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मानवाधिकार दिवस: देवभूमि में अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभा रहा है आयोग, देखिए खास रिपोर्ट

आज विश्व मानवाधिकार दिवस है. 10 दिसंबर 1948 को 'संयुक्त राष्ट्र असेंबली' ने मानवाधिकार से जुड़े प्रस्ताव को मंजूरी दी. उत्तराखंड राज्य मानवाधिकार आयोग ने अस्तित्व में आने के बाद से अब तक सफलतापूर्वक कार्य किया है.

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Published : Dec 10, 2019, 5:44 PM IST

देहरादूनः आज विश्व मानवाधिकार दिवस है. देश-दुनिया के हर इंसान को जिंदगी अपने अनुसार जीने, आजादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार है. इन्हीं अधिकारों को संरक्षित करने को लेकर, भारतीय संविधान में मानवाधिकारों को उच्च स्थान देते हुए उसे मौलिक अधिकारों के खंड में शामिल किया गया था. तो वहीं उत्तराखंड राज्य में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के तहत राज्य मानवाधिकार आयोग का गठन साल 2011 में हुआ था. आखिर क्या है उत्तराखंड राज्य में मानवाधिकार का इतिहास? देखिये ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट में.

साल 2000 में उत्तर प्रदेश से पृथक होकर बना पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्तिथियां अन्य मैदानी राज्यों से भिन्न हैं, यही वजह है कि इस पर्वतीय राज्य का सही ढंग से विकास हो सके इसको लेकर एक अलग पर्वतीय राज्य का गठन हुआ था.

जिम्मेदारी को बखूबी निभा रहा है राज्य मानवाधिकार आयोग.

राज्य गठन के बाद प्रदेश में हो रहे मानवाधिकार के उल्लंघन के मामलों को देखते साल 2011 में राज्य सरकार ने राज्य मानवाधिकार आयोग का गठन किया. अगर उत्तराखंड राज्य में मानवाधिकार के उल्लंघन के मामलों पर गौर करें तो साल 2012 से नवम्बर 2019 तक करीब 10,736 मामले सामने आये हैं.

गौर हो कि 10 दिसंबर 1948 को 'संयुक्त राष्ट्र असेंबली' ने मानवाधिकार से जुड़े प्रस्ताव को पारित कर मानव अधिकारों की विश्व घोषणा की और साल 1950 से महासभा ने सभी देशों को इसकी शुरुआत के लिए आमंत्रित किया था.
इसके बाद देश में 28 सितंबर 1993 से मानवाधिकार कानून को अमल में लाया गया. 12 अक्‍टूबर 1993 में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन कर मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम-1993 लागू किया गया.

उत्तराखंड में मानवाधिकार उल्लंघन के मामले
उत्तराखंड में साल 2012 में मानवाधिकार आयोग का गठन हुआ था, तब से लेकर 10,736 मामले सामने आए हैं, जिसमें से 9,686 मामलों का निस्तारण हो गया है और बाकी बचे 1,050 मामलों पर कार्रवाई चल रही है.

यही नहीं साल 2018-19 की बात करें तो 1 अप्रैल 2018 से 31 मार्च 2019 तक 2,197 मामले सामने आये जिसमें से 1,940 मामलों का निस्तारण हो चुका है बाकी बचे 257 मामलों पर कार्रवाई की जा रही है. यही नहीं इस साल सबसे ज्यादा स्वास्थ्य विभाग से जुड़े मामले सामने आए है.
पीड़ित पत्र के माध्यम से भी कर सकता हैं शिकायत

वहीं उत्तराखंड राज्य मानवाधिकार आयोग के सदस्य एसी शर्मा ने बताया कि मानव अधिकार की अवहेलना के संबंध में अगर कोई भी शिकायत करता है यह शिकायत आती है तो शिकायत को संज्ञान में लेकर कार्रवाई की जाती है.

