देहरादून: जिस कंपनी को देहरादून नगर निगम अधिकारियों का आशिर्वाद मिल गया है, समझों उसका बेड़ा पार हो गया. ऐसे ही एक नया मामला देहरादून नगर निगम से सामने आया है. देहरादून नगर निगम के अधिकारियों की मिलीभगत से एक कंपनी ने एमसीबी खरीद में बड़ा घोटाला किया है.
अधिकारी कंपनियों को ज्यादा फायदा पहुंचाने के चक्कर में किस तरह से जनता के पैसे को बर्बाद करते हैं, इसकी एक बानगी देहरादून नगर निगम में घोटाले में सामने आई है. 26 नवंबर 2021 के ई टेंडर में मैसर्स विजय इलेक्ट्रिक फर्म ने जिस एमसीबी की कीमत 350 दी गई थी, उसे निमग के अधिकारियों ने बढ़ाकर 5000 रुपए कर दिया था. फिर अधिकारियों ने साजिश के तहत फर्म को मोलभाव करने के लिए ऑफिस में बुलाया और 4000 हजार रुपए में सौदा तय किया और कंपनी से एमसीबी खरीद गई.
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इसके बाद फर्म की ओर से 05 मार्च 2022 को 8,04,200 रुपए का बिल लगाया गया. ये बिल देहरादून नगर निगम के सभी विभागों से पास होते हुए 14 जून को नगर आयुक्त के कार्यालय में पहुंचा. नगर आयुक्त को बिल पर कुछ संदेह हुआ तो उन्होंने जांच बैठा दी. जांच के बाद नगर आयुक्त ने 18 जुलाई को फर्म मैसर्स विजय इलेक्ट्रिक को ब्लैक लिस्टेड कर दिया और निगम के प्रकाश निरीक्षक रंजीत राणा के साथ अधिशासी अभियंता को चेतावनी जारी की.
क्या है पूरा मामला: दरअसल, देहरादून नगर निगम ने 12 नवंबर 2021 को स्ट्रीट लाइट के सिंगल पोल पर लगने वाली 64 एंपियर एमसीबी और अन्य सामान के लिए ई-टेंडर जारी किया गया था. इस टेंडर में तीन कंपनियों ने भाग लिया था. इसके बाद 26 नवंबर को टेंडर खोला गया तो इसमें फर्म मैसर्स विजय इलेक्ट्रिक वर्कर्स ने एक एमसीबी की कीमत 350 रुपए का प्रस्ताव दिया, जिस पर नगर निगम के पथ प्रकाश अनुभाग ने 2 दिसंबर को अधिशासी अभियंता को रिपोर्ट सौंपकर बताया कि फर्म की ओर से सबसे कम कीमत का प्रस्ताव दिया गया, लेकिन फर्म संचालक से मोलभाव कर दरें और कम कराई जाएगी.
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इस दौरान नगर निगम के अधिकारियों ने साजिश रचकर अपनी रिपोर्ट में 350 रुपए को काटकर पांच हजार रुपए कर दिए. इसके बाद 6 दिसंबर को फर्म संचालक को नगर निगम में मोलभाव के लिए बुलाया और 20 प्रतिशत की कटौती दिखाकर 5000 रुपए को घाटकर 4000 रुपए कर दिया गया.
टेंडर की डील होने के बाद फर्म को सामान की आपूर्ति का आदेश जारी कर दिया और फर्म ने 28 दिसंबर को सामान निगम में उपलब्ध करा दिया. इसके बाद फर्म की ओर से 05 मार्च 2022 को बिल लगाया गया. कुल बिल 8,04,200 रुपए का दिया गया, जिसमें फर्म ने 50 एमसीबी का मूल्य दो लाख रुपए दर्शाया गया. ये बिल पास होकर सीधे नगर आयुक्त कार्यालय पहुंचा, लेकिन उन्होंने मामला पकड़ लिया और घोटालों की जांच की.
जांच में नगर निगम के पद प्रकाश अनुभाग की सांठगांठ सामने आई और नगर आयुक्त की ओर से 14 जून को फर्म के संचालक से स्पष्टीकरण तलब किया, लेकिन फर्म ने संतोषजनक जवाब नहीं दिया. इस पर नगर आयुक्त ने कार्रवाई करते हुए फर्म को ब्लैक लिस्टेड कर दिया.
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नगर आयुक्त मनुज गोयल ने बताया कि सम्बंधित फर्म के द्वारा गलत तरीके से बिल बनाकर नगर निगम में प्रस्तुत किया गया था, जिसके सम्बंध में जांच करवाई गई तो सम्बंधित फर्म को नगर निगम में सप्लाई करने के लिए ब्लैक लिस्टेड कर दिया गया है. साथ ही जो सम्बंधित कर्मचारी, जिनके स्तर से बिल की सही तरीके से जांच नहीं की गई, उनको भी प्रतिकूल प्रविष्टि देते हुए कठोर चेतावनी दी है और साथ ही इस मामले में आगे की कार्रवाई कर दी गई है.