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सरकारी घोषणा में 'कैद' वीरभूमि की शौर्यगाथा, आखिर कब मिलेगा शहादत को सम्मान?

बीते साल रुद्रपुर में पीएम मोदी ने भी देवभूमि काे पांचवां धाम सैनिक धाम बताया था. लेकिन आजतक शौर्य स्मारक धरातल पर देखने को नहीं मिला है.

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कारगिल विजय दिवस
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Published : Jul 25, 2020, 9:11 PM IST

Updated : Jul 26, 2020, 10:15 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड को ऐसे ही वीरभूमि नहीं कहा जाता है. यहां की भूमि ने न जाने ऐसे कितने जांबाज दिए है जिन्होंने आजादी के पहले से लेकर अबतक भारत माता के लिए अपने प्राण न्योछावर किए हैं. उत्तराखंड सैन्य इतिहास वीरता और पराक्रम के असंख्य किस्से खुद में समेटे हुए है. कारगिल युद्ध की वीर गाथा भी इस वीरभूमि के जिक्र बिना अधूरी है. सूबे के 75 सैनिकों इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे. बावजूद इसके उत्तराखंड में अभीतक सैनिक धाम के नाम पर अभीतक कोई शौर्य स्मारक धरातल पर देखने को नहीं मिला है. ऐसे में सरकारी घोषणाएं फाइलों तक ही सिमट कर रह गई हैं.

सरकारी घोषणा में 'कैद' वीरभूमि की शौर्यगाथा

उत्तराखंड को लेकर कहा जाता है कि यहां हर घर से एक व्यक्ति सेना में जाकर देश की सेवा करता है. यही कारण है कि उत्तराखंड को सैनिक बाहुल्य राज्य कहा गया है. अदम्य साहस और सर्वोच्च बलिदान के लिए उत्तराखंड का इतिहास देश की आजादी से भी पुराना है. पूर्व सैनिक नंदन सिंह बुटोला बताते हैं कि उत्तराखंड के अदम्य साहस को देखते हुए ब्रिटिश शासन में भी रानीखेत और लैंसडाउन में दो छावनियां स्थापित की थी.

पढ़ें- कारगिल विजय: हल्द्वानी के वीर की शहादत को नहीं मिला सम्मान, जानें- कैसा है परिवार का हाल

देश की सुरक्षा और सम्मान के लिए देवभूमि के वीर सपूत हमेशा ही आगे रहे हैं. इन युवाओं में सेना में जाने का क्रेज आज भी बरकरार है. 1999 के कारगिल युद्ध में कुल 526 जवानों शहीद हुए थे, जिसमें से 75 जवान उत्तराखंड के ही थे. इनकी याद में जहा एक ओर सैकड़ों आखें नम होती हैं. वहीं, राज्यवासियों का सीना भी गर्व से चौड़ा हो जाता है. इन जवानों का इतिहास प्रदेश की आने वाली पीढ़ी भी जान सकें, इसको लेकर केंद्र और राज्य सरकार पांचवें धाम के रूप में सैनिक धाम (शौर्य स्मारक) बनाने की घोषणा की थी, जो आजतक धरातल पर नहीं उतरी है.

इस बात का मलाल पूर्व सैनिकों को भी है कि शौर्य स्मारक की घोषणा केवल कागजी ही साबित हुई. नेता ने सिर्फ वोट बैंक के लिए उत्तराखंड में सैनिक धाम बनाने की घोषणा की थी. पूर्व सैनिक नंदन सिंह बुटोला कहते है कि सैनिक धाम बनाने की दिशा में सरकार के कोई काम नहीं किया. उन्होंने सरकार के मांग की है कि उत्तराखंड की जन भावनाओं के अनुरूप एक भव्य शौर्य स्मारक जल्द बनाया जाए.

पढ़ें- देशभक्ति गीत गुनगुनाते शहीद देव बहादुर का पुराना वीडियो वायरल

बता दें कि उत्तराखंड में शौर्य स्मारक के नाम पर गढ़ी कैंट चीड़ बाग में एक शौर्य स्मारक बनाने की कवायद तत्कालीन कांग्रेस सरकार में शुरू की गई थी, लेकिन सरकार बदलते ही यह योजना भी धराशाई हो गई. इस मामले में कांग्रेस प्रवक्ता आरपी रतूड़ी ने कहा कि उनकी सरकार ने उत्तराखंड में भव्य शौर्य स्मारक बनाने का प्रयास किया था, लेकिन बीजेपी के सत्ता में आने के बाद न तो उत्तराखंड को शौर्य स्मारक मिल पाया और न ही इस दिशा में कुछ आगे बढ़ पाया.

हालांकि, विपक्ष के इस पर आरोप का सरकार ने जवाब दिया है. उत्तराखंड सरकार के शासकीय प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक ने कहा कि राज्य सरकार शौर्य स्मारक को लेकर गंभीर है. इस दिशा में काम किया जा रहा है. जल्द ही शौर्य स्मारक के लिए जगह का चिन्हीकरण किया जाएगा और उत्तराखंड को एक भव्य शौर्य स्मारक दिया जाएगा.

