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SDRF के हौसले और जज्बे को सलाम, देवदूत बनकर बचाते हैं लोगों की जिंदगी - देहरादून न्यूज

आपातकाल रेस्क्यू में उत्तराखंड SDRF सभी मोर्चों पर खरी उतर रही है. जान पर खेलकर हर मुश्किलों से यात्रियों को बचाने वाली SDRF वास्तव में जीवनदायिनी साबित हो रही है. वर्ष 2014 से अब तक 938 रेस्क्यू ऑपरेशन में 4619 लोगों को नई जिंदगी दी है.

SDRF
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Published : Aug 30, 2019, 10:58 AM IST

देहरादूनः उत्तराखंड की भौगोलिक पस्थितियों का हर वर्ष ऐसा प्राकृतिक फेरबदल देखने को मिलता है. जिससे इंसानी जीवन कई बार संकट में आ जाता है. आपदा की भयावह स्थिति में उत्तराखंड पुलिस विभाग की एसडीआरएफ टीम संकटमोचन बनकर अपने कर्तव्य का निरवहन करती है. जिनके रेस्क्यू ऑपरेशन से कई लोगों को जान बची है.

आपदा में SDRF यात्रियों के लिए संकटमोचक बनी.

उत्तराखंड में केदारनाथ चारधाम जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में वर्ष 2013 में आयी विनाशकारी त्रासदी के दौरान समय पर रेस्क्यू न मिलने के चलते हजारों इंसानी जिंदगी तबाह हो गईं थीं. वर्ष 2013 की भीषण आपदा को देखते हुए वर्ष 2014 में "स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फोर्स" (SDRF) के नाम पर राहत-बचाव फोर्स का गठन किया गया.

एसडीआरएफ के गठन के बाद से ही प्रत्येक वर्ष उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में मानसून के दौरान प्राकृतिक आपदा व किसी भी आपातकाल स्थिति में एसडीआरएफ अब तक सैकड़ों रेस्क्यू ऑपरेशन में हजारों लोगों की जिंदगी बचा चुकी है. हर रेस्क्यू ऑपरेशन में देवदूत बनकर एसडीआरएफ संकटमोचक के रूप में अपनी भूमिका निभाते आई है.

वर्ष 2014 से लेकर 28 अगस्त 2019 तक एसडीआरएफ ने अब तक कुल 938 अलग-अलग कठिन स्थानों में रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया. जिसमें 4,619 लोगों को मौत के आगोश से बचाया. इतना ही नहीं एसडीआरएफ अपने राहत बचाव कार्य में 804 मृत लोगों के शव भी विषम परिस्थितियों में बरामद किया. जो उनके जज्बे को दिखाता है.

एक नजर 2014 से 28 अगस्त 2019 तक SDRF के रेस्क्यू ऑपरेशन के आंकड़ों पर

वर्ष रेस्क्यू जीवित मृत (शव बरामद)
2014

17

212 17
2015 92 1,821 61
2016 89 1,159 96
2017 143 682 209
2018 326 495 266
2019 271 240 155
कुल 938 4,619 804

मानसून सीजन में प्राकृतिक आपदाओं व चारधाम यात्रा सहित मानसरोवर जैसी कठिन यात्रा में भी इस बल ने बखूबी कार्य किया है. देवदूत बनकर जिंदगी बचाने वाले एसडीएफ फोर्स की कर्तव्यनिष्ठा को लेकर आईजी संजय गुंज्याल का मानना है कि एसडीआरएफ फोर्स में इस तरह के जवान शामिल किए जाते हैं जो उत्तराखंड के दुर्गम व जटिल से जटिल स्थानों में हर विषम भौगोलिक परिस्थिति से वाकिफ हों.

यह भी पढ़ेंः उत्तराखंड हाई कोर्ट का आदेशः 6 महीने में नैनीताल का मास्टर प्लान तैयार करे सरकार

उसी के मुताबिक उनको ऐसा कड़ा प्रशिक्षण दिया जाता है जिसके आधार पर वह किसी भी आपातकालीन स्थिति में खतरों से खेलकर जिंदगियों को बचाने का काम करते हैं.

