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यहां स्नान करने से नहीं रहता मृत्यु का भय, यमुना मां हर लेती है भक्तों के कष्ट

प्रकृति की गोद में बसा यमुनोत्री धाम करोड़ों लोगों की आस्था का केन्द्र है. जहां देश-विदेश के लोग आस्था के रंग में रंगे दिखाई देते हैं. यमुना नदी को समस्त संतापों को दूर करने वाली माना जाता है. पुराणों में यमुना को सूर्य की पुत्री और मृत्यु के देवता यम की बहन माना जाता है.

यमुनोत्री धाम.
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Published : May 7, 2019, 6:59 AM IST

Updated : May 7, 2019, 1:31 PM IST

देहरादून / उत्तरकाशी: देवभूमि में स्थित चारधामों की अपनी दिव्यता है. उन्हीं में से एक है यमुनोत्री धाम. यहां से पवित्र यमुना नदी लोगों को आस्था से जोड़ती हैं. यमुना नदी को समस्त संतापों को दूर करने वाली माना जाता है. पुराणों में यमुना को सूर्य की पुत्री और मृत्यु के देवता यम की बहन माना जाता है. जो उनकी शरण में जाता है उसे वे सूर्य के जैसा तेजवान और मृत्यु का भय पल भर में दूर कर देती हैं.

यमुनोत्री धाम.

प्रकृति की गोद में बसा यमुनोत्री धाम करोड़ों लोगों की आस्था का केन्द्र है. जहां देश-विदेश के लोग आस्था के रंग में रंगे दिखाई देते हैं. यमुनोत्री धाम के कपाट सात मई यानि आज पूरे विधि विधान खुल जाएंगे. देवभूमि में यमुना नदीं को मां के रूप में पूजा जाता है, जो चार धामों में से एक है. कपाट खुलने के साथ ही यहां भक्तों का तांता लग जाता है.

पढ़ें- शिव की जटाओं से निकलते ही गंगा ने यहां धरती को किया था स्पर्श, जानें गंगोत्री धाम की मान्यता

यमुनोत्री धाम की पौराणिक कथा

यमुनोत्री धाम यमुना नदी का उद्गम स्थान है. पुराणों के अनुसार, यमुना नदी सूर्य देव की पुत्री और मृत्यु के देवता यम की बहन मानी जाती हैं. यमुनोत्री धाम को सकल सिद्धियों को प्रदान करने वाला कहा गया है. पुराणों में जिसका विस्तार से वर्णन मिलता है. मान्यता है कि भैयादूज के दिन जो भी व्यक्ति यमुना में सच्चे मन से स्नान करता है उसे यमत्रास से मुक्ति मिल जाती है. साथ ही यहां यम की पूजा का भी विधान है. कहा जाता है कि जो यमुना नदी में स्नान करता है उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं.

यहां यमुनोत्री ग्लेशियर का दीदार कर सकते हैं. यमुनोत्री धाम में दो मुख्य आकर्षण गर्म जलस्रोत हैं जिन्हे सूर्य कुंड और गौरी कुंड के नाम से जाना जाता है. यमुनोत्री मंदिर के पास 'दिव्य शिला नामक पत्थर है. जिसे यमुनोत्री मंदिर जाने से पहले हर श्रद्धालु पूजा करता है. महाभारत के अनुसार, जब पांडव तीर्थयात्रा पर आए तो वे पहले यमुनोत्री फिर गंगोत्री और उसके बाद केदारनाथ-बदरीनाथ की ओर बढ़े थे, तभी से उत्तराखंड में चार धाम यात्रा की जाती है. केदारखंड में भी कहा गया है कि भक्ति के बिना ज्ञान की प्राप्ति संभव नहीं. इसलिए यमुनोत्री के बाद ही गंगोत्री धाम की यात्रा करनी चाहिए, क्योंकि देवी गंगा ही ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं.

यमुनोत्री धाम की विशेषता

  • यमुनोत्री मंदिर गढ़वाल में हिमालय के पश्चिम में समुद्र तल से 3235 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है.
  • यमुनोत्री मंदिर का निर्माण टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रताप शाह ने साल 1919 में देवी यमुना को समर्पित करते हुए बनवाया था.
  • यमुनोत्री मंदिर भूकम्प से एक बार पूरी तरह से विध्वंस हो चुका है.
  • इस मंदिर का पुनः निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में करवाया गया था.
  • यमुनोत्री का वास्तविक स्रोत जमी हुयी बर्फ की एक झील और हिमनंद (चंपासर ग्लेशियर) है.
  • मंदिर के मुख्य गर्भ गृह में मां यमुना की काले संगमरमर की मूर्ति विराजत है. इस मंदिर में यमुनोत्री जी की पूजा पूरे विधि विधान के साथ की जाती है.
  • यमुनोत्री धाम में पिंड दान का विशेष महत्व है.

