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उत्तराखंड को आर्थिक ही नहीं बिजली संकट से उबारेगा ये फैसला, PM मोदी पर टिकी निगाहें - Share of uttarakhand in hydro power projects in state

टिहरी बांध और कोटेश्वर बांध से उत्तराखंड को 12% के लिहाज से 168 मेगावाट बिजली मिलती है. जबकि यदि अपने हक का 20% हिस्सा भी उत्तराखंड को मिल जाता है तो प्रदेश को 350 मेगावाट तक बिजली मिल सकती है. जिससे राज्य न केवल अपनी बिजली की कमी को दूर कर सकता है, बल्कि इसे बाजार में बेचकर कमाई भी कर सकता है.

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PM मोदी पर टिकी निगाहें
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Published : Jul 14, 2022, 8:27 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड के हक में आया एक फैसला प्रदेश के खराब आर्थिक हालातों के साथ लगातार बढ़ रहे बिजली संकट को दूर कर सकता है. यह मामला टीएचडीसी की परियोजनाओं में हिस्सेदारी से जुड़ा है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल वाद पेंडिंग है. लेकिन प्रदेशवासियों की निगाहें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर है. जो इस विवाद को सुलझा कर उत्तराखंड की किस्मत को बदल सकते हैं.

उत्तराखंड को अपने बड़े भाई उत्तर प्रदेश से भले ही न्याय न मिला हो. लेकिन प्रदेश की निगाहें अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ हैं. यह मामला टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड में हिस्सेदारी का है. टीएचडीसी यानी टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन. जिसका मुख्यालय उत्तराखंड के ऋषिकेश में ही है. दरअसल, टीएचडीसी की तरफ से उत्तराखंड में कई हाइड्रो प्रोजेक्ट तैयार किए गए हैं. जिसमें एशिया के सबसे बड़े बांधों में से एक टिहरी बांध भी शामिल है.

उत्तराखंड को आर्थिक ही नहीं बिजली संकट से उबारेगा ये फैसला.
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आपको बता दें कि टीएचडीसी में बिजली उत्पादन को लेकर उत्तराखंड टिहरी और कोटेश्वर बांध में केवल 12 फीसदी बिजली रॉयल्टी के रूप में ले रहा है. जबकि उत्तर प्रदेश को यही हिस्सेदारी 25% के रूप में मिल रही है. यह स्थिति तब है जब उत्तर प्रदेश पुनर्गठन एक्ट में राज्य विभाजन के समय जो संपत्ति जिस प्रदेश में होगी, उसका अधिकार उसी प्रदेश को दिया जाएगा की शर्तें और नियम मौजूद है. इसके बावजूद आज भी उत्तर प्रदेश 25% की हिस्सेदारी लेकर उत्तराखंड को केवल 12% की हिस्सेदारी मिल रही है.

आपको जानकर हैरानी होगी कि केवल टिहरी बांध और कोटेश्वर बांध से उत्तराखंड को 12% के लिहाज से 168 मेगावाट बिजली मिलती है. जबकि यदि अपने हक का 20% हिस्सा भी उत्तराखंड को मिल जाता है तो प्रदेश को 350 मेगावाट बिजली मिल सकती है. जिससे राज्य न केवल अपनी बिजली की कमी को दूर कर सकता है. बल्कि इसे बाजार में बेचकर कमाई भी कर सकता है.
पढ़ें- आय से अधिक संपत्ति मामला: कुसुम यादव की हो सकती है गिरफ्तारी, पति जेल में हैं बंद

हालांकि, इस मामले में उत्तराखंड की तरफ से साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट की शरण ली गई थी और सुप्रीम कोर्ट की तरफ से भी उत्तराखंड के पक्ष में रुक दिखाया गया था. लेकिन बताया जाता है कि इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में मजबूत पैरवी की कमजोरी ने मामले को लटका दिया. इसी मामले में ऊर्जा विभाग की तरफ से पूर्व में मुख्यमंत्री से बात की गई थी, जिसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष भी इस मामले पर उत्तराखंड के पक्ष में विवाद को सुलझाने का अनुरोध किया गया.

यह मामला प्रदेश की आर्थिक स्थिति में सुधार से लेकर बिजली संकट को दूर करने से जुड़ा है, इससे ना केवल प्रदेश को अपनी जरूरत को पूरा करने की बिजली मिलेगी. बल्कि अतिरिक्त बिजली बेचकर राज्य बड़ा राजस्व प्राप्त कर सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि टीएचडीसी की केवल हिंदू परियोजनाओं में ही नहीं बल्कि उत्तराखंड और उत्तराखंड से बाहर की तमाम परियोजनाओं मे भी राज्य की हिस्सेदारी सुनिश्चित की जा सकती है.

