देहरादून: देवभूमि के कण-कण में भगवान शिव विराजते हैं. शिवरात्रि के मौके पर चारों ओर बम बम भोले के जयकारे सुनाई दे रहे हैं. यही नहीं शिवरात्रि महापर्व का सनातन परंपराओं में एक विशेष महत्व है. लेकिन क्या आप जानते है कि देवों के देव महादेव को प्रसन्न करने का सबसे आसान तरीका क्या है? जी हां हम बात कर रहे है रुद्राक्ष की, माना जाता है भोले बाबा को रुद्राक्ष सबसे प्रिय है और रुद्राक्ष की उत्पत्ति जन कल्याण के लिए हुई.
शास्त्रों में शिव स्वरूप रुद्राक्ष की पूजा मोक्षदायिनी बतायी गई हैं. भगवान शिवशंकर का आभूषण माने जाने वाले रुद्राक्ष की आखिर महिमा क्या हैं, आइए आपको बताते हैं. दरअसल, रुद्राक्ष भगवान शंकर का प्रतीक है. यही वजह है कि सनातन धर्म में रुद्राक्ष का बहुत महत्व है. रुद्राक्ष इंसान को हर तरह की हानिकारक ऊर्जा से बचाता है. रुद्राक्ष के धारण करने से हर तरह की बाधाएं टल जाती है. यही नहीं महाशिवरात्रि पर भोले बाबा के प्रिय वस्तुओं में शुमार रुद्राक्ष की माला चढ़ाने से शिवलोक की प्राप्ति होती है.
क्या है रुद्राक्ष और कहां पाया जाता है ?
रुद्राक्ष का वृक्ष भारत, नेपाल समेत कई देशों के हिमालयी क्षेत्रो में पाया जाता है. रुद्राक्ष जिसे रुद्र का अक्ष यानी भगवान शंकर का आंसू कहा जाता है. रुद्राक्ष इस धरती पर एकलौती ऐसी वस्तु है. जिसको मंत्र जाप और ग्रहों को नियंत्रण करने के लिए सबसे उत्तम माना जाता है. रुद्राक्ष एक फल की गुठली है, जिसका विशेष औषधीय और आध्यात्मिक महत्व है. मान्यता है कि भगवान शिव के आंसुओं से रुद्राक्ष पैदा हुआ था. यही वजह है कि रुद्राक्ष को पहनने या रुद्राक्ष का प्रयोग करने से विशेष फल मिलता है. इसके साथ ही अकाल मृत्यु और शत्रु बाधा से भी रुद्राक्ष रक्षा करता है.
रुद्राक्ष के बारे में पौराणिक मान्यताएं
रुद्राक्ष की पौराणिक मान्यताओं की माने तो रुद्राक्ष भगवान शंकर का अंश माना जाता है. इसलिए इसे साक्षात भगवान शिव का स्वरूप माना गया है. रुद्राक्ष को सुख- सौभाग्य बढ़ाने वाला बताया गया है और भगवान भोले की पूजा के दौरान खास तौर से शिव भक्तों को रुद्राक्ष की माला धारण करनी चाहिए. शिव पुराण में वर्णन मिलता है कि भगवान शंकर ने अपनी आंखों को एक लंबे अंतराल तक बंद रखने के बाद जन कल्याण के लिए जब आंखों को खोला तो उनके आंसू धरती पर गिरे थे. जिसे ही रूद्र का अक्ष (रुद्राक्ष) कहते हैं. मान्यता है कि भगवान शंकर समाज के कल्याण के लिए ही रुद्राक्ष को संसार में जन्म दिया.
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रूद्राक्ष का वैज्ञानिक महत्व
सनातन धर्मावलंबियों में रुद्राक्ष का महत्व तो हमेशा से ही रहा है, लेकिन रुद्राक्ष से जब हम जप करते हैं तब रुद्राक्ष उंगलियों में एक्यूप्रेशर का काम करता है. साथ ही हाथों में बनी लकीरों को पलटने में रुद्राक्ष का एक बड़ा महत्व होता है. इसके साथ ही हृदय की बीमारी के लिए रुद्राक्ष एक बहुत बड़ी औषधि के रूप में काम करता है. रुद्राक्ष की भस्म को खाया भी जाता है और लगाया भी जाता है. धर्माचार्यों का मानना है कि जिसके मस्तिष्क में चंदन और कंठ में रुद्राक्ष की माला हो और वह ऊं नमः शिवाय जपे तो उसे शिवधाम की प्राप्ति होती है.
रुद्राक्ष से बना शिवलिंग
देहरादून स्थित प्राचीन मंदिरों में से एक टपकेश्वर मंदिर में रुद्राक्ष से बनी हुई शिवलिंग मौजूद है. 5 हजार एक सौ 51 रुद्राक्षों से बनी इस शिवलिंग में विभिन्न मुखी रुद्राक्ष को बुना गया है. यह शिवलिंग देश में एकमात्र रुद्राक्ष की बनी हुई शिवलिंग है. यह देहरादून के टपकेश्वर मंदिर में स्थापित है.
तीन तरह के रुद्राक्ष का विशेष महत्व है
तीन तरह के रुद्राक्षों का विशेष महत्व होता है. पहला गौरी शंकर रुद्राक्ष है. जिसको शिव और शक्ति का स्वरुप माना गया है. इस रुद्राक्ष को धारण करने से सर्वसिद्धिदायक, मोक्ष प्राप्ति के साथ साथ दंपत्ति जीवन में सुख शांति आती है. दूसरा गणेश रुद्राक्ष को भगवान गणेश का स्वरुप माना जाता है कि इस रुद्राक्ष को धारण करने से ऋद्धि-सिद्धि के आशीर्वाद के साथ ही विद्या मिलती है. तीसरा रुद्राक्ष है गौरीपाठ रुद्राक्ष. गौरीपाठ रुद्राक्ष को त्रिदेवो का स्वरुप माना गया है. इस रुद्राक्ष को धारण करने से त्रिदेव यानि ब्रम्हा, विष्णु और महेश की कृपा प्राप्त होती है.