ऋषिकेश: चारधाम यात्रा की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. वहीं, भगवान बदरी विशाल का अभिषेक और अखंड ज्योति के लिए तिल के तेल निकालने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. खास बात ये है कि आधुनिकता के इस दौर में इस तेल को आज भी परंपरागत तरीके से ही निकाला जाता है. जिसे टिहरी राजघराने की महारानी के अगुवाई में सुहागिनों द्वारा निकाला जाता है.
टिहरी राजपरिवार करता है अगुवाई
स्थानीय लोगों ने बताया कि अतीत से इस परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है. भगवान बदरी विशाल के लेप और अखंड ज्योति जलाने के लिए उपयोग होने वाला तिल का तेल सदियों से टिहरी महारानी की अगुवाई में राज परिवार और डिमरी समाज की सुहागिनों द्वारा निकाला जाता है. जोकि बिना किसी मशीन के प्रयोग से कोल्हू और हाथों से परंपरागत ढंग से निकाला जाता है. प्राचीन काल में इस परंपरा को बदरीनाथ धाम के कपाट खोलने की प्रक्रिया की शुरुआत माना जाता है.
18वीं सदी से चली आ रही परंपरा
यह परंपरा 18वीं सदी से चली आ रही है. जिसको प्रथम पीढ़ी श्रीशाह के दौर से राजपरिवार निभाता आ रहा है. इस पवित्र तेल को निकालने के बाद इसे एक चांदी के घड़े में पूरे विधि-विधान से डाला जाता है, जिसे गाड़ू घड़ा कहा जाता है. राजमहल से पूरे हर्षोउल्लास के साथ गाड़ू घड़ा ऋषिकेश के चेला चैतराम धर्मशाला पहुंचता है, जिसके बाद अगले दिन इस पवित्र गाड़ू घड़े को लोगों के दर्शन के लिए पूरे दिन रखा जाता है. जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पवित्र गाड़ू घड़े के दर्शन करने के लिए पंहुचते हैं.
तेल में मिलाई जाती हैं कई औषधियां
सदियों से चली आ रही इस परंपरा को टिहरी राज परिवार और डिमरी समाज के लोग निभाते आ रहे हैं. जिसे राजपरिवार और स्थानीय लोग भविष्य में भी जीवित रखना चाहते हैं. डिम्मर पंचायत के लोगों कहना है भगवान बदरीनाथ के लेप के तैयार इस तेल में कई तरह की औषधियां डाली जाती है. साथ ही उन्होंने बताया कि बदरीनाथ धाम में काफी बर्फ पड़ती है. इसलिए पवित्र तिल के तेल से भगवान बदरी लेप भी किया जाता है ताकि उन्हें ठंड ना लगे. क्योंकि तिल का तेल काफी गर्म होता है और सदियों से चली आ रही इस परंपरा का हरसाल लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं. भगवान बदरी विशाल के अभिषेक के लिए बनाए जाने वाले इस तेल से लोगों की आस्था भी जुड़ी है.