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कारगिल विजय दिवस: युद्ध लड़ चुके सैनिक की कहानी उन्हीं की जुबानी...

साल 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर के कारगिल में सशस्त्र संघर्ष हुआ था. यह संघर्ष पाक सेना और कश्मीरी उग्रवादियों द्वारा भारत की जमीन पर कब्जा करने की कोशिश के लिए हुआ था. इस लड़ाई में पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी थी. कारगिल युद्ध को ऑपरेशन विजय नाम से भी जाना जाता है.

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Published : Jul 15, 2019, 1:19 PM IST

Updated : Jul 15, 2019, 7:37 PM IST

कैलाश क्षेत्री की सरकार से भावुक अपील

देहरादून: कारगिल विजय दिवस को 20 साल पूरे होने वाले हैं. देश अपने वीर जवानों को याद कर रहा है. कारगिल की वो शौर्य गाथाएं देश के युवाओं को आज भी जोश और जज्बे से लबरेज कर देती हैं. ऐसी ही एक कहानी है गोरखा रेजीमेंट में तैनात सिपाही कैलाश क्षेत्री की है. जिनको कारगिल युद्ध के दौरान हथियारों के वितरण की जिम्मेदारी दी गई. सुनिए उनकी कहनी उन्हीं की जुबानी...

कैलाश क्षेत्री की सरकार से भावुक अपील

देहरादून के सेलाकुई में रहने वाले कैलाश क्षेत्री की 1998 में जम्मू और कश्मीर के दराज सेक्टर में पोस्टिंग हुई थी. जहां उन्हें हथियारों के वितरण की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. कैलाश क्षेत्री ने बताते है कि कारगिल युद्ध के दौरान माहौल काफी संवेदनशील था. सेना का हर एक जवान देश के लिए मर मिटने के लिए तैयार था. दराज सेक्टर में हथियारों की सप्लाई के दौरान कई बार उनका सामना मौत से हुआ लेकिन देश सेवा उनके लिए पहली प्राथमिकता थी.

कैलाश क्षेत्री ने बताया कि जब भारतीय सेना को हथियारों की जरूरत पड़ी तो उन्हें उस पहाड़ी से होकर जाना था, जिसपर पाकिस्तान का कब्जा था. पाकिस्तान लगातार पहाड़ी से गोलाबारी कर रहा था और सड़क के दूसरे तरफ गहरी खाई थी. जिसके चलते आगे जाना बहुत मुश्किल था, लेकिन भारतीय सेना तक हथियार पहुंचाना बहुत जरूरी था. ऐसे में उन्होंने हथियारों से भरे वाहन की लाइट बंद कर आगे बढ़ने का फैसला किया. ताकि दुश्मनों को आवाजाही का पता न चले.

पढ़ें- कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के 75 रणबांकुरों ने दी थी आहुति, एक साथ आए 9 शवों से शोक में डूब गया था पहाड़

कारगिल युद्ध के दौरान जवानों के जोश को लेकर कैलाश ने बताया कि भारतीय सेना का वो जज्बा किसी को भी नेस्तोनाबूत कर सकने वाला था. जब लड़ाई खत्म हुई तो सभी में जोश थे और साथ ही अपने खोए साथियों के गम के आंसू भी थे.

इस दौरान कैलाश क्षेत्री ने जय हिंद के नारे के साथ कहा कि सरकारों को शहीदों की शहादत पर किए गए तमाम वादों को पूरा करना चाहिए, ताकि सेना में आने वाले नौजवानों को भी प्रेरणा मिल सके.

देहरादून: कारगिल विजय दिवस को 20 साल पूरे होने वाले हैं. देश अपने वीर जवानों को याद कर रहा है. कारगिल की वो शौर्य गाथाएं देश के युवाओं को आज भी जोश और जज्बे से लबरेज कर देती हैं. ऐसी ही एक कहानी है गोरखा रेजीमेंट में तैनात सिपाही कैलाश क्षेत्री की है. जिनको कारगिल युद्ध के दौरान हथियारों के वितरण की जिम्मेदारी दी गई. सुनिए उनकी कहनी उन्हीं की जुबानी...

कैलाश क्षेत्री की सरकार से भावुक अपील

देहरादून के सेलाकुई में रहने वाले कैलाश क्षेत्री की 1998 में जम्मू और कश्मीर के दराज सेक्टर में पोस्टिंग हुई थी. जहां उन्हें हथियारों के वितरण की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. कैलाश क्षेत्री ने बताते है कि कारगिल युद्ध के दौरान माहौल काफी संवेदनशील था. सेना का हर एक जवान देश के लिए मर मिटने के लिए तैयार था. दराज सेक्टर में हथियारों की सप्लाई के दौरान कई बार उनका सामना मौत से हुआ लेकिन देश सेवा उनके लिए पहली प्राथमिकता थी.

