देहरादून: केदारनाथ आपदा के सात साल बीत चुके हैं लेकिन, आपदा के जख्म आज भी हरे हैं. तबाही का वो मंजर आज भी लोगों की स्मृति में मौजूद है. केदारधाम में आई इस जलप्रलय के बाद अब पीएम मोदी की पहल से धाम का स्वरूप कुछ हद तक जरूर बदल गया है. हालांकि, कोविड-19 संक्रमण के चलते इस बार चारधाम यात्रा शुरू नहीं हो पाई है.
2013 की आपदा पर पूरे विश्व का ध्यान गया था. इस आपदा के बाद हुए परफॉर्मेंस ऑडिट में कैग ने भी प्रदेश की आपदा प्रबंधन व्यवस्था को लेकर सवाल उठाए थे. कैग रिपोर्ट के बाद राष्ट्रीय और राज्य के स्तर पर हुई कार्यशालाओं में यह बात भी सामने निकल कर आई थी कि प्रदेश को सबसे अधिक जरूरत बेहद मजबूत संचार तंत्र की है.
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ऐसा तंत्र जो आपदा के समय काम कर सके. इसके साथ ही खतरे की पूर्व चेतावनी का तंत्र भी स्थापित करने की बात की गई थी. केदारनाथ की आपदा का एक बड़ा सबक संवेदनशील स्थानों को चिन्हित करना और वहां रह रहे लोगों को खतरे से दूर करना भी शामिल था.
कई खतरों की जद में प्रदेश
भूकंप के लिहाज से प्रदेश जोन चार और पांच में शामिल है. इसके अलावा प्रदेश भूस्खलन के हिसाब से भी अति संवेदनशील है. करीब 200 अति संवेदनशील जोन इसमें चिन्हित भी किए जा चुके हैं.
आज भी है खतरा
मौसम में बदलाव के कारण अब मानसून में बहुत अधिक बारिश के मामले भी सामने आ रहे हैं. इससे मैदानी क्षेत्रों में बाढ़ और पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं. ग्लेशियरों के सिकुड़ने के कारण अब उच्च हिमालयी क्षेत्र में नई झीलों का निर्माण भी हो रहा है. इस वजह से अचानक आने वाली बाढ़ का खतरा भी बढ़ रहा है.
इस साल नहीं शुरू हो पाई चारधाम यात्रा
कोविड-19 संक्रमण के चलते इस बार केदारनाथ यात्रा शुरू नहीं हो पाई है. जबकि, चारों धामों के कपाट खुल चुके हैं. हालांकि, राज्य सरकार ने स्थानीय लोगों को केंद्र सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन का अनुपालन करते हुए मंदिरों में दर्शन की अनुमति दे दी है.