देहरादून: उत्तराखंड को ऐसे ही वीरभूमि नहीं कहा जाता है. यहां की भूमि ने न जाने ऐसे कितने जांबाज दिए है जिन्होंने आजादी के पहले से लेकर अबतक भारत माता के लिए अपने प्राण न्योछावर किए हैं. उत्तराखंड सैन्य इतिहास वीरता और पराक्रम के असंख्य किस्से खुद में समेटे हुए है. कारगिल युद्ध की वीर गाथा भी इस वीरभूमि के जिक्र बिना अधूरी है. सूबे के 75 सैनिकों इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे. बावजूद इसके उत्तराखंड में अभीतक सैनिक धाम के नाम पर अभीतक कोई शौर्य स्मारक धरातल पर देखने को नहीं मिला है. ऐसे में सरकारी घोषणाएं फाइलों तक ही सिमट कर रह गई हैं.

सरकारी घोषणा में 'कैद' वीरभूमि की शौर्यगाथा

उत्तराखंड को लेकर कहा जाता है कि यहां हर घर से एक व्यक्ति सेना में जाकर देश की सेवा करता है. यही कारण है कि उत्तराखंड को सैनिक बाहुल्य राज्य कहा गया है. अदम्य साहस और सर्वोच्च बलिदान के लिए उत्तराखंड का इतिहास देश की आजादी से भी पुराना है. पूर्व सैनिक नंदन सिंह बुटोला बताते हैं कि उत्तराखंड के अदम्य साहस को देखते हुए ब्रिटिश शासन में भी रानीखेत और लैंसडाउन में दो छावनियां स्थापित की थी.

पढ़ें- कारगिल विजय: हल्द्वानी के वीर की शहादत को नहीं मिला सम्मान, जानें- कैसा है परिवार का हाल

देश की सुरक्षा और सम्मान के लिए देवभूमि के वीर सपूत हमेशा ही आगे रहे हैं. इन युवाओं में सेना में जाने का क्रेज आज भी बरकरार है. 1999 के कारगिल युद्ध में कुल 526 जवानों शहीद हुए थे, जिसमें से 75 जवान उत्तराखंड के ही थे. इनकी याद में जहा एक ओर सैकड़ों आखें नम होती हैं. वहीं, राज्यवासियों का सीना भी गर्व से चौड़ा हो जाता है. इन जवानों का इतिहास प्रदेश की आने वाली पीढ़ी भी जान सकें, इसको लेकर केंद्र और राज्य सरकार पांचवें धाम के रूप में सैनिक धाम (शौर्य स्मारक) बनाने की घोषणा की थी, जो आजतक धरातल पर नहीं उतरी है.

इस बात का मलाल पूर्व सैनिकों को भी है कि शौर्य स्मारक की घोषणा केवल कागजी ही साबित हुई. नेता ने सिर्फ वोट बैंक के लिए उत्तराखंड में सैनिक धाम बनाने की घोषणा की थी. पूर्व सैनिक नंदन सिंह बुटोला कहते है कि सैनिक धाम बनाने की दिशा में सरकार के कोई काम नहीं किया. उन्होंने सरकार के मांग की है कि उत्तराखंड की जन भावनाओं के अनुरूप एक भव्य शौर्य स्मारक जल्द बनाया जाए.

पढ़ें- देशभक्ति गीत गुनगुनाते शहीद देव बहादुर का पुराना वीडियो वायरल

बता दें कि उत्तराखंड में शौर्य स्मारक के नाम पर गढ़ी कैंट चीड़ बाग में एक शौर्य स्मारक बनाने की कवायद तत्कालीन कांग्रेस सरकार में शुरू की गई थी, लेकिन सरकार बदलते ही यह योजना भी धराशाई हो गई. इस मामले में कांग्रेस प्रवक्ता आरपी रतूड़ी ने कहा कि उनकी सरकार ने उत्तराखंड में भव्य शौर्य स्मारक बनाने का प्रयास किया था, लेकिन बीजेपी के सत्ता में आने के बाद न तो उत्तराखंड को शौर्य स्मारक मिल पाया और न ही इस दिशा में कुछ आगे बढ़ पाया.

हालांकि, विपक्ष के इस पर आरोप का सरकार ने जवाब दिया है. उत्तराखंड सरकार के शासकीय प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक ने कहा कि राज्य सरकार शौर्य स्मारक को लेकर गंभीर है. इस दिशा में काम किया जा रहा है. जल्द ही शौर्य स्मारक के लिए जगह का चिन्हीकरण किया जाएगा और उत्तराखंड को एक भव्य शौर्य स्मारक दिया जाएगा.

Last Updated : Jul 26, 2020, 10:15 PM IST
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