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बदरी विशाल के अभिषेक की अनूठी परंपरा, अखंड ज्योति के लिए ऐसे बनता है तेल

भगवान बदरी विशाल के लेप और अखंड ज्योति जलाने के लिए उपयोग होने वाला तिल का तेल सदियों से टिहरी महारानी की अगुवाई में राज परिवार और डिमरी समाज की सुहागिनों द्वारा निकाला जाता है. जोकि बिना किसी मशीन के प्रयोग से कोल्हू और हाथों से परंपरागत ढंग से निकाला जाता है. प्राचीन काल में इस परंपरा को बदरीनाथ धाम  के कपाट खोलने की प्रक्रिया की शुरुआत माना जाता है.

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Published : Apr 25, 2019, 1:49 PM IST

Updated : Apr 25, 2019, 2:17 PM IST

अभिषेक और अखंड ज्योति के लिए बनता तेल.

ऋषिकेश: चारधाम यात्रा की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. वहीं, भगवान बदरी विशाल का अभिषेक और अखंड ज्योति के लिए तिल के तेल निकालने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. खास बात ये है कि आधुनिकता के इस दौर में इस तेल को आज भी परंपरागत तरीके से ही निकाला जाता है. जिसे टिहरी राजघराने की महारानी के अगुवाई में सुहागिनों द्वारा निकाला जाता है.

अतीत से चली आ रही ये अनूठी परंपरा.

टिहरी राजपरिवार करता है अगुवाई
स्थानीय लोगों ने बताया कि अतीत से इस परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है. भगवान बदरी विशाल के लेप और अखंड ज्योति जलाने के लिए उपयोग होने वाला तिल का तेल सदियों से टिहरी महारानी की अगुवाई में राज परिवार और डिमरी समाज की सुहागिनों द्वारा निकाला जाता है. जोकि बिना किसी मशीन के प्रयोग से कोल्हू और हाथों से परंपरागत ढंग से निकाला जाता है. प्राचीन काल में इस परंपरा को बदरीनाथ धाम के कपाट खोलने की प्रक्रिया की शुरुआत माना जाता है.

18वीं सदी से चली आ रही परंपरा
यह परंपरा 18वीं सदी से चली आ रही है. जिसको प्रथम पीढ़ी श्रीशाह के दौर से राजपरिवार निभाता आ रहा है. इस पवित्र तेल को निकालने के बाद इसे एक चांदी के घड़े में पूरे विधि-विधान से डाला जाता है, जिसे गाड़ू घड़ा कहा जाता है. राजमहल से पूरे हर्षोउल्लास के साथ गाड़ू घड़ा ऋषिकेश के चेला चैतराम धर्मशाला पहुंचता है, जिसके बाद अगले दिन इस पवित्र गाड़ू घड़े को लोगों के दर्शन के लिए पूरे दिन रखा जाता है. जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पवित्र गाड़ू घड़े के दर्शन करने के लिए पंहुचते हैं.

तेल में मिलाई जाती हैं कई औषधियां
सदियों से चली आ रही इस परंपरा को टिहरी राज परिवार और डिमरी समाज के लोग निभाते आ रहे हैं. जिसे राजपरिवार और स्थानीय लोग भविष्य में भी जीवित रखना चाहते हैं. डिम्मर पंचायत के लोगों कहना है भगवान बदरीनाथ के लेप के तैयार इस तेल में कई तरह की औषधियां डाली जाती है. साथ ही उन्होंने बताया कि बदरीनाथ धाम में काफी बर्फ पड़ती है. इसलिए पवित्र तिल के तेल से भगवान बदरी लेप भी किया जाता है ताकि उन्हें ठंड ना लगे. क्योंकि तिल का तेल काफी गर्म होता है और सदियों से चली आ रही इस परंपरा का हरसाल लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं. भगवान बदरी विशाल के अभिषेक के लिए बनाए जाने वाले इस तेल से लोगों की आस्था भी जुड़ी है.

ऋषिकेश: चारधाम यात्रा की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. वहीं, भगवान बदरी विशाल का अभिषेक और अखंड ज्योति के लिए तिल के तेल निकालने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. खास बात ये है कि आधुनिकता के इस दौर में इस तेल को आज भी परंपरागत तरीके से ही निकाला जाता है. जिसे टिहरी राजघराने की महारानी के अगुवाई में सुहागिनों द्वारा निकाला जाता है.

अतीत से चली आ रही ये अनूठी परंपरा.

टिहरी राजपरिवार करता है अगुवाई
स्थानीय लोगों ने बताया कि अतीत से इस परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है. भगवान बदरी विशाल के लेप और अखंड ज्योति जलाने के लिए उपयोग होने वाला तिल का तेल सदियों से टिहरी महारानी की अगुवाई में राज परिवार और डिमरी समाज की सुहागिनों द्वारा निकाला जाता है. जोकि बिना किसी मशीन के प्रयोग से कोल्हू और हाथों से परंपरागत ढंग से निकाला जाता है. प्राचीन काल में इस परंपरा को बदरीनाथ धाम के कपाट खोलने की प्रक्रिया की शुरुआत माना जाता है.