चार धाम यात्रा के साथ मानसरोवर जैसी कठिन यात्रा में एसडीआरएफ यात्री और श्रद्धालुओं को कई प्राकृतिक आपदाओं से रेस्क्यू कर लगातार जिम्मेदारी को निष्ठा से निभा रहे हैं.

हालांकि हर बार के रेस्क्यू ऑपरेशन में नई मुश्किलें सामने आती हैं लेकिन उनके अनुभव को लेकर समय-समय पर उनकी समीक्षा कर और बेहतर करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है.

मानसरोवर यात्रा में श्रद्धालुओं की देती है सुरक्षा कवच : गुंज्याल

एसडीआरएफ आईजी संजय गुंज्याल के मुताबिक उत्तराखंड में मानसून सीजन में सबसे विषम परिस्थितियों में होने वाली मानसरोवर यात्रा में यह महत्वपूर्ण कार्य करती है.

मुख्यतः धारचूला से लेकर तिब्बत चाइना बॉर्डर के अंतिम स्थान गूंजी गांव तक एसडीआरएफ के सुरक्षा कवच में श्रद्धालुओं को सकुशल पहुंचाने का कार्य करती है.

धारचूला से गूंजी तक मानसरोवर यात्रियों के साथ सबसे आगे एसडीआरएफ की पायलट टीम होती है. जबकि यात्रियों के पीछे टेल के रूप में एसडीआरएफ का एक दस्ता रहता है और यात्रियों के जत्थे के बीच में तीसरा दल एसडीआरएफ का पैरामेडिकल टीम का होता है. जो उनके स्वास्थ्य संबंधी विषयों का ख्याल रखता है.

मालपा व नजंग से श्रद्धालुओं को निकालना कठिन चुनौती
आईजी संजय गुंज्याल के मुताबिक मानसरोवर यात्रा का सबसे संवेदनशील इलाका जो विगत वर्षों में सबसे बड़ी आपदा के भेंट चढ़ा था वह मालपा, नजंग व बुद्धि जैसे क्षेत्र हैं जहां से यात्रा को सफल तरीके से आगे बढ़ाना कठिन चुनौतियों और खतरों के बीच होता है.

यह भी पढ़ेंः कोटद्वार: उत्तराखंड में बारिश का कहर जारी, जंगल में फंसे दंपति को SDRF ने किया रेस्क्यू

उसके बावजूद एसडीआरएफ की टीम इन्हीं परिस्थितियों से वाकिफ होकर अपने कड़े ट्रेनिंग के अनुभव से श्रद्धालुओं को इन विशेष संवेदनशील इलाकों से बचाकर यात्रा को सफल बनाती है.

गुंज्याल के मुताबिक हर बार अलग-अलग तरह की प्राकृतिक आपदाओं से अनुभव लेते हुए समय-समय पर समीक्षा बैठक की जाती है. जिसमें एसडीआरएफ के अलग-अलग विशेषज्ञों को जरूरत मुताबिक ट्रेनिंग देकर बेहतर बनाने का कार्य किया जा रहा है.

देहरादूनः उत्तराखंड की भौगोलिक पस्थितियों का हर वर्ष ऐसा प्राकृतिक फेरबदल देखने को मिलता है. जिससे इंसानी जीवन कई बार संकट में आ जाता है. आपदा की भयावह स्थिति में उत्तराखंड पुलिस विभाग की एसडीआरएफ टीम संकटमोचन बनकर अपने कर्तव्य का निरवहन करती है. जिनके रेस्क्यू ऑपरेशन से कई लोगों को जान बची है.

आपदा में SDRF यात्रियों के लिए संकटमोचक बनी.

उत्तराखंड में केदारनाथ चारधाम जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में वर्ष 2013 में आयी विनाशकारी त्रासदी के दौरान समय पर रेस्क्यू न मिलने के चलते हजारों इंसानी जिंदगी तबाह हो गईं थीं. वर्ष 2013 की भीषण आपदा को देखते हुए वर्ष 2014 में "स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फोर्स" (SDRF) के नाम पर राहत-बचाव फोर्स का गठन किया गया.

