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उत्तराखंड में बढ़े आत्महत्या के मामले, जानिए एक्सपर्ट की राय - लॉकडाउन में अवसाद और डिप्रेशन की वजह से आत्महत्या

क्वारंटाइन सेंटरों में रहने के दौरान लोग अवसाद और अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं और आत्महत्या जैसे आत्मघाती कदम उठा रहे हैं.

Suicide cases in Quarantine Center
उत्तराखंड में आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़ें.
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Published : Jun 12, 2020, 6:22 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग जानलेवा साबित होती जा रही है. प्रदेश में एक तरफ कोरोना के मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं. वहीं, दूसरी तरफ क्वारंटाइन सेंटरों से आत्महत्या की खबरें भी सामने आ रहीं हैं. राजधानी देहरादून के बालावाला स्थित क्वारंटाइन सेंटर में एक शख्स ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली है. जिसके बाद से जिला प्रशासन में हड़कंप मचा हुआ है. ईटीवी भारत से खास बातचीत में मनोवैज्ञानिक डॉ. मुकुल शर्मा बताते हैं कि आखिर क्यों लोग अवसाद में आकर खुदकुशी कर रहे हैं.

मनोवैज्ञानिक डॉ. मुकुल शर्मा के मुताबिक देश-दुनिया में कोरोना का कहर कम होने का नाम नहीं ले रहा है. जिसकी वजह से लोगों के मन में दहशत का माहौल है. लॉकडाउन से पहले सामान्य जीवन था लेकिन लॉकडाउन होने के बाद से लोग एक तरह से घरों में कैद हो गए हैं. इसके साथ ही डिप्रेशन, चिंताएं और घरेलू झगड़े भी बढ़े हैं. साथ ही क्वारंटाइन सेंटरों में रहने वाले लोगों के बीच मानसिक भेदभाव भी देखने को मिल रहा है. जिसकी वजह से वे आत्महत्या कर रहे हैं.

एक्सपर्ट से जानिए उत्तराखंड में क्यों बढ़े आत्महत्या के मामले.

ये भी पढ़ें: कोरोना काल में कैसी होगी पासिंग आउट परेड, ईटीवी भारत पर बोले IMA कमांडेंट जेएस नेगी

ईटीवी भारत के जरिए डॉं मुकुल शर्मा ने सरकार से सभी क्वारंटाइन सेंटरों में सुविधाओं को बेहतर बनाने की अपील की है. ताकि लोग इन सेंटर्स में डिप्रेशन या अकेलेपन का शिकार न हो. डॉं मुकुल शर्मा के मुताबिक सरकार को क्वारंटाइन सेंटरों में योगा सेशन और मोटिवेशनल स्पीच कराना चाहिए, ताकि लोगों में पॉजिटिव एनर्जी का संचार हो सके. युवाओं में अपने भविष्य को लेकर चिंता है और यह उनके डिप्रेशन और आत्महत्या के लिए प्रेरित होने की वजह बन सकती है.

उत्तराखंड में आत्महत्या के मामलों में वृद्धि

उत्तराखंड में आत्महत्या के केस भी ज्यादा नहीं आते थे. लेकिन लॉकडाउन ने इस स्थिति को बदल दिया है. पुलिस हेल्पलाइन डायल 112 के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में आत्महत्या के मामलों में वृद्धि हुई है. लॉकडाउन में 22 मार्च से 22 अप्रैल तक एक महीने के दौरान राज्य में 20 आत्महत्या के मामले सामने आए. वहीं 23 अप्रैल से 11 मई तक 18 दिनों के भीतर संख्या 25 पहुंच गई. लॉकडाउन से पहले जनवरी महीने में केवल 12 सुसाइड के मामले सामने आए थे. इन आंकड़ों पर गौर करने से पता चलता है कि लॉकडाउन के दौरान सुसाइड के मामलों में बढ़ोतरी हुई है.

