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शिमला में भी उठी उत्तराखंड भू-कानून की आवाज, शिमला गढ़वाल सभा भेजेगी सुझाव

उत्तराखंड में इन दिनों तेजी से भू-कानून की मांग उठ रही है. उत्तराखंड के लोग भी अब हिमाचल जैसा सख्त भू-सुधार कानून चाहते हैं. कारण ये है कि उत्तराखंड की बेशकीमती जमीनों पर बाहरी धन्नासेठों का कब्जा हो रहा है. हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में रहने वाले उत्तराखंड प्रवासियों ने भी भू-कानून को लेकर आवाज बुलंद की है.

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देहरादून
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Published : Jul 11, 2021, 9:42 PM IST

Updated : Jul 11, 2021, 10:15 PM IST

शिमला/देहरादून: उत्तराखंड में भू-कानून की मांग जोरों पर है. उत्तराखंड के लोग सोशल मीडिया के माध्यम से पुरजोर भू-कानून की पुरजोर मांग कर रहे हैं. ऐसे में हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में रहने वाले उत्तराखंड प्रवासियों ने भी भू-कानून को लेकर आवाज बुलंद की है. शिमला गढ़वाल सभा ने अपनी मासिक बैठक के दौरान उत्तराखंड में भू-कानून लागू करने पर चर्चा हुई. बैठक में हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर उत्तराखंड में भी कानून लागू करने की बात पर जोर दिया गया.

गढ़वाल सभा शिमला के पदाधिकारी सुशील उनियाल ने कहा कि भू-कानून का सीधा सरोकार आम आदमी से है. हिमाचल प्रदेश की तरह उत्तराखंड की जमीन पर पहला हक उत्तराखंड वासियों का होना चाहिए. उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश की तरह ही उत्तराखंड भी पहाड़ी राज्य है. यहां के लोगों की अस्मिता और सुरक्षा के लिए यह बेहद जरूरी है कि उत्तराखंड में भू-कानून लागू किया जाए.

शिमला गढ़वाल सभा की बैठक (Shimla Garhwal Sabha meeting) में सुशील उनियाल (Sushil Uniyal) ने कहा कि साल 2000 के आंकड़ों के मुताबिक उत्तराखंड की कुल 8 लाख 31 हजार 227 हेक्टेयर भूमि है, जो 8 लाख 55 हजार 980 परिवारों के नाम दर्ज थी. इनमें 5 एकड़ से 10 एकड़, 10 एकड़ से 25 एकड़ और 25 एकड़ से ऊपर की तीनों श्रेणियों की जोतों की संख्या 1 लाख 8 हजार 863 थी. इन 1 लाख 8 हजार 863 परिवारों के नाम 4 लाख 2 हजार 022 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है.

ये भी पढ़ें: उत्तराखंड में बेशकीमती जमीनों को बचाने की जद्दोजहद, हिमाचल की तर्ज पर भू-कानून की मांग तेज

राज्य की कुल भूमि का लगभग आधा भाग, बाकी 5 एकड़ से एक जोत वाले 7 लाख 47 हजार 117 परिवारों के नाम मात्र 4 लाख 28 हजार 803 हेक्टेयर भूमि दर्ज है. राज्य के लगभग 12 फीसदी किसान परिवारों के कब्जे में राज्य की आधी कृषि भूमि है. 88 फीसदी कृषि आबादी भूमिहीन की श्रेणी में पहुंच चुकी है. हिमाचल प्रदेश के मुकाबले उत्तराखंड का भू-कानून बेहद लचीला है. ऐसे में उत्तराखंड को हिमाचल प्रदेश की तरह सख्त कानून की जरूरत है.

हिमाचल प्रदेश को साल 1971 में पूर्ण राज्य का दर्जा मिला और यहां अगले ही साल 1972 में हिमाचल प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री और हिमाचल निर्माता डॉ. यशवंत सिंह परमार (Dr Yashwant Singh Parmar) ने प्रदेश में भूमि सुधार कानून लागू कर दिया. कानून की धारा 118 के तहत कोई भी बाहरी व्यक्ति किसी की जमीन निजी उपयोग के लिए नहीं खरीद सकता. लैंड सीलिंग एक्ट में कोई भी व्यक्ति 150 बीघा जमीन से अधिक नहीं रख सकता. हिमाचल में बागवानी और खेती के कारण यहां के प्रति व्यक्ति आय देश में शीर्ष पर है. हिमाचल प्रदेश की जनता जागरूक है और धारा 118 के साथ छेड़छाड़ के बारे में कोई राजनीतिक दल या सरकार सोच भी नहीं सकती.