देहरादून / उत्तरकाशी: देवभूमि में स्थित चारधामों की अपनी दिव्यता है. उन्हीं में से एक है यमुनोत्री धाम. यहां से पवित्र यमुना नदी लोगों को आस्था से जोड़ती हैं. यमुना नदी को समस्त संतापों को दूर करने वाली माना जाता है. पुराणों में यमुना को सूर्य की पुत्री और मृत्यु के देवता यम की बहन माना जाता है. जो उनकी शरण में जाता है उसे वे सूर्य के जैसा तेजवान और मृत्यु का भय पल भर में दूर कर देती हैं.

यमुनोत्री धाम.

प्रकृति की गोद में बसा यमुनोत्री धाम करोड़ों लोगों की आस्था का केन्द्र है. जहां देश-विदेश के लोग आस्था के रंग में रंगे दिखाई देते हैं. यमुनोत्री धाम के कपाट सात मई यानि आज पूरे विधि विधान खुल जाएंगे. देवभूमि में यमुना नदीं को मां के रूप में पूजा जाता है, जो चार धामों में से एक है. कपाट खुलने के साथ ही यहां भक्तों का तांता लग जाता है.

पढ़ें- शिव की जटाओं से निकलते ही गंगा ने यहां धरती को किया था स्पर्श, जानें गंगोत्री धाम की मान्यता

यमुनोत्री धाम की पौराणिक कथा

यमुनोत्री धाम यमुना नदी का उद्गम स्थान है. पुराणों के अनुसार, यमुना नदी सूर्य देव की पुत्री और मृत्यु के देवता यम की बहन मानी जाती हैं. यमुनोत्री धाम को सकल सिद्धियों को प्रदान करने वाला कहा गया है. पुराणों में जिसका विस्तार से वर्णन मिलता है. मान्यता है कि भैयादूज के दिन जो भी व्यक्ति यमुना में सच्चे मन से स्नान करता है उसे यमत्रास से मुक्ति मिल जाती है. साथ ही यहां यम की पूजा का भी विधान है. कहा जाता है कि जो यमुना नदी में स्नान करता है उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं.

यहां यमुनोत्री ग्लेशियर का दीदार कर सकते हैं. यमुनोत्री धाम में दो मुख्य आकर्षण गर्म जलस्रोत हैं जिन्हे सूर्य कुंड और गौरी कुंड के नाम से जाना जाता है. यमुनोत्री मंदिर के पास 'दिव्य शिला नामक पत्थर है. जिसे यमुनोत्री मंदिर जाने से पहले हर श्रद्धालु पूजा करता है. महाभारत के अनुसार, जब पांडव तीर्थयात्रा पर आए तो वे पहले यमुनोत्री फिर गंगोत्री और उसके बाद केदारनाथ-बदरीनाथ की ओर बढ़े थे, तभी से उत्तराखंड में चार धाम यात्रा की जाती है. केदारखंड में भी कहा गया है कि भक्ति के बिना ज्ञान की प्राप्ति संभव नहीं. इसलिए यमुनोत्री के बाद ही गंगोत्री धाम की यात्रा करनी चाहिए, क्योंकि देवी गंगा ही ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं.

यमुनोत्री धाम की विशेषता

  • यमुनोत्री मंदिर गढ़वाल में हिमालय के पश्चिम में समुद्र तल से 3235 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है.
  • यमुनोत्री मंदिर का निर्माण टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रताप शाह ने साल 1919 में देवी यमुना को समर्पित करते हुए बनवाया था.
  • यमुनोत्री मंदिर भूकम्प से एक बार पूरी तरह से विध्वंस हो चुका है.
  • इस मंदिर का पुनः निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में करवाया गया था.
  • यमुनोत्री का वास्तविक स्रोत जमी हुयी बर्फ की एक झील और हिमनंद (चंपासर ग्लेशियर) है.
  • मंदिर के मुख्य गर्भ गृह में मां यमुना की काले संगमरमर की मूर्ति विराजत है. इस मंदिर में यमुनोत्री जी की पूजा पूरे विधि विधान के साथ की जाती है.
  • यमुनोत्री धाम में पिंड दान का विशेष महत्व है.
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यहां स्नान करने से नहीं रहता मृत्यु का भय, यमुना मां हर लेती है भक्तों के कष्ट