एसडीआरएफ के गठन के बाद से ही प्रत्येक वर्ष उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में मानसून के दौरान प्राकृतिक आपदा व किसी भी आपातकाल स्थिति में एसडीआरएफ अब तक सैकड़ों रेस्क्यू ऑपरेशन में हजारों लोगों की जिंदगी बचा चुकी है. हर रेस्क्यू ऑपरेशन में देवदूत बनकर एसडीआरएफ संकटमोचक के रूप में अपनी भूमिका निभाते आई है.

वर्ष 2014 से लेकर 28 अगस्त 2019 तक एसडीआरएफ ने अब तक कुल 938 अलग-अलग कठिन स्थानों में रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया. जिसमें 4,619 लोगों को मौत के आगोश से बचाया. इतना ही नहीं एसडीआरएफ अपने राहत बचाव कार्य में 804 मृत लोगों के शव भी विषम परिस्थितियों में बरामद किया. जो उनके जज्बे को दिखाता है.

एक नजर 2014 से 28 अगस्त 2019 तक SDRF के रेस्क्यू ऑपरेशन के आंकड़ों पर

वर्ष रेस्क्यू जीवित मृत (शव बरामद)
2014

17

212 17
2015 92 1,821 61
2016 89 1,159 96
2017 143 682 209
2018 326 495 266
2019 271 240 155
कुल 938 4,619 804

मानसून सीजन में प्राकृतिक आपदाओं व चारधाम यात्रा सहित मानसरोवर जैसी कठिन यात्रा में भी इस बल ने बखूबी कार्य किया है. देवदूत बनकर जिंदगी बचाने वाले एसडीएफ फोर्स की कर्तव्यनिष्ठा को लेकर आईजी संजय गुंज्याल का मानना है कि एसडीआरएफ फोर्स में इस तरह के जवान शामिल किए जाते हैं जो उत्तराखंड के दुर्गम व जटिल से जटिल स्थानों में हर विषम भौगोलिक परिस्थिति से वाकिफ हों.

यह भी पढ़ेंः उत्तराखंड हाई कोर्ट का आदेशः 6 महीने में नैनीताल का मास्टर प्लान तैयार करे सरकार

उसी के मुताबिक उनको ऐसा कड़ा प्रशिक्षण दिया जाता है जिसके आधार पर वह किसी भी आपातकालीन स्थिति में खतरों से खेलकर जिंदगियों को बचाने का काम करते हैं.

चार धाम यात्रा के साथ मानसरोवर जैसी कठिन यात्रा में एसडीआरएफ यात्री और श्रद्धालुओं को कई प्राकृतिक आपदाओं से रेस्क्यू कर लगातार जिम्मेदारी को निष्ठा से निभा रहे हैं.

हालांकि हर बार के रेस्क्यू ऑपरेशन में नई मुश्किलें सामने आती हैं लेकिन उनके अनुभव को लेकर समय-समय पर उनकी समीक्षा कर और बेहतर करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है.

मानसरोवर यात्रा में श्रद्धालुओं की देती है सुरक्षा कवच : गुंज्याल

एसडीआरएफ आईजी संजय गुंज्याल के मुताबिक उत्तराखंड में मानसून सीजन में सबसे विषम परिस्थितियों में होने वाली मानसरोवर यात्रा में यह महत्वपूर्ण कार्य करती है.

मुख्यतः धारचूला से लेकर तिब्बत चाइना बॉर्डर के अंतिम स्थान गूंजी गांव तक एसडीआरएफ के सुरक्षा कवच में श्रद्धालुओं को सकुशल पहुंचाने का कार्य करती है.

धारचूला से गूंजी तक मानसरोवर यात्रियों के साथ सबसे आगे एसडीआरएफ की पायलट टीम होती है. जबकि यात्रियों के पीछे टेल के रूप में एसडीआरएफ का एक दस्ता रहता है और यात्रियों के जत्थे के बीच में तीसरा दल एसडीआरएफ का पैरामेडिकल टीम का होता है. जो उनके स्वास्थ्य संबंधी विषयों का ख्याल रखता है.

मालपा व नजंग से श्रद्धालुओं को निकालना कठिन चुनौती
आईजी संजय गुंज्याल के मुताबिक मानसरोवर यात्रा का सबसे संवेदनशील इलाका जो विगत वर्षों में सबसे बड़ी आपदा के भेंट चढ़ा था वह मालपा, नजंग व बुद्धि जैसे क्षेत्र हैं जहां से यात्रा को सफल तरीके से आगे बढ़ाना कठिन चुनौतियों और खतरों के बीच होता है.

