देहरादून: ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक तापमान) के चलते तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर दुनिया भर के वैज्ञानिकों के लिए चिंता का विषय बन गए हैं. तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर के कारण समंदर का जल स्तर भी तेजी से बढ़ रहा है. अगर ऐसा होता रहा तो आने वाले समय में समंदर किनारे बसे शहर और छोटे-छोटे द्वीप डूब जाएंगे.
भविष्य के इस खतरे से निपटने के लिए वैज्ञानिकों ने अपनी तैयारी शुरू कर दी है. वैज्ञानिक अब अंटार्कटिका के बर्फ की चादर को कृत्रिम बर्फ से ढकने की तैयारी में हैं. वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान देहरादून के वैज्ञानिकों ने एक तरफ इस पहल का समर्थन किया है तो वहीं कई बड़े सवाल भी खड़े किये हैं.
वाडिया के वैज्ञानिकों के अनुसार अंटार्कटिका पूरा बर्फ से भरा हुआ है, जो एक तरह से बर्फ का समंदर है. ग्लोबल वार्मिंग के कारण धरती की तापमान बढ़ रहा है. जिसकी वजह से अंटार्कटिका का ग्लेशियर भी पिघल रहा है. अंटार्कटिका के साथ अन्य ग्लेशियरों की भी यही स्थिति है. जिससे समंदर का जल स्तर बढ़ रहा है.
भारत में इन शहरों पर खतरा
वैज्ञानिकों ने बताया कि अंटार्कटिका के पिघलने से ओशियन का वाटर लेवल बढ़ रहा है, जो भविष्य में कई देशों के लिए खतरा बन सकता है. भारत की बात कर तो मुंबई, कोलकत्ता और गोवा जैसे समंदर के किनारे बसे शहर तबाह हो जाएंगे.
कृत्रिम बर्फ से किया जाएगा तापमान कम
अंटार्कटिका पर जिस रफ्तार से बर्फ पिघल रही है उसे रोकने के तमाम प्रयास किए जा रहे है. इसके लिए कृत्रिम रूप से तमाम तरीके हैं. जैसे अंटार्कटिका में कृत्रिम रूप से बर्फबारी कराना, लेकिन इसमें भी एक बड़ी समस्या है. क्योंकि अंटार्कटिका के सभी जगह को कवर नहीं किया जा सकता. इसलिए कृत्रिम रूप से बर्फबारी करा कर कुछ हद तक अंटार्कटिका को कवर किया जा सकता है. ताकि अंटार्कटिका के तापमान को कम किया जा सके और वहां तेजी से बर्फ न पिघले. इसको लेकर अभी वैज्ञानिक प्लान बना रहे हैं.
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7.4 लाख करोड़ टन बर्फ जमाने की जरुरत
साइंस एडवांसेस जर्नल में छपी रिपोर्ट के अनुसार, सबसे पहले महासागर के पानी को ग्लेशियर के 2100 फीट नीचे स्थित बेस से पाइपलाइन के जरिए खींचकर सतह तक पहुंचाया जाएगा. इसके बाद पानी को नमक रहित करने की प्रकिया अपनाई जाएगी और फिर आइस कैनन (बर्फ की तोपों) से पानी को जमा दिया जाएगा. जिससे अंटार्कटिका के किनारों पर बर्फ की मोटी परत बनेगी. साथ ही साइंस एडवांसेस जर्नल में छपी रिपोर्ट के मुताबिक ग्लेशियर को पिघलने से रोकने के लिए उन्हें 10 सालों के अंदर 7.4 लाख करोड़ टन बर्फ जमाने की जरुरत होगी.
अंटार्कटिका पर कृत्रिम स्नो फॉल कराना चुनौती
लेकिन इसमें एक बड़ी समस्या है. वैज्ञानिकों के मुताबिक अंटार्कटिका में जो बर्फ की चादर पिघल गई है. उस पानी का इस्तेमाल कर कृत्रिम रूप से अंटार्कटिका पर बर्फ में बदल दिया जाए. लेकिन इसके लिए वहां का तापमान कम करना पड़ेगा. हालांकि अंटार्कटिका में तापमान बहुत कम है, लेकिन पिघले हुए पानी को दोबारा बर्फ बनाने के लिए कोई नई टेक्निक इस्तेमाल करनी पड़ेगी. यह बहुत लंबा प्रोसेस है. इसके लिए पहले अंटार्कटिका पर स्नो फॉल करानी होगी. इसके बाद इसको देखना होगा कि कितने समय में वह बर्फ में तब्दील हो जाती है. लेकिन इससे पहले अंटार्कटिका के ग्लेशियर के पिघलने का कारण जानना बेहद जरूरी है.
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ग्रीन हाउस गैसों को करने पड़ेगा कंट्रोल
अंटार्कटिका में बर्फबारी कराने से पहले ग्रीन हाउस गैसों को कंट्रोल करना पड़ेगा, क्योंकि अगर ग्रीन हाउस गैसों को कंट्रोल नहीं किया गया और अंटार्कटिका में बर्फबारी करा दी गई तो उसका कोई फायदा नहीं होगा.
20 से 25 सालों में समंदर का लेवल बढ़ जाएगा
वैज्ञानिकों की मानें तो अंटार्कटिका के ग्लेशियर अगर तेजी से पिघलने लगा तो आने वाले 20-25 सालों में समंदर का काफी ज्यादा बढ़ जाएगा और कई शहर पानी में डूब जाएंगे. इससे पृथ्वी का चक्र और ओशियन का सर्कुलेशन बिगड़ जाएगा. जिस वजह से वैज्ञानिक लगातार अंटार्कटिका के पिघल रहे ग्लेशियर को अध्यन कर रहे हैं कि आने वाले समय में कहीं पृथ्वी का चक्र, बारिश का पैटर्न और पृथ्वी के तापमान पर पर कोई फर्क न पड़े.
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वैज्ञानिकों ने बताया कि समंदर के किनारे बसे शहर कोस्टल सिटी होते हैं. अगर हर साल एक से 10 मिली मीटर तक समंदर के पानी का लेवल बढ़ता है तो आने वाले समय में इन कोस्टल सिटीज को डूबने का खतरा है. जिससे समंदर किनारे बसे न्यूयॉर्क, टोक्यो आदि अन्य देशों समेत भारत देश के मुंबई, कोलकत्ता, गोवा जैसे तमाम बड़े शहर शामिल हैं. ये शहर ऐसे हैं जिन्हें माइग्रेट नहीं किया जा सकता. अगर ऐसी स्थिति होती है तो तमाम शहर डूब जाएंगे. इसके साथ ही इस घटना से ओशियन का पूरा चक्र बिगड़ जाएगा. अगर पृथ्वी का तापमान बढ़ता है तो सुनामी आने की घटनाएं बढ़ जाएंगी. इसके लिए बेहद जरूरी है कि पृथ्वी के तापमान को बढ़ने से रोका जाए.