अकेलेपन की समस्या

लॉकडाउन की वजह से लोग घरों में रहने पर मजबूर हैं. सामान्य दिनों में लोग मन बहलाने के लिए दोस्तों और रिश्तेदारों से बातचीत कर समस्याएं, चिंताएं साझा करते थे. लेकिन लॉकडाउन में इन चीजों के नहीं होने के कारण लोग डिप्रेशन में आ रहे हैं. मनोवैज्ञानिक डॉ. मुकुल शर्मा कहते हैं कि इन हालातों में लोग अपने को व्यस्त रखने की कोशिश करें और चिंता न करें.

देहरादून: उत्तराखंड में लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग जानलेवा साबित होती जा रही है. प्रदेश में एक तरफ कोरोना के मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं. वहीं, दूसरी तरफ क्वारंटाइन सेंटरों से आत्महत्या की खबरें भी सामने आ रहीं हैं. राजधानी देहरादून के बालावाला स्थित क्वारंटाइन सेंटर में एक शख्स ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली है. जिसके बाद से जिला प्रशासन में हड़कंप मचा हुआ है. ईटीवी भारत से खास बातचीत में मनोवैज्ञानिक डॉ. मुकुल शर्मा बताते हैं कि आखिर क्यों लोग अवसाद में आकर खुदकुशी कर रहे हैं.

मनोवैज्ञानिक डॉ. मुकुल शर्मा के मुताबिक देश-दुनिया में कोरोना का कहर कम होने का नाम नहीं ले रहा है. जिसकी वजह से लोगों के मन में दहशत का माहौल है. लॉकडाउन से पहले सामान्य जीवन था लेकिन लॉकडाउन होने के बाद से लोग एक तरह से घरों में कैद हो गए हैं. इसके साथ ही डिप्रेशन, चिंताएं और घरेलू झगड़े भी बढ़े हैं. साथ ही क्वारंटाइन सेंटरों में रहने वाले लोगों के बीच मानसिक भेदभाव भी देखने को मिल रहा है. जिसकी वजह से वे आत्महत्या कर रहे हैं.

एक्सपर्ट से जानिए उत्तराखंड में क्यों बढ़े आत्महत्या के मामले.

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ईटीवी भारत के जरिए डॉं मुकुल शर्मा ने सरकार से सभी क्वारंटाइन सेंटरों में सुविधाओं को बेहतर बनाने की अपील की है. ताकि लोग इन सेंटर्स में डिप्रेशन या अकेलेपन का शिकार न हो. डॉं मुकुल शर्मा के मुताबिक सरकार को क्वारंटाइन सेंटरों में योगा सेशन और मोटिवेशनल स्पीच कराना चाहिए, ताकि लोगों में पॉजिटिव एनर्जी का संचार हो सके. युवाओं में अपने भविष्य को लेकर चिंता है और यह उनके डिप्रेशन और आत्महत्या के लिए प्रेरित होने की वजह बन सकती है.

उत्तराखंड में आत्महत्या के मामलों में वृद्धि

उत्तराखंड में आत्महत्या के केस भी ज्यादा नहीं आते थे. लेकिन लॉकडाउन ने इस स्थिति को बदल दिया है. पुलिस हेल्पलाइन डायल 112 के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में आत्महत्या के मामलों में वृद्धि हुई है. लॉकडाउन में 22 मार्च से 22 अप्रैल तक एक महीने के दौरान राज्य में 20 आत्महत्या के मामले सामने आए. वहीं 23 अप्रैल से 11 मई तक 18 दिनों के भीतर संख्या 25 पहुंच गई. लॉकडाउन से पहले जनवरी महीने में केवल 12 सुसाइड के मामले सामने आए थे. इन आंकड़ों पर गौर करने से पता चलता है कि लॉकडाउन के दौरान सुसाइड के मामलों में बढ़ोतरी हुई है.

अकेलेपन की समस्या

लॉकडाउन की वजह से लोग घरों में रहने पर मजबूर हैं. सामान्य दिनों में लोग मन बहलाने के लिए दोस्तों और रिश्तेदारों से बातचीत कर समस्याएं, चिंताएं साझा करते थे. लेकिन लॉकडाउन में इन चीजों के नहीं होने के कारण लोग डिप्रेशन में आ रहे हैं. मनोवैज्ञानिक डॉ. मुकुल शर्मा कहते हैं कि इन हालातों में लोग अपने को व्यस्त रखने की कोशिश करें और चिंता न करें.

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