यही नहीं शिकायतकर्ता अपने घर से ही डाक के माध्यम से शिकायत पत्र आयोग को भेज सकता है. जिस पर आयोग, संज्ञान लेकर कार्रवाई करता है. साथ ही तमाम मामले ऐसे भी होते हैं जिन पर आयोग स्वतः संज्ञान लेकर कार्रवाई करता है.

इसके साथ ही लोगों को मानव अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए मानवाधिकार के पुस्तक भी बांटी जाती हैं. साथ ही पम्पलेट्स के माध्यम से लोगों को जागरूक करने का काम किया जाता है.

देहरादूनः आज विश्व मानवाधिकार दिवस है. देश-दुनिया के हर इंसान को जिंदगी अपने अनुसार जीने, आजादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार है. इन्हीं अधिकारों को संरक्षित करने को लेकर, भारतीय संविधान में मानवाधिकारों को उच्च स्थान देते हुए उसे मौलिक अधिकारों के खंड में शामिल किया गया था. तो वहीं उत्तराखंड राज्य में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के तहत राज्य मानवाधिकार आयोग का गठन साल 2011 में हुआ था. आखिर क्या है उत्तराखंड राज्य में मानवाधिकार का इतिहास? देखिये ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट में.

साल 2000 में उत्तर प्रदेश से पृथक होकर बना पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्तिथियां अन्य मैदानी राज्यों से भिन्न हैं, यही वजह है कि इस पर्वतीय राज्य का सही ढंग से विकास हो सके इसको लेकर एक अलग पर्वतीय राज्य का गठन हुआ था.

जिम्मेदारी को बखूबी निभा रहा है राज्य मानवाधिकार आयोग.

राज्य गठन के बाद प्रदेश में हो रहे मानवाधिकार के उल्लंघन के मामलों को देखते साल 2011 में राज्य सरकार ने राज्य मानवाधिकार आयोग का गठन किया. अगर उत्तराखंड राज्य में मानवाधिकार के उल्लंघन के मामलों पर गौर करें तो साल 2012 से नवम्बर 2019 तक करीब 10,736 मामले सामने आये हैं.

गौर हो कि 10 दिसंबर 1948 को 'संयुक्त राष्ट्र असेंबली' ने मानवाधिकार से जुड़े प्रस्ताव को पारित कर मानव अधिकारों की विश्व घोषणा की और साल 1950 से महासभा ने सभी देशों को इसकी शुरुआत के लिए आमंत्रित किया था.
इसके बाद देश में 28 सितंबर 1993 से मानवाधिकार कानून को अमल में लाया गया. 12 अक्‍टूबर 1993 में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन कर मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम-1993 लागू किया गया.

उत्तराखंड में मानवाधिकार उल्लंघन के मामले
उत्तराखंड में साल 2012 में मानवाधिकार आयोग का गठन हुआ था, तब से लेकर 10,736 मामले सामने आए हैं, जिसमें से 9,686 मामलों का निस्तारण हो गया है और बाकी बचे 1,050 मामलों पर कार्रवाई चल रही है.

यही नहीं साल 2018-19 की बात करें तो 1 अप्रैल 2018 से 31 मार्च 2019 तक 2,197 मामले सामने आये जिसमें से 1,940 मामलों का निस्तारण हो चुका है बाकी बचे 257 मामलों पर कार्रवाई की जा रही है. यही नहीं इस साल सबसे ज्यादा स्वास्थ्य विभाग से जुड़े मामले सामने आए है.
पीड़ित पत्र के माध्यम से भी कर सकता हैं शिकायत

वहीं उत्तराखंड राज्य मानवाधिकार आयोग के सदस्य एसी शर्मा ने बताया कि मानव अधिकार की अवहेलना के संबंध में अगर कोई भी शिकायत करता है यह शिकायत आती है तो शिकायत को संज्ञान में लेकर कार्रवाई की जाती है.

यही नहीं शिकायतकर्ता अपने घर से ही डाक के माध्यम से शिकायत पत्र आयोग को भेज सकता है. जिस पर आयोग, संज्ञान लेकर कार्रवाई करता है. साथ ही तमाम मामले ऐसे भी होते हैं जिन पर आयोग स्वतः संज्ञान लेकर कार्रवाई करता है.

