देहरादून: कारगिल विजय दिवस को 20 साल पूरे होने वाले हैं. देश अपने वीर जवानों को याद कर रहा है. कारगिल की वो शौर्य गाथाएं देश के युवाओं को आज भी जोश और जज्बे से लबरेज कर देती हैं. ऐसी ही एक कहानी है गोरखा रेजीमेंट में तैनात सिपाही कैलाश क्षेत्री की है. जिनको कारगिल युद्ध के दौरान हथियारों के वितरण की जिम्मेदारी दी गई. सुनिए उनकी कहनी उन्हीं की जुबानी...
देहरादून के सेलाकुई में रहने वाले कैलाश क्षेत्री की 1998 में जम्मू और कश्मीर के दराज सेक्टर में पोस्टिंग हुई थी. जहां उन्हें हथियारों के वितरण की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. कैलाश क्षेत्री ने बताते है कि कारगिल युद्ध के दौरान माहौल काफी संवेदनशील था. सेना का हर एक जवान देश के लिए मर मिटने के लिए तैयार था. दराज सेक्टर में हथियारों की सप्लाई के दौरान कई बार उनका सामना मौत से हुआ लेकिन देश सेवा उनके लिए पहली प्राथमिकता थी.
कैलाश क्षेत्री ने बताया कि जब भारतीय सेना को हथियारों की जरूरत पड़ी तो उन्हें उस पहाड़ी से होकर जाना था, जिसपर पाकिस्तान का कब्जा था. पाकिस्तान लगातार पहाड़ी से गोलाबारी कर रहा था और सड़क के दूसरे तरफ गहरी खाई थी. जिसके चलते आगे जाना बहुत मुश्किल था, लेकिन भारतीय सेना तक हथियार पहुंचाना बहुत जरूरी था. ऐसे में उन्होंने हथियारों से भरे वाहन की लाइट बंद कर आगे बढ़ने का फैसला किया. ताकि दुश्मनों को आवाजाही का पता न चले.
कारगिल युद्ध के दौरान जवानों के जोश को लेकर कैलाश ने बताया कि भारतीय सेना का वो जज्बा किसी को भी नेस्तोनाबूत कर सकने वाला था. जब लड़ाई खत्म हुई तो सभी में जोश थे और साथ ही अपने खोए साथियों के गम के आंसू भी थे.
इस दौरान कैलाश क्षेत्री ने जय हिंद के नारे के साथ कहा कि सरकारों को शहीदों की शहादत पर किए गए तमाम वादों को पूरा करना चाहिए, ताकि सेना में आने वाले नौजवानों को भी प्रेरणा मिल सके.