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'एडॉप्ट ए हेरिटेज' योजना से धरोहर होंगे संरक्षित-सतपाल महाराज

प्रदेश में संस्कृति विभाग और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सहयोग से केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय के साथ ‘एडॉप्ट ए हेरिटेज- अपनी धरोहर, आपनी पहचान’ की एक पहल की हैं. उत्तराखंड भारतीय संस्कृति, धर्म और आध्यात्म का सदैव केंद्र रहा है. इसकी विभिन्न मोहक, दुर्गम पर्वत श्रेणियों, घाटियों में यंत्र-तंत्र अकूत पुरातात्विक और सांस्कृतिक धरोहरें विद्यमान हैं.

Satpal Maharaj
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Published : Apr 18, 2021, 12:31 PM IST

देहरादून: हर साल 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस यानी विश्व विरासत दिवस मनाया जाता है. जिसका मुख्य उद्देश्य पूरे विश्व में मानव सभ्यता से जुड़े ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों के संरक्षण के प्रति जागरूकता लाना है. इसी क्रम में संस्कृति विभाग और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सहयोग से केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय के साथ 'एडॉप्ट ए हेरिटेज-अपनी धरोहर, आपनी पहचान' की एक पहल की हैं. उत्तराखंड भारतीय संस्कृति, धर्म और आध्यात्म का सदैव केंद्र रहा है. इसकी विभिन्न मोहक, दुर्गम पर्वत श्रेणियों, घाटियों में यंत्र-तंत्र अकूत पुरातात्विक और सांस्कृतिक धरोहरें विद्यमान हैं.


इसके अतिरिक्त गंगोत्री, यमुनोत्री, केदार-बदरी, जागेश्वर, बागेश्वर, बैजनाथ, आदि बदरी, बालेश्वर मंदिर, लाखामंडल इन्हीं पर्वत मालाओं और रमणीय दुर्गम वनों में स्थित है. संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि केंद्र सरकार की अपनी धरोहर अपनी पहचान योजना के तहत उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद (यूटीडीबी) देश की कंपनियों को देवभूमि की धरोहर को संवारने के लिए समय-समय पर सोशल-मीडिया व अन्य माध्यमों के द्वारा आंमत्रित करता रहता है. जिससे प्रदेश की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक स्थल पर्यटकों को आकर्षित कर सकें.


पर्यटन, संस्कृति मंत्री ने कहा, जब हम अपनी ऐतिहासिक धरोहरों का रख रखाव करेंगे, तभी आने वाली पीढ़ियां राष्ट्र के भव्य इतिहास से रूबरू होती रहेगी. उन्होंने बताया कि योजना के तहत उन कंपनियों को आमंत्रित किया जा रहा है जो उत्तराखंड की धरोहरों को संवारने का काम करेंगी. जिससे देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों को बताया जा सकें कि हमारी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों को आने वाली पीढ़ियों के लिए बचाए रखने के लिए प्रदेश सरकार किस तरह से कार्य कर रही है.


उत्तराखंड राज्य के लगभग जार्ज एवरेस्ट मसूरी, देवलगढ़ राजराजेश्वरी मंदिर पौड़ी, गर्तांग गली-नेलोंग घाटी, चयनशील बनगान उत्तरकाशी, नारायण कोटि रुद्रप्रयाग, देवा डांडा गुजरूगढ़ी पौड़ी, पिथौरागढ़ किला, सती घाट हरिद्वार, क्रैंकरिज अल्मोड़ा आदि स्थलों को अंकित किया गया है. इसके तहत, राज्य सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों, निजी क्षेत्र की फर्मों और व्यक्तियों के साथ-साथ पूरे भारत में चयनित स्मारकों, विरासत और पर्यटन स्थलों को विकसित करने के लिए संस्थाओं को आमंत्रित करती है.


संस्कृति विभाग की निदेशक बीना भट्ट द्वारा बताया गया कि भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित प्राचीन स्मारक और पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम 1958 के अंतर्गत 47 राज्य संरक्षित एवं 24 राज्य संरक्षणाधीन कुल 71 स्मारक स्थलों को राज्य संरक्षित धरोहर घोषित किया गया है. रुद्रप्रयाग में प्रतिष्ठित नारायणकोटि मंदिर को एसएलआरईएफ (सोशल लीगल रिसर्च एंड एजुकेशन फाउंडेशन) द्वारा योजना के तहत अडॉप्ट किया गया है. एमओयू के तहत एसएलआरईएफ फाउंडेशन सभी बुनियादी और आवश्यक सुविधाओं का ध्यान रखेगा.

पढ़ें: वनाग्नि की घटना को लेकर तैयार होगा एक्शन प्लान, तैयारियां तेज

जिसमें बिजली, स्वच्छता, पेयजल, पार्किंग आदि शामिल हैं, जो कि मंदिर में हैं. इसके अलावा, फाउंडेशन मंदिर में सभी आवश्यक निर्माण को समयबद्ध तरीके से कराने के लिऐ भी कार्य करती रहेगी. इस तरह की योजनाएं न केवल हमें हेरिटेज स्थलों की देखभाल करने में मदद करेगी, बल्कि रोजगार के अवसर भी पैदा करेगी. स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे, होमस्टे के माध्यम से और खाद्य सेवाएं भी प्रदान की जाएंगी. इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था मजबूत होगी और उत्तराखंड को हेरिटेज पर्यटन के लिए एक आदर्श स्थल बनाया जा सकता है.