इसके साथ ही लोगों को मानव अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए मानवाधिकार के पुस्तक भी बांटी जाती हैं. साथ ही पम्पलेट्स के माध्यम से लोगों को जागरूक करने का काम किया जाता है.

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देश-दुनिया के हर इंसान को जिंदगी अपने अनुसार जीने, आजादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार है। इन्ही अधिकारों को संरक्षित करने को लेकर, भारतीय संविधान में मानवाधिकारों को उच्च स्थान देते हुए उसे मौलिक अधिकारों के खंड में शामिल किया गया था। तो वही उत्तराखंड राज्य में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के तहत राज्य मानवाधिकार आयोग का गठन साल 2011 में हुआ था। आखिर क्या है उत्तराखंड राज्य में मानवाधिकार का इतिहास? देखिये ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट में......... 


Body:साल 2000 में उत्तरप्रदेश से पृथक होकर बना पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्तिथया अन्य मैदानी राज्यों से भिन्न है, यही वजह है कि इस पर्वतीय राज्य का सही ढग से विकास हो सके इसको लेकर एक अलग पर्वतीय राज्य का गठन हुआ था। राज्य गठन के बाद प्रदेश में हो रहे मानवाधिकार के उल्लंघन  के मामलो को देखते साल 2011 में राज्य सरकार ने राज्य मानवाधिकार आयोग का गठन किया। अगर उत्तराखंड राज्य में मानवाधिकार के उल्लंघन के मामलो पर गौर करे तो साल 2012 से नवम्बर 2019 तक करीब 10,736 मामले सामने आये है। 


गौर हो कि 10 दिसंबर 1948 को 'संयुक्त राष्ट्र असेंबली' ने मानवाधिकार से जुड़े प्रस्ताव को पारित कर "मानव अधिकारों" की विश्व घोषणा की। और  साल 1950 से महासभा ने सभी देशों को इसकी शुरुआत के लिए आमंत्रित किया था। इसके बाद देश में 28 सितंबर 1993 से मानवाधिकार कानून को अमल में लाया गया। 12 अक्‍टूबर 1993 में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन कर मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम-1993 लागू किया गया।


उत्तराखंड में मानवाधिकार उल्लंघन के मामले........ 

उत्तराखंड में साल 2012 में मानवाधिकार आयोग का गठन हुआ था, तब से लेकर 10,736 मामले सामने आए हैं। जिसमें से 9,686 मामलों का निस्तारण हो गया है और बाकि बचे 1,050 मामलों पर कार्यवाही चल रही है। यही नहीं साल 2018 -19 की बात करे तो 1 अप्रैल 2018 से 31 मार्च 2019 तक 2,197 मामले सामने आये जिसमे से 1,940 मामलो का निस्तारण हो चुका है। बाकि बचे 2,57 मामलो पर कार्यवाही की जा रही है। यही नहीं इस साल सबसे ज्यादा स्वास्थ्य विभाग से जुड़े मामले सामने आए है।  

पीड़ित पत्र के माध्यम से भी कर सकता हैं शिकायत............

वही उत्तराखंड राज्य मानवाधिकार आयोग के सदस्य एसी शर्मा ने बताया कि मानव अधिकार की अवहेलना के संबंध में अगर कोई भी शिकायत करता है यह शिकायत आता है तो शिकायत को संज्ञान में लेकर कार्यवाही की जाती है। यही नहीं शिकायत कर्ता अपने घर से ही डाक के माध्यम से शिकायत पत्र आयोग को भेज सकता है। जिस पर आयोग, संज्ञान लेकर कार्यवाही करता है साथ ही तमाम मामले ऐसे भी होते हैं जिन पर आयोग स्वतः संज्ञान लेकर कार्यवाही करता है। इसके साथ ही लोगो को मानव अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए मानवाधिकार के पुस्तक भी बाँटे जाते है साथ ही पम्पलेट्स के माध्यम से लोगो को जागरूक करने के काम किया जाता है। 




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