शिमला/देहरादून: उत्तराखंड में भू-कानून की मांग जोरों पर है. उत्तराखंड के लोग सोशल मीडिया के माध्यम से पुरजोर भू-कानून की पुरजोर मांग कर रहे हैं. ऐसे में हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में रहने वाले उत्तराखंड प्रवासियों ने भी भू-कानून को लेकर आवाज बुलंद की है. शिमला गढ़वाल सभा ने अपनी मासिक बैठक के दौरान उत्तराखंड में भू-कानून लागू करने पर चर्चा हुई. बैठक में हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर उत्तराखंड में भी कानून लागू करने की बात पर जोर दिया गया.

गढ़वाल सभा शिमला के पदाधिकारी सुशील उनियाल ने कहा कि भू-कानून का सीधा सरोकार आम आदमी से है. हिमाचल प्रदेश की तरह उत्तराखंड की जमीन पर पहला हक उत्तराखंड वासियों का होना चाहिए. उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश की तरह ही उत्तराखंड भी पहाड़ी राज्य है. यहां के लोगों की अस्मिता और सुरक्षा के लिए यह बेहद जरूरी है कि उत्तराखंड में भू-कानून लागू किया जाए.

शिमला गढ़वाल सभा की बैठक (Shimla Garhwal Sabha meeting) में सुशील उनियाल (Sushil Uniyal) ने कहा कि साल 2000 के आंकड़ों के मुताबिक उत्तराखंड की कुल 8 लाख 31 हजार 227 हेक्टेयर भूमि है, जो 8 लाख 55 हजार 980 परिवारों के नाम दर्ज थी. इनमें 5 एकड़ से 10 एकड़, 10 एकड़ से 25 एकड़ और 25 एकड़ से ऊपर की तीनों श्रेणियों की जोतों की संख्या 1 लाख 8 हजार 863 थी. इन 1 लाख 8 हजार 863 परिवारों के नाम 4 लाख 2 हजार 022 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है.

ये भी पढ़ें: उत्तराखंड में बेशकीमती जमीनों को बचाने की जद्दोजहद, हिमाचल की तर्ज पर भू-कानून की मांग तेज

राज्य की कुल भूमि का लगभग आधा भाग, बाकी 5 एकड़ से एक जोत वाले 7 लाख 47 हजार 117 परिवारों के नाम मात्र 4 लाख 28 हजार 803 हेक्टेयर भूमि दर्ज है. राज्य के लगभग 12 फीसदी किसान परिवारों के कब्जे में राज्य की आधी कृषि भूमि है. 88 फीसदी कृषि आबादी भूमिहीन की श्रेणी में पहुंच चुकी है. हिमाचल प्रदेश के मुकाबले उत्तराखंड का भू-कानून बेहद लचीला है. ऐसे में उत्तराखंड को हिमाचल प्रदेश की तरह सख्त कानून की जरूरत है.

हिमाचल प्रदेश को साल 1971 में पूर्ण राज्य का दर्जा मिला और यहां अगले ही साल 1972 में हिमाचल प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री और हिमाचल निर्माता डॉ. यशवंत सिंह परमार (Dr Yashwant Singh Parmar) ने प्रदेश में भूमि सुधार कानून लागू कर दिया. कानून की धारा 118 के तहत कोई भी बाहरी व्यक्ति किसी की जमीन निजी उपयोग के लिए नहीं खरीद सकता. लैंड सीलिंग एक्ट में कोई भी व्यक्ति 150 बीघा जमीन से अधिक नहीं रख सकता. हिमाचल में बागवानी और खेती के कारण यहां के प्रति व्यक्ति आय देश में शीर्ष पर है. हिमाचल प्रदेश की जनता जागरूक है और धारा 118 के साथ छेड़छाड़ के बारे में कोई राजनीतिक दल या सरकार सोच भी नहीं सकती.

Last Updated : Jul 11, 2021, 10:15 PM IST
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