ऐसे में उत्तराखंड ऊर्जा प्रदेश के उस नाम को साकार कर सकता है. इस बात को इस रूप में समझा सकता है कि टीएचडीसी की तरफ से करीब 4000 मेगावाट से ज्यादा की परियोजनाएं या तो संचालित की जा रही है या फिर निर्माणाधीन हैं और इन सभी में हिस्सेदारी मिलना राज्य को मालामाल कर सकता है.

देहरादून: उत्तराखंड के हक में आया एक फैसला प्रदेश के खराब आर्थिक हालातों के साथ लगातार बढ़ रहे बिजली संकट को दूर कर सकता है. यह मामला टीएचडीसी की परियोजनाओं में हिस्सेदारी से जुड़ा है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल वाद पेंडिंग है. लेकिन प्रदेशवासियों की निगाहें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर है. जो इस विवाद को सुलझा कर उत्तराखंड की किस्मत को बदल सकते हैं.

उत्तराखंड को अपने बड़े भाई उत्तर प्रदेश से भले ही न्याय न मिला हो. लेकिन प्रदेश की निगाहें अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ हैं. यह मामला टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड में हिस्सेदारी का है. टीएचडीसी यानी टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन. जिसका मुख्यालय उत्तराखंड के ऋषिकेश में ही है. दरअसल, टीएचडीसी की तरफ से उत्तराखंड में कई हाइड्रो प्रोजेक्ट तैयार किए गए हैं. जिसमें एशिया के सबसे बड़े बांधों में से एक टिहरी बांध भी शामिल है.

उत्तराखंड को आर्थिक ही नहीं बिजली संकट से उबारेगा ये फैसला.
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आपको बता दें कि टीएचडीसी में बिजली उत्पादन को लेकर उत्तराखंड टिहरी और कोटेश्वर बांध में केवल 12 फीसदी बिजली रॉयल्टी के रूप में ले रहा है. जबकि उत्तर प्रदेश को यही हिस्सेदारी 25% के रूप में मिल रही है. यह स्थिति तब है जब उत्तर प्रदेश पुनर्गठन एक्ट में राज्य विभाजन के समय जो संपत्ति जिस प्रदेश में होगी, उसका अधिकार उसी प्रदेश को दिया जाएगा की शर्तें और नियम मौजूद है. इसके बावजूद आज भी उत्तर प्रदेश 25% की हिस्सेदारी लेकर उत्तराखंड को केवल 12% की हिस्सेदारी मिल रही है.

आपको जानकर हैरानी होगी कि केवल टिहरी बांध और कोटेश्वर बांध से उत्तराखंड को 12% के लिहाज से 168 मेगावाट बिजली मिलती है. जबकि यदि अपने हक का 20% हिस्सा भी उत्तराखंड को मिल जाता है तो प्रदेश को 350 मेगावाट बिजली मिल सकती है. जिससे राज्य न केवल अपनी बिजली की कमी को दूर कर सकता है. बल्कि इसे बाजार में बेचकर कमाई भी कर सकता है.
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हालांकि, इस मामले में उत्तराखंड की तरफ से साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट की शरण ली गई थी और सुप्रीम कोर्ट की तरफ से भी उत्तराखंड के पक्ष में रुक दिखाया गया था. लेकिन बताया जाता है कि इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में मजबूत पैरवी की कमजोरी ने मामले को लटका दिया. इसी मामले में ऊर्जा विभाग की तरफ से पूर्व में मुख्यमंत्री से बात की गई थी, जिसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष भी इस मामले पर उत्तराखंड के पक्ष में विवाद को सुलझाने का अनुरोध किया गया.

यह मामला प्रदेश की आर्थिक स्थिति में सुधार से लेकर बिजली संकट को दूर करने से जुड़ा है, इससे ना केवल प्रदेश को अपनी जरूरत को पूरा करने की बिजली मिलेगी. बल्कि अतिरिक्त बिजली बेचकर राज्य बड़ा राजस्व प्राप्त कर सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि टीएचडीसी की केवल हिंदू परियोजनाओं में ही नहीं बल्कि उत्तराखंड और उत्तराखंड से बाहर की तमाम परियोजनाओं मे भी राज्य की हिस्सेदारी सुनिश्चित की जा सकती है.

ऐसे में उत्तराखंड ऊर्जा प्रदेश के उस नाम को साकार कर सकता है. इस बात को इस रूप में समझा सकता है कि टीएचडीसी की तरफ से करीब 4000 मेगावाट से ज्यादा की परियोजनाएं या तो संचालित की जा रही है या फिर निर्माणाधीन हैं और इन सभी में हिस्सेदारी मिलना राज्य को मालामाल कर सकता है.

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