देहरादून: हर साल 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस यानी विश्व विरासत दिवस मनाया जाता है. जिसका मुख्य उद्देश्य पूरे विश्व में मानव सभ्यता से जुड़े ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों के संरक्षण के प्रति जागरूकता लाना है. इसी क्रम में संस्कृति विभाग और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सहयोग से केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय के साथ 'एडॉप्ट ए हेरिटेज-अपनी धरोहर, आपनी पहचान' की एक पहल की हैं. उत्तराखंड भारतीय संस्कृति, धर्म और आध्यात्म का सदैव केंद्र रहा है. इसकी विभिन्न मोहक, दुर्गम पर्वत श्रेणियों, घाटियों में यंत्र-तंत्र अकूत पुरातात्विक और सांस्कृतिक धरोहरें विद्यमान हैं.


इसके अतिरिक्त गंगोत्री, यमुनोत्री, केदार-बदरी, जागेश्वर, बागेश्वर, बैजनाथ, आदि बदरी, बालेश्वर मंदिर, लाखामंडल इन्हीं पर्वत मालाओं और रमणीय दुर्गम वनों में स्थित है. संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि केंद्र सरकार की अपनी धरोहर अपनी पहचान योजना के तहत उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद (यूटीडीबी) देश की कंपनियों को देवभूमि की धरोहर को संवारने के लिए समय-समय पर सोशल-मीडिया व अन्य माध्यमों के द्वारा आंमत्रित करता रहता है. जिससे प्रदेश की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक स्थल पर्यटकों को आकर्षित कर सकें.


पर्यटन, संस्कृति मंत्री ने कहा, जब हम अपनी ऐतिहासिक धरोहरों का रख रखाव करेंगे, तभी आने वाली पीढ़ियां राष्ट्र के भव्य इतिहास से रूबरू होती रहेगी. उन्होंने बताया कि योजना के तहत उन कंपनियों को आमंत्रित किया जा रहा है जो उत्तराखंड की धरोहरों को संवारने का काम करेंगी. जिससे देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों को बताया जा सकें कि हमारी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों को आने वाली पीढ़ियों के लिए बचाए रखने के लिए प्रदेश सरकार किस तरह से कार्य कर रही है.


उत्तराखंड राज्य के लगभग जार्ज एवरेस्ट मसूरी, देवलगढ़ राजराजेश्वरी मंदिर पौड़ी, गर्तांग गली-नेलोंग घाटी, चयनशील बनगान उत्तरकाशी, नारायण कोटि रुद्रप्रयाग, देवा डांडा गुजरूगढ़ी पौड़ी, पिथौरागढ़ किला, सती घाट हरिद्वार, क्रैंकरिज अल्मोड़ा आदि स्थलों को अंकित किया गया है. इसके तहत, राज्य सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों, निजी क्षेत्र की फर्मों और व्यक्तियों के साथ-साथ पूरे भारत में चयनित स्मारकों, विरासत और पर्यटन स्थलों को विकसित करने के लिए संस्थाओं को आमंत्रित करती है.


संस्कृति विभाग की निदेशक बीना भट्ट द्वारा बताया गया कि भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित प्राचीन स्मारक और पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम 1958 के अंतर्गत 47 राज्य संरक्षित एवं 24 राज्य संरक्षणाधीन कुल 71 स्मारक स्थलों को राज्य संरक्षित धरोहर घोषित किया गया है. रुद्रप्रयाग में प्रतिष्ठित नारायणकोटि मंदिर को एसएलआरईएफ (सोशल लीगल रिसर्च एंड एजुकेशन फाउंडेशन) द्वारा योजना के तहत अडॉप्ट किया गया है. एमओयू के तहत एसएलआरईएफ फाउंडेशन सभी बुनियादी और आवश्यक सुविधाओं का ध्यान रखेगा.

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जिसमें बिजली, स्वच्छता, पेयजल, पार्किंग आदि शामिल हैं, जो कि मंदिर में हैं. इसके अलावा, फाउंडेशन मंदिर में सभी आवश्यक निर्माण को समयबद्ध तरीके से कराने के लिऐ भी कार्य करती रहेगी. इस तरह की योजनाएं न केवल हमें हेरिटेज स्थलों की देखभाल करने में मदद करेगी, बल्कि रोजगार के अवसर भी पैदा करेगी. स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे, होमस्टे के माध्यम से और खाद्य सेवाएं भी प्रदान की जाएंगी. इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था मजबूत होगी और उत्तराखंड को हेरिटेज पर्यटन के लिए एक आदर्श स्थल बनाया जा सकता है.

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