कैलाश क्षेत्री ने बताया कि जब भारतीय सेना को हथियारों की जरूरत पड़ी तो उन्हें उस पहाड़ी से होकर जाना था, जिसपर पाकिस्तान का कब्जा था. पाकिस्तान लगातार पहाड़ी से गोलाबारी कर रहा था और सड़क के दूसरे तरफ गहरी खाई थी. जिसके चलते आगे जाना बहुत मुश्किल था, लेकिन भारतीय सेना तक हथियार पहुंचाना बहुत जरूरी था. ऐसे में उन्होंने हथियारों से भरे वाहन की लाइट बंद कर आगे बढ़ने का फैसला किया. ताकि दुश्मनों को आवाजाही का पता न चले.

पढ़ें- कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के 75 रणबांकुरों ने दी थी आहुति, एक साथ आए 9 शवों से शोक में डूब गया था पहाड़

कारगिल युद्ध के दौरान जवानों के जोश को लेकर कैलाश ने बताया कि भारतीय सेना का वो जज्बा किसी को भी नेस्तोनाबूत कर सकने वाला था. जब लड़ाई खत्म हुई तो सभी में जोश थे और साथ ही अपने खोए साथियों के गम के आंसू भी थे.

इस दौरान कैलाश क्षेत्री ने जय हिंद के नारे के साथ कहा कि सरकारों को शहीदों की शहादत पर किए गए तमाम वादों को पूरा करना चाहिए, ताकि सेना में आने वाले नौजवानों को भी प्रेरणा मिल सके.

Intro:summary- कारगिल युद्ध मे रहे एक सैनिक कैलाश क्षेत्री की आप बीती।


एंकर- कारगिल हुए 20 साल होने को आये हैं। ऐसे में कारगिल युध्द में देश का शौर्य को बुलंदियों पर लेकर जाने वाले जबाजो में उत्तराखंड का योगदान अदित्तीय है। ऐसे ही एक शौर्य की दास्तां है तत्कालीन गोरखा रेजीमेंट में तैनात सिपाही कैलाश क्षेत्री की। मौजूदा समय मे देहरादून के सेलाकुई में रह है कैलाश क्षेत्री ने बताया कि कारगिल युद्ध के दौरान उनकी जिम्मेदारी हथियारों का डिश्टिब्यूशन था। क्षेत्री बताते हैं कि उस दौरान सभी मे जज्बा कूट कूट कर भरा था और जिसके चलते वो जान हथेली पर रख कर रात के घुप्प अंधेरे में गाड़ियों में बिना लाइट जलाए अपने सेना को हथियारों की सप्लाई करने जाते थे क्यों पहाड़ी पर पकेस्तान का कब्जा था और सड़क पहाड़ी के नीचे से होकर जाती थी।


Body:दासताएँ कारगिल---
कारगिल दिवस को 20 वर्ष हो चुके हैं लेकिन आज भी कारगिल की वो शौर्य गाथाएं देश के युवाओं को जोश और जज्बे से लबरेज कर देती है। ऐसी ही एक कहानी है देहरादून में रह रहे कैलाश क्षेत्री की। कैलाश क्षेत्री की जम्मू और कश्मीर के दराज सेक्टर में 1998 में पोस्टिंग हुई थी और सेना में उन्हें हथियारों के डिस्ट्रीब्यूशन की जिम्मेदारी दी गयी थी। कैलाश क्षेत्री ने बताया कि कारगिल युद्ध के दौरान माहौल काफी संवेदनशील था और सेना के हर एक जवाब देश के लिए मर मिटने के लिए तैयार था। क्षेत्री बताते हैं कि दराज सेक्टर में हथियारों की सप्लाई के दौरान कई बार उनका मुकाबला मौत से हुआ लेकिन देश सेवा उनके लिए पहली प्राथमिकता थी।
कारगिल के दौरान का एक किस्सा ईटीवी भारत से साझा करते हुए कैलाश क्षेत्री बताते हैं कि एक बार एक जिस पहाड़ी पर पाकिस्तान का कब्जा था उसी पहाड़ी के नीचे बने मार्ग से होकर भारतीय सेना को हथियार पहुंचाने की जरुरत थी। पाकिस्तान लगातार पहाड़ी से गोलाबारी कर रहा था और आगे जाना बहुत मुश्किल था लेकिन दूसरी तरफ भारतीय सेना को हथियार पहुंचाना भी जरूरी था तो ऐसे में उन्होंने फैसला लिया कि वो हथियारों से भरे वाहन की लाइट बंद कर के आगे बढ़े ताकि दुश्मनों को आवाजाही का पता ना चले जबकि दूसरी तरफ गहरी खाई वाली नदी थी।
कैलाश क्षेत्र ने ये वाकिया साझा करते हुए यह भी कहा कि भारतीय सेना का वो जज्बा किसी को भी नेस्तोनाबूत कर सकने वाला था। क्षेत्री ने बताया कि जब लड़ाई खत्म हुई तो सभी में जोश था तो अपने खोए साथियों के गम के आंसू भी थे। कैलाश क्षेत्री ने जय हिंद के नारे के साथ अंत मे बस इतना कहा की सरकारों को शहीदों की शहादत पर किये गए तमाम वादों को पूरा करना चाहिए ताकि सेना में आने वाले नोजवानो को भी प्रेरणा मिल सके।
बाइट- कैलाश क्षेत्री, पूर्व कारगिल सैनिक


Conclusion:
Last Updated : Jul 15, 2019, 7:37 PM IST
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