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देहरादून:  देवभूमि में स्थित चारधामों की अपनी दिव्यता है. उन्हीं में से एक है यमुनोत्री धाम. यहां से पवित्र यमुना नदी लोगों को आस्था से जोड़ती हैं. यमुना को समस्त संतापों को दूर करने वाली माना जाता है. पुराणों में यमुना को सूर्य की पुत्री और मृत्यु के देवता यम की बहन माना जाता है. जो उनकी शरण में जाता है उसे वे सूर्य के जैसा तेजवान और मृत्यु का भय पल भर में दूर कर देती हैं.

प्रकृति की गोद में बसा यमुनोत्री धाम करोड़ों लोगों की आस्था का केन्द्र है. जहां देश-विदेश के लोग आस्था के रंग में रंगे दिखाई देते हैं. यमुनोत्री धाम के कपाट सात मई यानि आज पूरे विधि विधान खुल जाएंगे. देवभूमि में यमुना नदीं को मां के रूप में पूजा जाता है, जो चार धामों में से एक है. कपाट खुलने के साथ ही यहां भक्तों का तांता लग जाता है.

यमुनोत्री धाम की पौराणिक कथा

यमुनोत्री धाम यमुना नदी का उद्गम स्थान है. पुराणों के अनुसार, यमुना नदी सूर्य देव की पुत्री और मृत्यु के देवता यम की बहन मानी जाती हैं. यमुनोत्री धाम को सकल सिद्धियों को प्रदान करने वाला कहा गया है. पुराणों में जिसका विस्तार से वर्णन मिलता है. मान्यता है कि भैयादूज के दिन जो भी व्यक्ति यमुना में सच्चे मन से स्नान करता है उसे यमत्रास से मुक्ति मिल जाती है. साथ ही यहां यम की पूजा का भी विधान है. कहा जाता है कि जो यमुना नदी में स्नान करता है उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं.

यहां यमुनोत्री ग्लेशियर का दीदार कर सकते हैं. यमुनोत्री धाम में दो मुख्य आकर्षण गर्म जलस्रोत हैं जिन्हे सूर्य कुंड और गौरी कुंड के नाम से जाना जाता है. यमुनोत्री मंदिर के पास 'दिव्य शिला नामक पत्थर  है. जिसे यमुनोत्री मंदिर  जाने से पहले हर श्रद्धालु पूजा करता है. महाभारत के अनुसार, जब पांडव तीर्थयात्रा पर आए तो वे पहले यमुनोत्री फिर गंगोत्री और उसके बाद केदारनाथ-बदरीनाथ की ओर बढ़े थे, तभी से उत्तराखंड में चार धाम यात्रा की जाती है.

केदारखंड में भी कहा गया है कि भक्ति के बिना ज्ञान की प्राप्ति संभव नहीं. इसलिए यमुनोत्री के बाद ही गंगोत्री धाम की यात्रा करनी चाहिए, क्योंकि देवी गंगा ही ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं. 

यमुनोत्री धाम

यमुनोत्री मंदिर गढ़वाल में हिमालय के पश्चिम में समुद्र तल से 3235 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है.

यमुनोत्री मंदिर का निर्माण टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रताप शाह ने साल 1919 में देवी यमुना को समर्पित करते हुए बनवाया था.

यमुनोत्री मंदिर भूकम्प से एक बार पूरी तरह से विध्वंस हो चुका है.

इस मंदिर का पुनः निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में करवाया गया था.

यमुनोत्री का वास्तविक स्रोत जमी हुयी बर्फ की एक झील और हिमनंद (चंपासर ग्लेशियर) है |

मंदिर के मुख्य गर्भ गृह में मां यमुना की काले संगमरमर की मूर्ति विराजत है. इस मंदिर में यमुनोत्री जी की पूजा पूरे विधि विधान के साथ की जाती है.

यमुनोत्री धाम में पिंड दान का विशेष महत्व है.


Conclusion:
Last Updated : May 7, 2019, 1:31 PM IST
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