देहरादून: उत्तराखंड की स्थापना के बाद से ही प्रदेश में मुख्यमंत्री पद पर तख्तापलट के कई उदाहरण हैं और इन तमाम मौकों पर मुख्यमंत्रियों को अपनी कुर्सी खोनी भी पड़ी है. सत्ता चाहे कांग्रेस की रही हो या फिर बीजेपी की. मुख्यमंत्री की कुर्सी को हथियाने के लिए हर प्रपंच और षड्यंत्र राजनीतिक गलियारों में सुनाई देते रहे हैं और दिखाई भी. शायद यही कारण है कि सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत उत्तराखंड के राजनीतिक इतिहास में षड्यंत्र को सामान्य मानते हैं. त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि राजनीति का इतिहास ही षड्यंत्र से जुड़ा है और उनके कामों को लेकर कुछ लोगों की बौखलाहट के बाद अफवाहें फैलाई गई हैं.
साल 2000 में राज्य स्थापना के एक साल बाद ही बीजेपी की अंतरिम सरकार में नित्यानंद स्वामी को विधायकों की गोलबंदी कारण अपनी कुर्सी खोनी पड़ी थी. उस दौरान विधायकों का समर्थन पाने वाले भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाया गया.
साल 2002 में पहली निर्वाचित कांग्रेस की सरकार में पंडित नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने और अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा किया, लेकिन इन 5 सालों में विधायकों के विरोध और हरीश रावत खेमे का दबाव उन पर बना रहा.
साल 2007 में बीजेपी ने भुवनचंद खंडूड़ी को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन भगत सिंह कोश्यारी खेमे के दबाव में उन्हें भी कुर्सी से दूर होना पड़ा.
साल 2012 में विजय बहुगुणा के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार आई, लेकिन फिर हरीश रावत खेमे ने उन पर दबाव बनाया और आखिरकार केदारनाथ आपदा के बाद उन्हें अपनी कुर्सी को छोड़ना पड़ा. जिसके बाद हरीश रावत मुख्यमंत्री बने, हालांकि हरीश सरकार में प्रदेश के सबसे बड़ा दलबदल हुआ जिसके बाद कुछ समय के लिए हरीश रावत को भी अपनी कुर्सी खोनी पड़ी.
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अब त्रिवेंद्र सिंह रावत को लेकर भी सोशल मीडिया पर अस्थिरता की बात कही जा रही है, हालांकि इसे बीजेपी ने कोरी अफवाह करार दिया है. उधर, त्रिवेंद्र सिंह रावत के राजनीति में षड्यंत्र के बयान के बाद कांग्रेस ने इसे बीजेपी की परिपाटी बताया है.
कांग्रेस नेता मनीष कर्णवाल के मुताबिक बीजेपी में षड्यंत्र आम बात है और हरीश रावत सरकार को गिराने में भी बीजेपी का चेहरा सबके सामने आ चुका है. उत्तराखंड में राजनीतिक अस्थिरता की खबरों ने तब जोर पकड़ा जब हरीश रावत ने ट्वीट कर बीजेपी पर तंज कसा, हालांकि बीजेपी ने इसे अफवाह करार दिया है.