यह भी पढ़ेंः कोटद्वार: उत्तराखंड में बारिश का कहर जारी, जंगल में फंसे दंपति को SDRF ने किया रेस्क्यू

उसके बावजूद एसडीआरएफ की टीम इन्हीं परिस्थितियों से वाकिफ होकर अपने कड़े ट्रेनिंग के अनुभव से श्रद्धालुओं को इन विशेष संवेदनशील इलाकों से बचाकर यात्रा को सफल बनाती है.

गुंज्याल के मुताबिक हर बार अलग-अलग तरह की प्राकृतिक आपदाओं से अनुभव लेते हुए समय-समय पर समीक्षा बैठक की जाती है. जिसमें एसडीआरएफ के अलग-अलग विशेषज्ञों को जरूरत मुताबिक ट्रेनिंग देकर बेहतर बनाने का कार्य किया जा रहा है.

Intro:pls नोट इस ख़बर से संबंधित एसडीआरएफ रेस्क्यू के कुछ विजुअल email द्वारा भेजे गए हैं


summary-आपातकाल रेस्क्यू में उत्तराखंड SDRF बनती हैं जीवनदायिनी, वर्ष 2014 से 938 रेस्क्यू ऑपरेशन में अब तक 4619 लोगों को दी नई जिंदगी, आपदाओं के हर मुश्किल घड़ी में संकटमोचन बनकर निभायी अपनी जिम्मेदारी..



उत्तराखंड की भौगोलिक स्थितियों के हर वर्ष ऐसा प्राकृतिक फेरबदल देखने को मिलता है जिससे इंसानी जीवन कई बार संकट में आ जाता है. आपदा के रूप में प्रकृति की मार हो या किसी भी तरह की आपातकाल स्थिति हरेक परिस्थितियों में उत्तराखंड पुलिस विभाग की एसडीआरएफ फोर्स हर बार संकटमोचन बनकर जीवनदायिनी के रूप में अपना कर्तव्य निभाती आई है... उत्तराखंड में केदारनाथ चारधाम जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में वर्ष 2013 में आयी विनाशकारी त्रासदी भरी प्राकृतिक आपदा के समय पर रेस्क्यू ना मिलने के चलते हजारों इंसानी जिंदगी मौत का काल मे समा गए। वर्ष 2013 के भीषण आपदा को देखते हुए वर्ष 2014 "स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फोर्स" के नाम पर SDRF जैसे राहत-बचाव फोर्स का गठन किया गया। एसडीआरएफ की गठन के बाद से ही प्रत्येक वर्ष उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में मानसून के मौसम में आने वाले प्राकृतिक आपदाओं व किसी भी आपातकाल स्थिति से पार पाने के लिए एसडीआरएफ अब तक सैकड़ों रेस्क्यू ऑपरेशन में हजारों लोगों की जिंदगी काल हाथों से बचा चुकी है। राज्य हर रेस्क्यू ऑपरेशन देवदूत बनकर एसडीआरएफ संकटमोचन रूप में अपनी भूमिका निभाते आई है।


Body:वर्ष 2014 से लेकर 28 अगस्त 2019 तक एसडीआरएफ ने अब तक कुल 938 अलग -अलग कठिन स्थानों में रेस्क्यू ऑपरेशन चलाए जिसमें 4619 लोगों को जीवित मौत के आगोश से बचाया... इतना ही नहीं एसडीआरएफ टीमों अपने राहत बचाव कार्य में 804 मृत लोगों के शव भी विषम परिस्थितियों से पार पाकर उन्हें अंजाम दिया.

