विकासनगर: श्यामा चौहान की कहानी किसी फिल्म की कहानी जैसी लगती है. पांच साल पहले श्यामा के परिवार के सामने रोजी रोटी का संकट आया. जिसमें एक ओर जहां उनका मकान बिक गया, वहीं दूसरी ओर उनके बच्चों की पढ़ाई तक छूट गई. लेकिन आज पांच साल बाद उनका डेढ़ करोड़ का टर्नओवर है.
अपनी आर्थिक स्थिती से तंग आकर श्यामा ने अपने पैरों पर खड़ा होने की सोची. जिसके लिए 25 हजार रुपये का लोन लेकर उन्होंने एक महिला जागृति स्वयं सहायता समूह का गठन किया, जिसमें शुरू में उन्हें 10 महिलाओं का साथ मिला. लेकिन आज 5 सालों के बाद इस समूह में 100 से भी ज्यादा महिलाएं कार्य कर रही हैं. सभी महिलाएं जूट के बैग, फाइल फोल्डर, नॉन प्लास्टिक बैग जैसे उत्पाद तैयार कर रही हैं.
इसके साथ ही गांव की अन्य महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. श्यामा चौहान को उत्तराखंड की पहली महिला मास्टर ट्रेनर का सम्मान मिल चुका है. साथ ही उत्तराखंड सरकार द्वारा भी वे राज्य स्तरीय पुरस्कार से पुरस्कृत हो चुकी हैं.
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समूह से जुड़े रीना देवी बताती हैं कि जब से श्यामा दीदी ने गांव में रोजगार मुहैया करवाया है, तब से उनके घर की अर्थव्यवस्था अच्छी हो गई है. बच्चों का भरण पोषण भी अच्छी तरह हो रहा है. साथ ही समय से पैसा भी मिल जाता है.
श्यामा चौहान बताती है कि पांच साल पहले ऐसा समय आया कि उनका मकान बिक गया और उनका परिवार दाने-दाने को मोहताज हो गया था. जिसके बाद उन्होंने एक समूह का गठन किया. जिसके लिए 25 हजार रुपये का लोन लेकर कार्य प्रारंभ किया. उन्होंने बताया कि उस समय गांव के लोग उन पर हंसते थे, लेकिन आज वही लोग कहते हैं कि श्यामा दीदी की हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी.
वे कहती हैं कि आज उनका समूह डेढ़ करोड़ का वार्षिक टर्नओवर कर रहा है. जिसमें 100 से ज्यादा माताएं और बहनें कार्य कर रही हैं. उन्होंने बताया कि वे गांव की अन्य महिलाओं को भी स्वरोजगार से जोड़ने का प्रयास कर रही हैं.