देहरादून: उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव अभी भले ही दूर हों लेकिन राजनीतिक पार्टियां अपनी जमीन बनाने में जुट चुकी हैं. बीजेपी-कांग्रेस के वर्चस्व वाले पहाड़ी प्रदेश में इस बार आम आदमी पार्टी ने एंट्री मारी है. 'आप' ने प्रदेश की सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. हालांकि, बीजेपी-कांग्रेस इससे कोई फर्क न पड़ने की बात कह तो रही हैं लेकिन, अंदरखाने हलचल जरूरी है. दरअसल, 'आप' के आ जाने से राज्य के दूसरी और तीसरी पंक्ति के नेताओं को एक उम्मीद मिली है.
माना जा रहा है कि राष्ट्रीय दल बीजेपी और कांग्रेस से असंतुष्ट नेताओं के लिए आम आदमी पार्टी एक बेहतर विकल्प बन सकती है. 'आप' भी इस मौके को कैश करना चाहती है. राज्य में असंतुष्टों की संख्या देखते हुये कहा जा सकता है कि आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट से महरूम रहने वाले नेता 'आप' का दरवाजा खटखटा सकते हैं.
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चुनाव से पहले मिले वक्त में आम आदमी पार्टी पहाड़ी प्रदेश में अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रही है. उसकी सबसे पहली नजर राष्ट्रीय दलों के असंतुष्ट नेताओं और दूसरी से तीसरी पंक्ति के लोगों पर है, जिन्हें पार्टी से आगामी चुनाव में टिकट मिलने की कम ही उम्मीद है.
'आप' के पास प्रदेश में कोई बड़ा चेहरा भी नहीं है. ऐसे में पार्टी किसी बड़े चेहरे के साथ ही मझले नेताओं की फौज को दल में शामिल कर लेना चाहती है. आप ने ऐसे नेताओं के लिए अपने दरवाजे खोल रखे हैं.
दलबदल को मिलेगा बल!
आम आदमी पार्टी के मैदान में आने से दलबदल की भी राजनीति को भी बल मिलने की आशंका है. जनता के साथ-साथ नेताओं को भी उत्तराखंड में एक विकल्प मिल जाएगा. इस मामले पर कांग्रेस का कहना है कि चुनाव के दौरान दलबदल की घटनाएं सामान्य होती हैं. कांग्रेस के साथ तो पहले भी ऐसा हुआ है जब उसके पहली पंक्ति के नेता भी पार्टी छोड़ बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. हालांकि, कांग्रेस को इसकी चिंता नहीं है.
कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना का कहना है कि आम आदमी पार्टी केवल चुनावी महोत्सव में शामिल होने आई है. चुनाव खत्म होते ही वो वापस चली जाएगी. उधर, कांग्रेस के विचारों से बीजेपी इत्तेफाक नहीं रखती. बीजेपी प्रदेश महामंत्री कुलदीप कुमार का मानना है कि उनके नेता और कार्यकर्ता पार्टी की रीति-नीति पर विश्वास करते हैं. आम आदमी पार्टी कुछ भी कर ले, लेकिन वो बीजेपी के नेताओं की नहीं तोड़ पाएगी.
प्रदेश में 'आप' के अस्तित्व से दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियां भले ही इनकार कर रही हों लेकिन कांग्रेस और बीजेपी से असंतुष्ट नेताओं के लिए आम आदमी पार्टी एक विकल्प जरूर बन सकती है, जो दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों के लिये चुनौती भले ही न बने, लेकिन मुश्किल जरूर खड़ी कर सकती है.