देहरादूनः उत्तराखंड की भौगोलिक पस्थितियों का हर वर्ष ऐसा प्राकृतिक फेरबदल देखने को मिलता है. जिससे इंसानी जीवन कई बार संकट में आ जाता है. आपदा की भयावह स्थिति में उत्तराखंड पुलिस विभाग की एसडीआरएफ टीम संकटमोचन बनकर अपने कर्तव्य का निरवहन करती है. जिनके रेस्क्यू ऑपरेशन से कई लोगों को जान बची है.
उत्तराखंड में केदारनाथ चारधाम जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में वर्ष 2013 में आयी विनाशकारी त्रासदी के दौरान समय पर रेस्क्यू न मिलने के चलते हजारों इंसानी जिंदगी तबाह हो गईं थीं. वर्ष 2013 की भीषण आपदा को देखते हुए वर्ष 2014 में "स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फोर्स" (SDRF) के नाम पर राहत-बचाव फोर्स का गठन किया गया.
एसडीआरएफ के गठन के बाद से ही प्रत्येक वर्ष उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में मानसून के दौरान प्राकृतिक आपदा व किसी भी आपातकाल स्थिति में एसडीआरएफ अब तक सैकड़ों रेस्क्यू ऑपरेशन में हजारों लोगों की जिंदगी बचा चुकी है. हर रेस्क्यू ऑपरेशन में देवदूत बनकर एसडीआरएफ संकटमोचक के रूप में अपनी भूमिका निभाते आई है.
वर्ष 2014 से लेकर 28 अगस्त 2019 तक एसडीआरएफ ने अब तक कुल 938 अलग-अलग कठिन स्थानों में रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया. जिसमें 4,619 लोगों को मौत के आगोश से बचाया. इतना ही नहीं एसडीआरएफ अपने राहत बचाव कार्य में 804 मृत लोगों के शव भी विषम परिस्थितियों में बरामद किया. जो उनके जज्बे को दिखाता है.
एक नजर 2014 से 28 अगस्त 2019 तक SDRF के रेस्क्यू ऑपरेशन के आंकड़ों पर
वर्ष | रेस्क्यू | जीवित | मृत (शव बरामद) |
2014 | 17 | 212 | 17 |
2015 | 92 | 1,821 | 61 |
2016 | 89 | 1,159 | 96 |
2017 | 143 | 682 | 209 |
2018 | 326 | 495 | 266 |
2019 | 271 | 240 | 155 |
कुल | 938 | 4,619 | 804 |
मानसून सीजन में प्राकृतिक आपदाओं व चारधाम यात्रा सहित मानसरोवर जैसी कठिन यात्रा में भी इस बल ने बखूबी कार्य किया है. देवदूत बनकर जिंदगी बचाने वाले एसडीएफ फोर्स की कर्तव्यनिष्ठा को लेकर आईजी संजय गुंज्याल का मानना है कि एसडीआरएफ फोर्स में इस तरह के जवान शामिल किए जाते हैं जो उत्तराखंड के दुर्गम व जटिल से जटिल स्थानों में हर विषम भौगोलिक परिस्थिति से वाकिफ हों.
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उसी के मुताबिक उनको ऐसा कड़ा प्रशिक्षण दिया जाता है जिसके आधार पर वह किसी भी आपातकालीन स्थिति में खतरों से खेलकर जिंदगियों को बचाने का काम करते हैं.
चार धाम यात्रा के साथ मानसरोवर जैसी कठिन यात्रा में एसडीआरएफ यात्री और श्रद्धालुओं को कई प्राकृतिक आपदाओं से रेस्क्यू कर लगातार जिम्मेदारी को निष्ठा से निभा रहे हैं.
हालांकि हर बार के रेस्क्यू ऑपरेशन में नई मुश्किलें सामने आती हैं लेकिन उनके अनुभव को लेकर समय-समय पर उनकी समीक्षा कर और बेहतर करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है.
मानसरोवर यात्रा में श्रद्धालुओं की देती है सुरक्षा कवच : गुंज्याल
एसडीआरएफ आईजी संजय गुंज्याल के मुताबिक उत्तराखंड में मानसून सीजन में सबसे विषम परिस्थितियों में होने वाली मानसरोवर यात्रा में यह महत्वपूर्ण कार्य करती है.
मुख्यतः धारचूला से लेकर तिब्बत चाइना बॉर्डर के अंतिम स्थान गूंजी गांव तक एसडीआरएफ के सुरक्षा कवच में श्रद्धालुओं को सकुशल पहुंचाने का कार्य करती है.
धारचूला से गूंजी तक मानसरोवर यात्रियों के साथ सबसे आगे एसडीआरएफ की पायलट टीम होती है. जबकि यात्रियों के पीछे टेल के रूप में एसडीआरएफ का एक दस्ता रहता है और यात्रियों के जत्थे के बीच में तीसरा दल एसडीआरएफ का पैरामेडिकल टीम का होता है. जो उनके स्वास्थ्य संबंधी विषयों का ख्याल रखता है.
मालपा व नजंग से श्रद्धालुओं को निकालना कठिन चुनौती
आईजी संजय गुंज्याल के मुताबिक मानसरोवर यात्रा का सबसे संवेदनशील इलाका जो विगत वर्षों में सबसे बड़ी आपदा के भेंट चढ़ा था वह मालपा, नजंग व बुद्धि जैसे क्षेत्र हैं जहां से यात्रा को सफल तरीके से आगे बढ़ाना कठिन चुनौतियों और खतरों के बीच होता है.
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उसके बावजूद एसडीआरएफ की टीम इन्हीं परिस्थितियों से वाकिफ होकर अपने कड़े ट्रेनिंग के अनुभव से श्रद्धालुओं को इन विशेष संवेदनशील इलाकों से बचाकर यात्रा को सफल बनाती है.
गुंज्याल के मुताबिक हर बार अलग-अलग तरह की प्राकृतिक आपदाओं से अनुभव लेते हुए समय-समय पर समीक्षा बैठक की जाती है. जिसमें एसडीआरएफ के अलग-अलग विशेषज्ञों को जरूरत मुताबिक ट्रेनिंग देकर बेहतर बनाने का कार्य किया जा रहा है.