देहरादून: राजनीति में किस्मत आजमाने के लिए सबसे पहली सीढ़ी महाविद्यालयों (कॉलेजों) में होने वाले छात्रसंघ चुनाव माने जाते हैं. यहीं से राजनीति में अपना भविष्य बनाने वाले छात्र चुनाव लड़ कर अपनी किस्मत को परखते हैं. मगर पिछले दो साल से कोविड संक्रमण के चलते कॉलेजों में छात्रसंघ चुनाव कोरोना महामारी के भेंट चढ़ चुके हैं. इस साल भी महाविद्यालयों में छात्रसंघ चुनाव होंगे या नहीं इस पर संशय बरकार हैं.
राजधानी देहरादून के सबसे बड़े महाविद्यालय डीएवी कॉलेज में साल 2019 के बाद से छात्र संघ चुनाव कोविड संक्रमण के कारण नहीं हो सके हैं. ऐसे में सबसे बड़ा नुकसान उन छात्र नेताओं को होने जा रहा जो छात्रसंघ चुनाव लड़ने की तय आयु सीमा पार कर रहे हैं. लिंगदोह कमेटी सिफारिश के अनुसार ग्रेजुएशन तक चुनाव लड़ने की आयु सीमा 22 साल है, जबकि पोस्ट ग्रेजुएशन तक छात्र संघ चुनाव लड़ने की आयु सीमा 25 वर्ष है. इससे आगे भी पीएचडी जैसे अन्य रिसर्च शैक्षिक योग्यता में 28 वर्ष तक चुनाव लड़ने का अधिकार है. मुख्यतः 22 से 25 आयु सीमा में ही कॉलेजों में छात्रसंघ चुनाव लड़े जाते हैं.
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दुर्भाग्यवश कोरोना के चलते वर्षों से तैयारी कर रहे ऐसे कई छात्र नेता हैं, जिनकी चुनाव में किस्मत आजमाने की उम्र या तो पिछले साल 2020 में निकल चुकी है या फिर इस साल 2021 में उनके पास लिंगदोह कमेटी अनुसार तय आयु सीमा के तहत छात्रसंघ चुनाव लड़ने का अंतिम मौका है. ऐसे में अगर इस वर्ष भी कॉलेजों में छात्रसंघ चुनाव नहीं होते हैं तो राजनीति में करियर आजमाने वाले छात्र नेताओं को पॉलिटिक्स की पहली सीढ़ी पार न करने से बड़ा नुकसान होना तय है.
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विधानसभा की तर्ज पर कोविड गाइडलाइंस के तहत छात्रसंघ चुनाव कराए जा सकते: ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्र नेताओं ने कहा कि जब अनलॉक के दूसरे चरण में सभी व्यवस्थाएं ऑफलाइन हो चुकी हैं, कॉलेजों में एडमिशन हो रहे हैं. देश के अलग-अलग राज्यों में विधानसभा चुनाव भी हो रहे हैं, तो छात्र संघ चुनाव भी कोविड-गाइडलाइंस अनुसार क्यों नहीं कराए जा सकते?
एबीवीपी के छात्रों ने कहा कि जिन छात्रों के लिए राजनीति की पहली सीढ़ी छात्रसंघ होता है, उस पर केंद्र और राज्य सरकार का ध्यान क्यों नहीं है? आखिर कॉलेजों में छात्र-छात्राओं के हितों और अधिकारों के विषयों पर कौन महाविद्यालय प्रशासन से बात करेगा. कैसे छात्र-छात्राओं के अलग-अलग तरह की शिकायतों को प्रशासन तक पहुंचा कर उसका निस्तारण किया जाएगा. इस तरह की तमाम बातें छात्र संघ चुनाव में जीतने वाली नेताओं के अधिकार में आती है. लेकिन दुर्भाग्यवश छात्र संघ चुनाव ना होना बेहद ही मायूस करने जाता है.
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चुनाव लड़ने की तय आयु-सीमा बढ़ाई जाए: एनएसयूआई छात्र नेताओं की मानें तो अलग-अलग ग्रुप्स के नेता वर्षों से चुनाव की तैयारी कर रहे हैं. इसमें मानसिक शारीरिक मेहनत के साथ ही आर्थिक बोझ भी पड़ता है. जिस तरह से 2020 की तरह इस वर्ष भी कोरोना का हवाला देकर छात्र संघ चुनाव न कराने की स्थिति दिख रही है, वह बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण है. लिंगदोह कमेटी सिफारिश के अनुसार छात्र चुनाव लड़ने की तय सीमा कितने प्रत्याशियों की 2020 में निकल चुकी है और काफी छात्र प्रत्याशियों की इस वर्ष 2021 में उम्र निकल रही है.
ऐसे में उनकी सरकार से मांग है कि या तो अनलॉक प्रक्रिया के तर्ज पर जैसे सभी कार्य गाइडलाइन अनुसार कराए जाए. उसी नियमानुसार इस वर्ष छात्र संघ चुनाव कराए जाएं. या फिर सरकार लिंगदोह कमेटी में संशोधन कर छात्र संघ चुनाव लड़ने की तैयारी सीमा कम से कम 1 वर्ष बढ़ाएं.
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सरकार की तरफ से सुनवाई ना होने पर कोर्ट: उधर इस वर्ष भी कॉलेजों में छात्रसंघ चुनाव ना होने की बातें सामने आ रही हैं. जिसके बाद डीएवी कॉलेज के कुछ छात्र दलों का कहना है कि अगर सरकार इस सुनवाई कर कोई सकारात्मक निर्णय नहीं लेती तो, वह इस मामले को लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे.
आगामी विधानसभा चुनाव का करेंगे बहिष्कार: डीएवी कॉलेज के कुछ छात्र दलों ने यह भी साफ किया कि अगर इस वर्ष भी कॉलेजों में छात्र-छात्राओं के हितों-अधिकारों को दरकिनार कर अगर छात्र संघ चुनाव नहीं होते हैं तो ऐसे में आगामी 2022 विधानसभा चुनाव का वे सभी बहिष्कार करेंगे.
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छात्रसंघ चुनाव कराने के पक्ष में कॉलेज के प्रोफेसर: उधर कॉलेज में छात्रसंघ चुनाव के संबंध में डीएवी महाविद्यालय के प्रोफेसर जसविंदर सिंह गोगी का मानना है कि छात्र नेताओं के राजनीतिक भविष्य को देखते हुए इस वर्ष कोरोना गाइडलाइन के मुताबिक चुनाव कड़े नियमानुसार कराए जा सकते. चुनाव मतदान के लिए अलग-अलग कक्षाओं के छात्र छात्राओं का समय सारणी बनाई जा सकती है. मसलन बीए, बीएससी, बीकॉम और एमएससी जैसे अन्य सेमेस्टर वाले छात्र छात्राओं को अलग-अलग समय निर्धारित कर सोशल डिस्टेंसिंग के तहत वोट डालने की प्रक्रिया कराई जा सकती है.