू हो जाता है. ऐसे में व्यवस्था पहले से ही दुरुस्त की जा रही है. टपकेश्वर मंदिर के दिगम्बर भरत गिरी महाराज ने इस पर्व के महत्व को भी साझा किया. उन्होंने बताया कि बाबा के दर्शन करने और उन्हें जल चढ़ाने के लिए श्रद्धालु न सिर्फ देहरादून बल्कि दूसरे प्रांतों से भी यहां पहुंचते हैं. मंदिर में महाशिवरात्रि के पर्व पर विशेष अनुष्ठान भी आयोजित किए जाते हैं. वहीं, टपकेश्वर मंदिर परिसर में एक विशेष मेले का भी आयोजन किया जाता है. यह मेला अगले दस दिनों तक आयोजित होता है.

क्या है टपकेश्वर महादेव की मान्यताः मान्यताओं के अनुसार देहरादून टपकेश्वर मंदिर में द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वथामा ने भगवान शिव की तपस्या की थी. उन्होंने दूध के लिए तपस्या की थी. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने उन्हें दर्शन दिए थे. उसके बाद इस गुफा की गौ के थन आकार की शिलाओं से दूध की बूंदें टपकनी शुरू हुई थी. इतना ही नहीं अश्वत्थामा को दर्शन देने के बाद भगवान शिव यहां लिंग के रूप में विराजमान हो गए. कहा जाता है कि धरती पर पाप बढ़ता गया तो यह दूध की बूंदे भी पानी में तब्दील होती गई. अब यहां पानी की बूदें टपकती है.
ये भी पढे़ंः Maha Shivratri 2023: महाशिवरात्रि पर बन रहा है उत्तम संयोग, भगवान शिव ऐसे होंगे प्रसन्न

टपकेश्वर महादेव मंदिर की महिमा.

देहरादूनः महाशिवरात्रि पर्व 2023 को लेकर के सभी मठ मंदिरों में तैयारियां शुरू हो गई हैं. देहरादून के पौराणिक टपकेश्वर महादेव को भी भव्य तरीके से सजाया गया है. टपकेश्वर महादेव मंदिर में भोलेनाथ शंभू के रूप में विराजमान है. शिवरात्रि के दिन टपकेश्वर महादेव मंदिर में लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. जिसके चलते व्यवस्थाओं को पहले ही मुकम्मल किया जाता है. जिसके चलते मंदिर में व्यवस्थाओं को चाक-चौबंद किया गया है.

बता दें कि हर साल फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है. इसके अलावा त्रयोदशी की रात्रि से ही शिवरात्रि पर्व मनाए जाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. लिहाजा, त्रयोदशी की रात्रि 12 बजे से ही बाबा को श्रद्धालुओं की ओर से जल चढ़ाए जाने का सिलसिला शुरू हो जाता है. इस दिन लोग भगवान भोलेनाथ की पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है.

शिवरात्रि के पर्व पर ब्रह्म मुहूर्त में सबसे पहले बाबा का महा विषयक पंचवार्षिक किया जाता है. इसके बाद बाबा का सिंगार कर उनकी प्रात: काल आरती भी की जाती है. इसके साथ ही भोले बाबा को नाना प्रकार की उनकी प्रिय सामग्री का भोग लगाया जाता है. जिसके बाद भोले बाबा के दरबार में भजन कीर्तन का सिलसिला शुरू हो जाता है. शिवरात्रि पर विशेष पूजा आराधना के बाद तमाम श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित किया जाता है.
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उत्तराखंड में शिवरात्रि के दिन सभी मंदिरों और शिवालयों को फूल मालाओं से सजाया जाता है. इस दिन श्रद्धालुओं की भारी भीड़ भी देखने को मिलती है. देहरादून के सबसे पौराणिक मंदिर टपकेश्वर महादेव के प्रति लोगों की आस्था देखते ही बनती है. इस दिन हजारों की संख्या में शिवरात्रि के दिन श्रद्धालु भोलेनाथ के दर्शन करने पहुंचते हैं. जहां श्रद्धालु फल, फूल, जल, दूध समर्पित कर भोलेनाथ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.

टपकेश्वर महादेव में तैयारियां जोरों पर है. क्योंकि, हजारों की संख्या में श्रद्धालु का यहां आना अल सुबह से ही शुरू हो जाता है. ऐसे में व्यवस्था पहले से ही दुरुस्त की जा रही है. टपकेश्वर मंदिर के दिगम्बर भरत गिरी महाराज ने इस पर्व के महत्व को भी साझा किया. उन्होंने बताया कि बाबा के दर्शन करने और उन्हें जल चढ़ाने के लिए श्रद्धालु न सिर्फ देहरादून बल्कि दूसरे प्रांतों से भी यहां पहुंचते हैं. मंदिर में महाशिवरात्रि के पर्व पर विशेष अनुष्ठान भी आयोजित किए जाते हैं. वहीं, टपकेश्वर मंदिर परिसर में एक विशेष मेले का भी आयोजन किया जाता है. यह मेला अगले दस दिनों तक आयोजित होता है.

क्या है टपकेश्वर महादेव की मान्यताः मान्यताओं के अनुसार देहरादून टपकेश्वर मंदिर में द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वथामा ने भगवान शिव की तपस्या की थी. उन्होंने दूध के लिए तपस्या की थी. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने उन्हें दर्शन दिए थे. उसके बाद इस गुफा की गौ के थन आकार की शिलाओं से दूध की बूंदें टपकनी शुरू हुई थी. इतना ही नहीं अश्वत्थामा को दर्शन देने के बाद भगवान शिव यहां लिंग के रूप में विराजमान हो गए. कहा जाता है कि धरती पर पाप बढ़ता गया तो यह दूध की बूंदे भी पानी में तब्दील होती गई. अब यहां पानी की बूदें टपकती है.
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Last Updated : Feb 17, 2023, 9:10 PM IST
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