देहरादून: ज़िन्दगी है चलती ही रहेगी, लेकिन अपनों के दूर चले जाने का जख्म कभी नहीं भरता. ये पंक्तियां देश की रक्षा में खुशी-खुशी अपने प्राणों का बलिदान करने वाले वीर सपूतों के परिजनों के दर्द को बखूबी बयां करती हैं. 26 जुलाई 2019 को कारगिल युद्ध को पूरे 20 साल हो जाएंगे. लेकिन 60 दिनों तक भारत-पाक के बीच चले इस युद्ध में शहीद हुए वीर जवानों के परिजनों के जहन में आज भी वो यादें ताजा हैं.
कारगिल युद्ध में शहीद हुए ऐसे ही एक वीर सपूत के परिजनों से ईटीवी भारत ने मुलाकात की. राजधानी देहरादून के नेहरू ग्राम में कारगिल शहीद जयदीप सिंह भंडारी का परिवार रहता है. शहीद जयदीप के परिवार में उनकी मां और दो भाई हैं.
शहीद जयदीप सिंह भंडारी तीन भाइयों में दूसरे नंबर के थे. सबसे बड़े भाई का नाम कुलदीप जबकि सबसे छोटे जसवीर सिंह भंडारी हैं, जो हाल ही में इंडियन एयरफोर्स से सेवानिवृत्त हुए हैं.
ईटीवी भारत से खास बातचीत में शहीद जयदीप के दोनों भाइयों ने उनसे जुड़ी कई बातें साझा कीं. उन्होंने बताया कि बचपन से ही जयदीप भारतीय सेना का हिस्सा बनना चाहते थे. ऐसे में 12वीं पास करने के तुरंत बाद ही यानि 18 साल पूरे होने से पहले ही उन्होंने 17वीं गढ़वाल राइफल्स से जुड़कर बतौर जवान भारतीय सेना में अपनी सेवाएं देनी शुरू कर दी थीं.
छोटे भाई जसवीर पुरानी बातों को याद करते हुये बताते हैं कि कारगिल युद्ध में जाने से पहले आखिरी बार उन्होंने ही अपने बड़े भाई शहीद जयदीप सिंह भंडारी से बात की थी. जयदीप बड़े भाई होने के साथ ही उनके बहुत अच्छे दोस्त भी थे इसलिए जयदीप ने सिर्फ उन्हें ही बताया था कि वे युद्ध के लिए कारगिल जा रहे हैं और ये बात परिवार में वो और किसी को न बताए.
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जसवीर बताते हैं कि अपने बड़े भाई की बातों का मान रखते हुए उन्होंने शहीद जयदीप के कारगिल युद्ध में होने की बात अपने परिवार में किसी को भी नहीं बताई लेकिन कुछ ही दिनों बाद उन्हें अपने भाई के शहादत की खबर मिल गई, जो उनके पूरे परिवार के लिए एक बहुत बड़ा सदमा था. इस सदमे से उनका परिवार आज भी नहीं उबर पाया है.
गौर हो कि कारगिल युद्ध में 75 रणबांकुरों ने अपने प्राणों की आहुति देकर तिरंगे की ताकत को पूरी दुनिया में कायम रखा. आज से दो दशक पहले यानी 1999 में कारगिल सेक्टर में युद्ध लगभग तीन महीनों तक चला, जिसमें भारत के 526 सैनिक शहीद हुये थे. गए. पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने के लिए चलाया गया ऑपरेशन विजय 26 जुलाई को भारत की जीत के साथ खत्म हुआ.
जमीन से लेकर आसमान और समंदर तक पाकिस्तान को घुटनों के बल लाने वाली भारतीय सेना में उत्तराखंड के 75 जवानों से अपनी शहादत दी. ऑपरेशन विजय में वीरगति को प्राप्त हुए इन 75 जवानों पर उत्तराखंड आज भी गर्व महसूस करता है.