18वीं सदी से चली आ रही परंपरा
यह परंपरा 18वीं सदी से चली आ रही है. जिसको प्रथम पीढ़ी श्रीशाह के दौर से राजपरिवार निभाता आ रहा है. इस पवित्र तेल को निकालने के बाद इसे एक चांदी के घड़े में पूरे विधि-विधान से डाला जाता है, जिसे गाड़ू घड़ा कहा जाता है. राजमहल से पूरे हर्षोउल्लास के साथ गाड़ू घड़ा ऋषिकेश के चेला चैतराम धर्मशाला पहुंचता है, जिसके बाद अगले दिन इस पवित्र गाड़ू घड़े को लोगों के दर्शन के लिए पूरे दिन रखा जाता है. जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पवित्र गाड़ू घड़े के दर्शन करने के लिए पंहुचते हैं.

तेल में मिलाई जाती हैं कई औषधियां
सदियों से चली आ रही इस परंपरा को टिहरी राज परिवार और डिमरी समाज के लोग निभाते आ रहे हैं. जिसे राजपरिवार और स्थानीय लोग भविष्य में भी जीवित रखना चाहते हैं. डिम्मर पंचायत के लोगों कहना है भगवान बदरीनाथ के लेप के तैयार इस तेल में कई तरह की औषधियां डाली जाती है. साथ ही उन्होंने बताया कि बदरीनाथ धाम में काफी बर्फ पड़ती है. इसलिए पवित्र तिल के तेल से भगवान बदरी लेप भी किया जाता है ताकि उन्हें ठंड ना लगे. क्योंकि तिल का तेल काफी गर्म होता है और सदियों से चली आ रही इस परंपरा का हरसाल लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं. भगवान बदरी विशाल के अभिषेक के लिए बनाए जाने वाले इस तेल से लोगों की आस्था भी जुड़ी है.

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ऋषिकेश-- हिंदुओं के सर्वोच्च तीर्थ के रूप में स्थापित भगवान विष्णु के बैकुंठ धाम बद्रीनाथ के ग्रीष्मकालीन पूजा पाठ के दौरान परंपरागत ढंग से बद्री विशाल के अभिषेक और अखंड ज्योति के लिए तिल का तेल की प्रक्रिया सदियों पुरानी है जो कि आज भी निभाई जाती है इस प्राचीन परंपरा पर देखिए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट--


Body:वी/ओ--स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि सदियों पुरानी परंपराओं के अनुसार भगवान बद्री विशाल के लेप और अखंड ज्योति जलाने के लिए उपयोग होने वाला तिल का तेल सदियों से नरेंद्र नगर स्थित टिहरी राजमहल में महारानी की अगुवाई में बड़ी ही पवित्रता से राज परिवार और डिमरी समाज की सुहागिन महिलाओं द्वारा निकाला जाता है जो कि बिना किसी मशीन के प्रयोग से ही प्राचीन कोलू और हाथों से परंपरागत ढंग से निकाला जाता है प्राचीन काल में इस परंपरा को ही बद्रीनाथ जी के कपाट खोलने की प्रक्रिया की शुरुआत माना जाता है।यह परमपरा 18 वीं सदी से चली आरही है जिसको प्रथम पीढ़ी श्रीशाह के दौर से राजपरिवार निभाता आरहा है।

बाईट--माला राज्य लक्ष्मी शाह(महारानी नरेंद्र नगर रियाशत)
बाईट--मेजर एम डी डंगवाल(स्थानीय बिजुर्ग)

वी/ओ-- इस पवित्र तेल को निकालने के बाद इसे एक चांदी के घड़े मे पूरे विधि विधान से डाला जाता है जिसे गाडू घड़ा कहा जाता है,राजमहल से पूरे हर्षोउल्लास के साथ गाडू घड़ा ऋषिकेश के चेला चैतराम धर्मशाला पंहुचता जिसके बाद अगले दिन इस पवित्र गाडू घड़े को लोगों के दर्शन के लिए पूरे दिन रखा जाता है जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पवित्र गाडू घड़े के दर्शन करने के लिए पंहुचते हैं, सदियों से चली आ रही इस परंपरा को टिहरी राज परिवार और डिमरी समाज के लोग निभाते आ रहे हैं और भविष्य में भी परंपरा को जीवित रखना चाहते हैं।डिम्मर पंचायत के लोगों कहना है इस बद्रीनाथ भगवान के लेप की तैयार किये गए इस पवित्र तिल के तेल में कई तरह की अवसाधियाँ भी डाली जाती है,उनका यह भी मानना है कि बद्रीनाथ धाम में काफी बर्फ पड़ती है जिस कारण मौसम काफी ठंडा रहता है इसलिए पवित्र तिल के तेल भगवान का लेप किया जाता है क्योंकि तिल का तेल काफी गर्म होता है।

बाईट--भास्कर डिमरी(बद्रीनाथ मंदिर समिति सदस्य)
बाईट--राकेश डिमरी(डिम्मर पंचायत सदस्य)


Conclusion:वी/ओ-- राजा महाराजाओं के समय से चली आ रही सदियों पुरानी परंपराएं आज भी जीवित हैं इंतजार है तो बस भगवान बद्री विशाल के कपाट खुलने की इस प्रक्रिया को उस दिन का जब चार धाम यात्रा का आगाज के रूप में इस गाडू घड़ी यात्रा का प्रचार-प्रसार तेजी से हो ताकि लोगों को इसके बारे पता चल सके।

पीटीसी--विनय पाण्डेय
Last Updated : Apr 25, 2019, 2:17 PM IST
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