एक नजर 2014 से 28 अगस्त 2019 तक SDRF के रेस्क्यू ऑपरेशन के विवरण पर-

वर्ष - रेस्क्यू- जीवित- मृत (शव बरामद)
2014- 17 212 17
2015- 92 1821 61
2016- 89 1159 96
2017- 143 692 209
2018- 326 495 266
2019 271 240 155
(28/08/19तक)
कुल योग 938 4619 804


Conclusion:वही राज्य हर वर्ष मॉनसून सीजन प्राकृतिक आपदाओं व चारधाम यात्रा सहित मानसरोवर जैसी कठिन यात्रा के साथ ही किसी भी आपातकाल स्थिति में उत्तराखंड में देवदूत बनकर जिंदगी बचाने वाले एसडीएफ फ़ोर्स की कर्तव्यनिष्ठा को लेकर एसडीआरएफ आईजी संजय गुंज्याल का मानना है कि एसडीआरएफ फोर्स में इस तरह के जवान शामिल किए जाते हैं जो उत्तराखंड के दुर्गम व जटिल से जटिल स्थानों में हर विषम भौगोलिक परिस्थिति से वाकिफ है उसी के मुताबिक उनको ऐसी कड़ी प्रशिक्षण दिया जाता है जिसके आधार पर वह किसी भी आपातकालीन स्थिति में खतरों से खेलकर जिंदगियों को बचाने का काम करते हैं चार धाम यात्रा के साथ मानसरोवर जैसी कठिन यात्रा में एसडीआरएफ यात्री और श्रद्धालुओं को कई प्राकृतिक आपदाओं से रेस्क्यू कर लगातार जिम्मेदारी को निष्ठा से निभा रहे हैं हालांकि हर बार के रेस्क्यू ऑपरेशन में नई मुश्किलें सामने आती है लेकिन उनके अनुभव को लेकर समय-समय पर उनकी समीक्षा कर और बेहतर करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है।

मानसरोवर यात्रा में धारचूला से लेकर तिब्बत चाइना बॉर्डर तक SDRF की तीन टुकड़िया श्रद्धालुओं की सुरक्षा कवच बनकर कर यात्रा सफल बनाती है: SDRF आईजी

एसडीआरएफ आईजी संजय गुंज्याल के मुताबिक उत्तराखंड में मॉनसून सीजन पर सबसे विषम परिस्थितियों में होने वाले संवेदनशील मानसरोवर यात्रा मुख्यतः धारचूला से लेकर तिब्बत चाइना बॉर्डर के अंतिम स्थान गूंजी गांव तक एसडीआरएफ के सुरक्षा कवच में मानसरोवर श्रद्धालुओं वहाँ सकुशल पहुंचाने का कार्य करती है। धारचूला से गूंजी गांव तक मानसरोवर यात्रियों के साथ सबसे आगे एसडीआरएफ की पायलट टीम होती है जबकि यात्रियों के पीछे टेल के रूप में एसडीआरएफ का एक दस्ता रहता है और यात्रियों के जत्थे के बीच में तीसरा दल एसडीआरएफ का पैरामेडिकल टीम का होता है जो उनके स्वास्थ्य संबंधी विषयों का ख्याल रखता है।

बाइट- संजय गुंज्याल, एसडीआरएफ आईजी

मानसरोवर यात्रा मार्ग पर मालपा, नजंग व बुद्धि सबसे खतरनाक आपदा ग्रस्त क्षेत्रों से श्रद्धालुओं को निकालना कठिन चुनौती :SDRF आईजी

आईजी संजय गुंज्याल के मुताबिक मानसरोवर यात्रा के सबसे संवेदनशील इलाका जो विगत वर्षों में सबसे बड़ी आपदा के भेंट चढ़ा था ...वह मालपा, नजंग व बुद्धि जैसे क्षेत्र है जहां से यात्रा को सफल तरीके से आगे बढ़ाना कठिन चुनौतियों और खतरों के बीच होता है लेकिन उसके बावजूद एसडीआरएफ की टीम इन्हीं परिस्थितियों से वाकिफ होकर अपने कड़े ट्रेनिंग के अनुभव से श्रद्धालुओं को इन विशेष संवेदनशील इलाकों से बचाकर यात्रा को सफल बनाती है। एसडीआरएफ आईजी गुंज्याल के मुताबिक हर बार अलग-अलग तरह की प्राकृतिक आपदाओं से अनुभव लेते हुए समय-समय पर close डोर के रूप में समीक्षा बैठक की जाती है जिसमें एसडीआरएफ के अलग-अलग विशेषज्ञों को जरूरत मुताबिक ट्रेनिंग देकर बेहतर बनाने का कार्य किया जा रहा है।


बाइट- संजय गुंज्याल, एसडीआरएफ आईजी
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